क्या चीन की अर्थव्यवस्था में आ रही सुस्ती भारत पर भी असर डालेगी?

तेल के दामों में भारी उथल पुथल के बीच चीन के सबसे बड़ी रीयल एस्टेट कंपनी एवरग्रांडे जिस पर 305 अरब डॉलर का वैश्विक कर्ज है और लगभग पूरे विश्व में करीब 1400 प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, वह डिफाल्ट में आ गई है.

चीनी अर्थव्यवस्था में इसका इतना प्रभाव है कि यदि चीन सरकार ने इसे बेल आउट पैकेज नहीं दिया ( जिसकी संभावना कम है), तो यह कंपनी डूबेगी और इस कारण से चीनी अर्थव्यवस्था में सुस्ती आना तय है. चीनी अर्थव्यवस्था की सुस्ती न केवल भारत पर बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती डाल सकती है.

आज वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में चीन की हिस्सेदारी 19% (पीपीपी शर्तों) है। पूंजीगत व्यय में चीन का हिस्सा वैश्विक पूंजीगत व्यय का 30% है, जो कि अविश्वसनीय है।

इसके अलावा इसके निर्माण क्षेत्र में मंदी का वैश्विक वस्तुओं पर असर पड़ने की संभावना है और चीन के व्यापारिक ग्रुप्स द्वारा किसी भी तरह की छंटनी वैश्विक ऑटो और लग्जरी सामानों की बिक्री को प्रभावित करेगी.

अगर एवरग्रांड जैसी बड़ी कंपनी डूबती है तो इसका असर चीन के पूरे रियल एस्टेट सेक्टर पर पड़ेगा। चीन की जीडीपी में रियल एस्टेट सेक्टर की करीब 29% हिस्सेदारी है। यानी अगर रियल एस्टेट सेक्टर प्रभावित हुआ तो ये अपने साथ दूसरे सेक्टरों की ग्रोथ को भी धीमा कर सकता है।

साथ ही चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अगर चीन की अर्थव्यवस्था में कुछ उथल-पुथल होती है, तो उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।

कंपनी के डूबने की खबरों का असर अभी से मार्केट पर दिखाई भी देने लगा है। कंपनी के शेयर 2010 के बाद से अपने सबसे न्यूनतम स्तर पर ट्रेड कर रहे हैं।

दुनिया के टॉप अमीरों में शुमार एलन मस्क, जेफ बेजोस, बिल गेट्स, मार्क जकरबर्ग को 26 बिलियन डॉलर से ज्यादा का नुकसान हो चुका है।

एवरग्रांड पर इतना कर्ज है कि दुनियाभर के बाजारों में हड़कंप मचा सकती है। यह 2008 के अमेरिकी कंपनी लेहमैन ब्रदर्स जैसे दिवालिया होकर वैश्विक मंदी का कारण बन सकती है।

भारत पर क्या असर पड़ेगा?

भारत में स्टील, मेटल और आयरन का निर्माण करने वाली कंपनियां अपना 90% माल चीन को बेचती हैं। इसमें भी एवरग्रांड सबसे बड़े खरीदारों में से एक है। अगर ये कंपनी डूबी तो चीन और भारत के बीच निर्यात भी प्रभावित होगा।

भारत में स्टील और आयरन सेक्टर में 25 लाख लोग काम करते हैं। चीन की एक कंपनी का डूबना इनके व्यापारिक ग्रुप्स को प्रभावित कर सकता है। वहीं, चीन की जिन कंपनियों ने भारत में निवेश किया है वो भी एवरग्रांड के डूबने से प्रभावित होंगी।

चीन सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल 2021 के शुरुआती नौ महीनों में भारत और चीन के बीच के द्विपक्षीय कारोबार में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और भारत के कॉमर्स मिनिस्ट्री द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल-जुलाई 2021 में भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार चीन रहा. इसके बाद अमेरिका, यूएई, सऊदी अरब और सिंगापुर के साथ द्विपक्षीय कारोबार हुआ.

चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती से महामारी के झटके से उबर रही इकोनॉमी की रफ्तार के अलावा आपसी कारोबार को लेकर भी चिंता खड़ी हो रही है.

इस साल के शुरुआती नौ महीनों यानी जनवरी-सितंबर 2021 में भारत ने चीन से 6850 करोड़ डॉलर (5.14 लाख करोड़ रुपये) का आयात किया जोकि पिछले साल 2020 की समान अवधि की तुलना में 52 फीसदी अधिक है.

आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल के शुरुआती नौ महीनों में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 2990 करोड़ डॉलर (2.25 लाख करोड़ रुपये) रुपये का था जो इस साल जनवरी-सितंबर 2021 में बढ़कर 4655 करोड़ डॉलर (3.49 लाख करोड़ रुपये) का हो गया.

भारत और चीन के बीच सितंबर तक 9038 करोड़ डॉलर (6.8 लाख करोड़ रुपये) का कारोबार हुआ जो इस साल के अंत तक 10 हजार करोड़ डॉलर (7.50 लाख करोड़ रुपये) का स्तर छू सकता है.

चीन से भारत मुख्य रूप से स्मार्टफोन, ऑटोमोबाइल कंपोनेंट्स, टेलीकॉम इक्विपमेंट, एक्टिव फार्मा इंग्रेडिएंट्स (एपीआई) और अन्य केमिकल्स आयात करता है.

कोरोना महामारी के झटकों से अभी पूरी दुनिया उबरने की कोशिश कर रही है, वहीं चीन कोरोना से पहले के ग्रोथ को पहले ही पार कर लिया था. इसके बाद इसमें सुस्ती का व्यापक असर पड़ने की आशंका दिख रही है.

इसके अलावा आंकड़ों के मुताबिक तेल संकट व एवरग्रांडे के चलते पैदा हुए रीयल एस्टेट संकट के चलते चीन के ग्रोथ पर असर पड़ा.

हालांकि कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि चीन एक बंद अर्थव्यवस्था है इस वजह से भारत पर खासा असर नहीं पड़ेगा। साथ ही भारत के लिए ये दीर्घकालीन में फायदे भरा सौदा हो सकता है, क्योंकि अगर चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी आती है तो कंपनियां दूसरे बाजार तलाशेंगी और उनके लिए भारत एक विकल्प बन सकता है.

चीनी अर्थव्यवस्था की सुस्ती भारत पर भी प्रभाव डालेगी, इसमें कोई शक नहीं क्योंकि हम चाहे कितना भी चीन को कोसे लेकिन पूरे विश्व में चीन आज भी भारत के लिए नम्बर 1 का व्यापारिक सहयोगी हैं और यह तथ्य सरकारी आंकड़े भी स्वीकार करते हैं. ऐसे में चीनी प्रभाव से बचने के लिए चीन का विकल्प ढूंढना ही एकमात्र उपाय है और जितना जल्द हम इसे करेंगे तभी सही मायने में आत्मनिर्भर बन पाएंगे.

लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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