सहकारिता मंत्रालय के गठन के साथ ही केन्द्र सरकार ने साफ कर दिया है कि देश में आर्थिक गतिविधियों को करने का नया स्वरूप सहकारिता होगा.
कंपनी मामलों के मंत्रालय के जैसे सहकारिता मंत्रालय का गठन एक क्रांतिकारी कदम है एवं उसका जिम्मा भी सौंपा है देश के गृह मंत्री अमित शाह को जो कि अपनी तेज तर्रार निर्णायक क्षमता के लिए जाने जाते हैं.
मोदी सरकार 2.0 ने आते के साथ ही सहकारिता के क्षेत्र में अपनी रुचि दिखाई थी और देश में छोटे उद्योग के विकास एवं रोजगार सृजन में इसके योगदान की असीम संभावनाएं व्यक्त की थी.
2019 में रेरा के अन्तर्गत तैयार प्रोजेक्ट और उनकी हाउसिंग सोसाइटी को सहकारिता में लाने का निर्णय किया गया था.
इसी तरह 2020 में आयुष्मान सहकार योजना के तहत सहकारी समितियों को प्रोत्साहित किया गया कि वे ग्रामीण क्षेत्र में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र और अस्पतालों को स्थापित करें.
2021 में सभी सहकारी बैंक और वित्तीय संस्थाओं को आरबीआई के नियमों के तहत लाना और निर्देश जारी करना कि कोई भी निदेशक राजनीतिक या व्यापारिक समूह से नहीं होगा.
और अब सहकारिता मंत्रालय का गठन- दर्शाता है कि सरकार के कदम सहकारिता क्षेत्र को एक नया बिजनेस माडल बनाना चाहती है जो अब मापदंडों और नियमों के अधीन चलेगा ताकि सहकारी समितियां भ्रष्टाचार और लूट का केंद्र न बनें. अलग अलग राज्यों के नियमों के अधीन होने की बजाय एक केन्द्रीय अधिनियम के अन्तर्गत काम करें.
व्यापारिक मंडलों और चेम्बर्स को छोटे उद्योगपतियों और व्यापारियों के साथ इस नये बिजनेस माडल को समझना होगा और व्यापारिक संभावनाएं तलाशनी होगी.
केन्द्र सरकार भी भलीभांति समझती है कि कार्पोरेट मंत्रालय और उसके कठिन अनुपालन अब बड़े व्यापारिक समूह के बस की बात ही रह गई है और इसलिए यदि छोटे व्यापारियों को बड़ा बनना है तो सहकारिता क्षेत्र को अपनाना पड़ेगा, एकजुट होकर बड़ा बनना पड़ेगा.
चाहे उद्योग हो, व्यापार हो या फिर सेवा क्षेत्र- अकेले चलने का समय अब नहीं रहा, अब चलना है तो साथ और इसका नया मूल मंत्र है- सहकारिता.
*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर