सूचना के अधिकार कानून के तहत सरकार और संवैधानिक संस्थान तय करती है कि सूचना निजी है या नहीं.
मापदंडों की व्याख्या नहीं होने के कारण सही सूचना जनता को नहीं मिल पाती है और सरकारी विभागों को जो सूचना नहीं देनी होती, उसे निजी बताकर मना कर दिया जाता है. खासकर कोविड काल में इस बहाने का बहुत उपयोग किया जा रहा है.
आपको जानकर हैरानी होगी निजता की सूचना और हनन को लेकर अब बैंक और आरबीआई आमने सामने हो गए हैं और मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पहुँच गया है.
यह देश की विडम्बना है कि इस समय आरटीआई कानून का सबसे कमजोर रुप दिखाई दे रहा है जहाँ जनता के पैसे का इस्तेमाल करने वाले सरकारी विभाग तो निजता के हनन का उपयोग कर सूचना देना नहीं चाहते और वहीं दूसरी ओर सरकार हर किसी से लोगों की निजी सूचना लेना चाहती है.
आरबीआई चाहती है बैंक अपने ग्राहकों की निरीक्षण रिपोर्ट आरटीआई के तहत पब्लिक प्लेटफार्म पर मांगने पर दें, इसे आम सूचना माना जावें- जिसका विरोध लगभग सभी बैंकों ने किया है और सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ अपील करते हुए कहा कि यह सूचना न केवल निजता का हनन है बल्कि इससे बैंकों के व्यापार पर भी असर पड़ेगा.
निजी बैंकों का कहना है कि आरटीआई केवल सरकारी दफ्तरों और संस्थानों पर लागू होता है.
एसबीआई, पंजाब नेशनल बैंक, केनरा बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और एचडीएफसी बैंक लिमिटेड ने जयंतीलाल एन मिस्त्री मामले में 2015 के न्यायालय के रिजर्व बैंक को सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत आवेदकों को महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने के निर्देश से जुड़े फैसले के विरोध में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है.
एचडीएफसी बैंक की तरफ से कहा गया है कि बैंक उस मामले में कोई पक्ष नहीं थे, जिसमें यह फैसला आया था.
आरटीआई कानून के तहत गोपनीय सूचना को देने पर पाबंदी है.
*साफ है कि कौनसी सूचना आम है या गोपनीय, संवेदनशील है या असंवेदनशील, देशहित और जनहित में है या विरोध में, जनता का पैसा लगा है या निजी, आदि ?*
*इसकी विस्तृत व्याख्या सरकार को करनी होगी अन्यथा आरटीआई कानून सिर्फ नाम का ही रह जाएगा और निजी एवं गोपनीय संबंधित सूचनाओं के विवाद न्यायालयों में बढ़ते जाऐंगे.
*निजता क्या है और कितनी सूचना निजता के दायरे में नहीं आती, इसके मापदंड अंतर्राष्ट्रीय शर्तों के अनुसार सरकार को जल्द तय करने होंगे, नहीं तो निजता के हनन के मामले देश में व्यापक स्तर पर उठते रहेंगे और सरकार जनहित कार्यो को छोड़कर निजता पर बहस करती नज़र आएगी.
*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर