क्या शिक्षा की नई नीति कारगर होगी इस क्षेत्र के बदलते स्वरूप पर?

आनलाइन शिक्षा और परीक्षा इस क्षेत्र के नए मापदंड के रूप में उभर रहे हैं और ऐसे में नई शिक्षा नीति में इसकी मान्यता, परीक्षा का स्वरूप और बच्चों का मानसिक विकास एवं विषय का ज्ञान को समाहित करना जरूरी होगा.

साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि यह क्षेत्र मुनाफाखोरी का अड्डा न बनें और सभी को शिक्षा सहज, सरल एवं सस्ते तरीके से आसानी से मिलें.

भारत में इस क्षेत्र को मुनाफाखोरी से दूर रखने और जनहित में काम करने के लिए न केवल निजी शिक्षण संस्थानों और महाविद्यालयों पर नकेल कसनी पड़ेगी बल्कि आनलाइन शिक्षण पोर्टल और कंपनियों को भी नियामक के दायरे में लाना पड़ेगा क्योंकि यह क्षेत्र पूंजीपतियों का नहीं, समाज सेवकों का होना चाहिए.

इसमें कोई शक नहीं कि चीन का अधिनायकवाद बड़े पूंजीपतियों और व्यापार के लिए हानिकारक है लेकिन जनहित के क्षेत्रों में लाभदायक है. अभी हाल में ही चीन ने एजुकेशन कंपनियों को अपने इधर पूंजी जुटाने, मुनाफाखोरी करने और स्कूल पाठ्यक्रम में मुनाफा कमाने पर रोक लगा दी है. ऐसा होने से चीन के कई व्यापारी दुनिया के अरबपतियों की सूची से बाहर हो गए हैं.

जनहित में शिक्षा के क्षेत्र में हमारे देश में यह बदलाव करना बहुत जरूरी है, लेकिन ऐसा हो पाएगा- कहना मुश्किल है.

भारत की शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही पहली युनिकार्न स्टार्ट अप बाईजू़ एक बड़ी पूंजीपति कंपनी बनने की ओर अग्रसर है.

दिग्गज एडटेक कंपनी बाईजू ने बच्चों के डिजिटल रीडिंग प्लेटफॉर्म एपिक को लगभग Rs 3,729 करोड़ रुपये में खरीद लिया है.

कंपनी ने कहा है कि वह नॉर्थ अमेरिका में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को दिलचस्प बनाने के लिए इसका विस्तार करेगी और इसमें 7500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश करेगी.

कंपनी के मुताबिक इस अधिग्रहण से कंपनी को अमेरिका में अपनी स्थिति मजबूत करने में काफी मदद मिलेगा .

कंपनी एपिक के मौजूदा यूजर्स बेस में 20 लाख से अधिक टीचर्स और 5 करोड़ से अधिक बच्चों को जोड़ सकेगी.

एपिक के सीईओ सुरेन मार्कोसियन और को- फाउंडर केविन डोनह्यू पहले की तरह ही इसमें काम करते रहेंगे.

बायजू के फाउंडर और सीईओ बायजू रवींद्रन ने कहा कि एपिक के साथ साझेदारी कंपनी को वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ाएगी. इससे बच्चों में पढ़ने और सीखने की दिलचस्पी बढ़ाने में मदद मिलेगी.

इससे पहले इस साल इसने आकाश इंस्टीट्यूट को 1 अरब डॉलर में खरीदा था.

इससे पहले 2019 में इसने अमेरिका की एजुकेशनल खिलौना कंपनी ओस्मो को 12 करोड़ डॉलर में खरीदा था.

अपनी इन डील को फंड करने के लिये बायजू लगातार रकम जुटा रही है.

पिछले एक साल में कंपनी यूबीएस ग्रुप, ब्लैकस्टोन, अबुधाबी फंड जैसे दिग्गज निवेशकों से 2.5 अरब डॉलर जुटा चुकी है.

बायजू ने ‘फ्रीमियम’ बिजनेस मॉडल अपनाया जो फ्री और प्रीमियम शिक्षण मॉड्यूल का जोड़ है.

यह इंटरनेट के कारोबारों और स्मार्टफोन ऐड डेवलपर के बीच सबसे सबसे प्रमुख बिजनेस मॉडल के तौर पर उभरा है, जिसमें यूजर शुरुआत में बगैर किसी लागत के और फिर फ्री में विषय सामग्री हासिल करते हैं.

बायजू के कमाई के स्रोतों में ग्राहक शुल्क भी हैं. अपनी वेबसाइट पर प्रोडक्ट की खरीद और ऑफलाइन करियर परामर्श और कोचिंग से भी कंपनी को आय होती है.

*साफ है समय की मांग है कि शिक्षण क्षेत्र में नकेल नहीं कसी जाती है और आनलाइन शिक्षण व्यवस्था को नई शिक्षा नीति का हिस्सा यदि नहीं बनाया जाता तो यह क्षेत्र भी पूंजीपतियों और मुनाफाखोरी का अड्डा बन जाएगा और तब बहुत देर हो चुकी होगी और भुगतेगा कौन- देश की बेचारी और निरिह जनता!*

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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