क्या एलआईसी का निजीकरण और विनिवेश सरकार का सही कदम?

 

 

एलआईसी की सूचीबद्धता सरकार के चालू वित्त वर्ष के विनिवेश लक्ष्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है.
सरकार ने चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है.
इस 1.75 लाख करोड़ रुपये में एक लाख करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों में सरकार की हिस्सेदारी बिक्री से जुटाए जाएंगे.
शेष 75,000 करोड़ रुपये केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के विनिवेश से आएंगे.
एलआईसी की तरफ से जारी लेटेस्ट एनुअल रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2019-20 के खत्म होने पर एलआईसी की टोटल असेट 32 लाख करोड़ रुपए मानी जा रही है.
डोमेस्टिक इंश्योरेंस सेक्टर में उसका मार्केट शेयर 70 फीसदी के करीब है.
सरकार के पास इस समय कंपनी में 100 फीसदी हिस्सेदारी है.
आईडीबीआई बैंक में भी सरकार की हिस्सेदारी के साथ एलआईसी की हिस्सेदारी बेची जाएगी.
केंद्र सरकार और एलआईसी दोनों की मिलाकर आईडीबीआई बैंक में 94 प्रतिशत हिस्सेदारी है.
एलआईसी के पास फिलहाल बैंक का प्रबंधन नियंत्रण है.
बैंक में उसकी हिस्सेदारी 49.24 प्रतिशत है. वहीं सरकार की बैंक में 45.48 प्रतिशत हिस्सेदारी है.
गैर-प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 5.29 प्रतिशत है.
बीमा कंपनी एलआईसी ने जनवरी 2019 में आईडीबीआई बैंक में नियंत्रण हिस्सेदारी हासिल की थी.
सरकार की इक्विटी का प्रबंधन करने वाले दीपम ने मर्चेंट बैंकरों को स्पष्ट किया है कि आईडीबीआई बैंक में सरकार की हिस्सेदारी के साथ एलआईसी की हिस्सेदारी भी बेची जाएगी.

*उपरोक्त तथ्यों से साफ है कि:

1. सरकार की मंजूरी के बाद एलआईसी का आईपीओ देश के सबसे बड़ा सार्वजनिक निगम होगा.
2. इस आईपीओ की साइज़ लगभग 60 से 70 हजार करोड़ रुपये की होना तय है.
3. इस आईपीओ के तहत 32 लाख करोड़ रुपये की प्रापर्टी की मालिक एलआईसी मात्र 60 हजार करोड़ रुपये के आईपीओ द्वारा निजी हाथों में चली जावेगी.
4. जीवन बीमा किसी भी देश और सरकार का सामाजिक दायित्व होता है और सरकार का नियंत्रण जनता का भरोसा होता है.
5. बीमा व्यवसाय का आज भी 70% हिस्सा एलआईसी के पास होना सरकार के प्रति भरोसा दर्शाता है और लोगों को अपना निवेश सुरक्षित दिखता है.
6. आईडीबीआई बैंक में लोगों का भरोसा सिर्फ और सिर्फ एलआईसी एवं सरकारी नियंत्रण के कारण कायम है.
7. सरकार मात्र पैसे की उगाही के लिए पिछले 60 सालों में खड़ी की गई सामाजिक सरोकार वाली एलआईसी को बेचना कहीं से भी न्यायोचित नहीं हो सकता.
8. कंपनी का असली मुल्यांकन किया ही नहीं जा सकता क्योंकि लोगों के भरोसे का कोई मुल्यांकन नहीं होता और निजी हाथों में जाने के बाद एलआईसी और आईडीबीआई पर से लोगों का भरोसा कम ही होगा.
9. इससे अच्छा तो ये होता कि जनहितैषी और सामाजिक सरोकार वाली कंपनियों का निजीकरण न करके, इनके प्रबंधन को दुरुस्त किया जावे.
10. विनिवेश सिर्फ व्यापार और व्यवसाय में लगी कंपनी का होना चाहिए जहाँ मुख्य उद्देश्य सिर्फ व्यवसायिकरण हो.
*कहने का मतलब साफ है, विनिवेश और निजीकरण का मुख्य उद्देश्य जनहित और देशहित ही होना चाहिए, पैसौ की उगाही के लिए अन्य कई संसाधन हैं. सरकारी पैसे का सही उपयोग और उसकी बरबादी न करना, सरकारी खर्चे और मंत्रीमंडल की बैठकों पर लगाम कसना ही असली विनिवेश और निजीकरण होगा.।

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

Shares