केन्द्र सरकार ने बुधवार को टेक्सटाइल सेक्टर के लिए 10,683 करोड़ रुपये की प्रोडक्शन-लिंक्ड-इन्सेंटव स्कीम को मंजूरी दी है. इस स्कीम की कवरेज और अपेक्षित फायदे इस प्रकार हैं:
- इस स्कीम से देश में टेक्सटाइल मैन्यूफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा.
- सरकार इस स्कीम के सहारे घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को रफ्तार देना चाहती है ताकि देश में कोरोना के बाद रोजगार में इजाफा किया जा सके.
- टेक्सटाइल कंपनियों की लिए इस पीएलआई स्कीम से इस सेक्टर में और इसकी सहायक गतिविधियोंं के जरिये कई लाख रोजगार का सृजन होगा.
- पीएलआई स्कीम के तहत कंपनियों को पांच साल तक इन्सेंटिव का भुगतान किया जाएगा.
- इसके तहत मेन मेड फाइबर, मेन मेड अपैरल, मेन मेड फेब्रिक, गारमेंट और टेक्निकल टेक्सटाइल के दस सेगमेंट या प्रोडक्ट के निर्माण को कवर किया जाएगा.
- इस पीएलआई स्कीम से टेक्सटाइल सेक्टर में पांच साल के दौरान 19 हजार करोड़ रुपये का निवेश होगा.
- इसके जरिये इस सेक्टर का कुल टर्नओवर बढ़ कर 3 लाख करोड़ रुपये का हो सकता है.
- पीएलआई स्कीम के तहत 2021-22 के लिए सरकार को 1.97 लाख करोड़ रुपये खर्च करने हैं.
- पांच साल के अंदर इस स्कीम के तहत 13 सेक्टरों के लिए 37.5 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे.
- स्कीम के तहत टियर-3 और टियर-4 शहरों मैन्यूफैक्चरिंग कैपिसिटी बढ़ाने के लिए संयंत्र लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.
- पीएलआई स्कीम की वजह से महिलाओं के रोजगार को प्रोत्साहन मिलेगा और अर्थव्यवस्था के औपचारिक क्षेत्र से वे जुड़े सकेंगीं.
- स्कीम से गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब, ओडिशा जैसे राज्यों को काफी मदद मिलेगी.
इसमें कोई शक नहीं कि पीएलआई स्कीम उद्योग बढ़ावा और रोजगार सृजन के लिए एक अहम कदम है और सभी संबंधित सरकारी विभागों एवं उद्योग चेम्बर्स को इसका फायदा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँच पाए- कोशिश करनी होगी.
लेकिन जो प्रमुख समस्या है, वह सरकार द्वारा स्कीम इंसेंटिव समय पर व्यापारी को नहीं मिलने की, जिसके कारण उसकी कार्यशील पूंजी अटक जाती है और व्यापार बढ़ने की बजाय बंद होने के कगार पर आ जाता है.
चाहे इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर हो या फिर हस्तशिल्प या हथकरघा- उदाहरण है कि सरकार द्वारा समय पर फंड नहीं मिलने के कारण ये सेक्टर न आर्डर पूरा कर पाए और न ही इस स्कीम का कोई लाभ मिल सका.
सरकार द्वारा स्कीम की घोषणा करना, कागजों पर होने वाले इसके फायदों को दिखाना, उद्योग और रोजगार के लिए सोचना, प्रचार प्रसार करना अच्छी बात है लेकिन धरातल पर योजना का क्रियान्वयन और इसके अपेक्षित लाभ पाना असली उदेश्य होना चाहिए.
समय पर फंड नहीं मिलना न्याय मिलने में देरी के समान है जिसका कोई लाभ भविष्य में नहीं होता और इसलिए सरकार को इन स्कीमों का फायदा सही मायने में परिलक्षित करने के लिए फंड की व्यवस्था समय पर सुनिश्चित करनी पड़ेगी तभी कागजों पर लिखे फायदे हकीकत रुप लेंगे- नहीं तो प्रचार प्रसार तो हो ही रहा है.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर