कुपोषण के खिलाफ भारत की नई तैयारी

जीवन के लिए आवश्‍यक पेट भर भोजन ही नहीं तो स्‍वस्‍थ रहने के लिए पोषण से भरपूर आहार की भी जरूरत होती है। भारत ही नहीं दुनिया के तमाम देश आज कुपोषण के दंश से ग्रसित हैं, इन अनेक देशों के वाशिंदों को भोजन तो भरपेट मिल जाता है, लेकिन पोषक तत्‍वों के अभाव में जन्‍म के बाद से लगातार इनके स्‍वास्‍थ्‍य में कोई सुधार नहीं होता, बल्‍कि कुपोषण इनके जीवन को सदैव कष्‍टों से भरा रखता है। ऐसे में अब भारतीय वैज्ञानिकों ने इनकी पहुंच तक आसानी से उपलब्‍ध मोटे अनाज में ही मूलभूत परिवर्तन करने की दिशा में पहल शुरू कर दी है।

दरअसल, ‘वैश्‍विक भुखमरी सूचकांक’ की अब तक की ताजा रिपोर्ट कहती है कि विश्‍व में करीब 69 करोड़ लोग कुपोषण से ग्रसित हैं। इसी प्रकार से संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि दुनिया की 10 फीसदी आबादी (811 मिलियन लोग) कुपोषण के शिकार हैं। इसमें यदि भारत की स्‍थ‍िति देखें तो तकरीबन 14 प्रतिशत जनसंख्‍या अल्पपोषित या कहें कुपोषित है।

इसके अलावा ‘द लैंसेट’ की जारी रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की 1.04 मिलियन मौंतों में से तकरीबन दो-तिहाई की मृत्यु का कारण कुपोषण रहा है । वैसे इस कुपोषण को दूर करने के लिए देश में स्‍वास्‍थ्‍य विभाग एवं महि‍ला एवं बाल विकास विभाग द्वारा बच्‍चे के जन्‍म के बाद शुरू आहार से लेकर आंगनबाड़ी केन्‍द्रों के माध्‍यम से भरपेट भोजन दिए जाने के अनेकों सकारात्‍मक प्रयोग एवं प्रयास किए जा रहे हैं ।

इसे लेकर आज देश में राष्ट्रीय पोषण नीति, मिड-डे मील कार्यक्रम, भारतीय पोषण कृषि कोष और पोषण अभियान जैसे तमाम अभियान केंद्र एवं राज्‍य सरकारों द्वारा चलाए जा रहे हैं, किंतु यह कुपोषण है कि समाप्‍त होने का नाम ही नहीं ले रहा। इन परिस्‍थ‍ितियों को देखते हुए भारतीय वैज्ञानिकों ने तय किया है कि वर्ष 2023 जिसे कि संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने ‘मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष’ घोषित किया है में वे मोटे अनाज संबंधी बीजों जिसमें कि बाजरा, ज्वार, जौ या कोदी जैसी फसलें आती हैं उनमें आमूलचूल परिवर्तन करते हुए उसे इस तरह से तैयार कर देंगे कि बच्‍चों को बचपन से ही आहार में पौषक तत्‍व भरपूर मात्रा में मिलेंगे और वह कुपोषण से मुक्‍त रहते हुए स्‍वस्‍थ जीवन जी सकेंगे ।

इस संबंध में व्‍यापक शोध कार्य देश की प्रतिष्ठित संस्था वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद ( कॉन्‍सिल ऑफ साइन्‍टिफिक एण्‍ड इंडस्‍ट्रीयल रिसर्च, सीएसआईआर ) अपने यहां शुरू करने जा रही है। पूरे शोध कार्य को आगामी एक वर्ष में पूर्ण करने की योजना है। मोटे अनाज के बीज के जीन (डीएनए) में सुधार करते हुए उसे अधिक पौषक बनाने की यह पूरी तैयारी है। अपनी इस संपूर्ण कार्य योजना को लेकर सचिव,डीएसआईआर एवं महानिदेशक सीएसआइआर के महानिदेशक डॉ. शेखर सी. मांडे का कहना है कि वर्ष 2023 को हम मिलेट (बाजरा) ईयर के रूप में मनाने जा रहे हैं, जोकि कुपोषण के खिलाफ एक बड़ी मुहिम है। हमारे प्रयास हैं कि हम मोटे अनाजों को पोषक तत्वों से भरपूर बना पाएं । वे कहते हैं कि अपने नए अनुसंधान के बाद हमारा प्रयास रहेगा कि लोगों को इसके इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करने में हम सफल हो सकें।

उल्‍लेखनीय है कि सालाना 308 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन भारत में हो रहा है, वह अन्य देशों को पूर्ति भी कर रहा है। देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों में जीनोमिक्स, डिजिटल कृषि, जलवायु स्मार्ट प्रौद्योगिकियों व पद्धतियों, कुशल जल उपयोग उपकरण, उच्च उपज वाली एवं जैव अनुकूल किस्मों के विकास, सुव्‍यवस्‍थित उत्पादन, गुणवत्‍ता तथा सुरक्षा मानकों को लेकर कृषि अनुसंधान में ठोस प्रयास हुए हैं । सिर्फ फील्ड और बागवानी फसलें ही नहीं बल्कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (एनएआरएस) द्वारा विकसित की गई फसलों की नई उच्च पैदावार वाली तकनीक ने देश की खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने में मूलभूत भूमिका निभाई है।

इसके माध्यम से अकेले ही विभिन्न फील्ड और बागवानी फसलों की पांच हजार पांच सौ से अधिक किस्में विकसित की हैं। सत्‍तर फील्ड फसलों की एक हजार पांचसौ पिचहत्‍तर किस्में विकसित की गई हैं। अकेले अनाजों की सात सौ सत्‍तर, तिलहनों की दौसौ पैतीस, दालों की दौसौ छत्‍तीस , रेशा फसलों की एकसौ सत्‍तर , चारा फसलों की एकसौ चार , गन्ने की बावन तथा अन्य फसलों की आठ किस्में अब तक विकसित की जा चुकी हैं। बावजूद इसके कुपोषण को हम नहीं हरा सके हैं, ऐसे में अब भारतीय वैज्ञानिकों का ध्‍यान इसे सामान्‍य आहार के जरिए ही पूरी तरह से समाप्‍त करने की ओर गया है।

हिन्‍दुस्‍थान समाचार/ डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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