अब आरबीआई ने भी माना कि सरकारी बैंकों की हालत होगी और खराब, एनपीए भी बेरोजगारी और मंहगाई की तरह होंगे उच्च स्तर पर.
क्या होता है एनपीए
बैंक का जो कर्ज फंस जाता है या जिसकी वसूली समय से नहीं होती है उसे नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी एनपीए कहा जाता है.
इसकी गणना बैंको के कुल बांटे ऋण के अनुपात में की जाती है.
ऐसे में आंकड़ों को समझना हो तो ऐसे समझें कि माना किसी बैंक ने 100 रुपये का ऋण दिया तो आरबीआई की रिपोर्ट के हिसाब से मार्च 2022 तक उसमें से 9.8 रुपये की वसूली नहीं हो पाएगी और ये एनपीए हो जाएगा.
आरबीआई ने अपनी नई वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट गुरुवार को जारी की
इसमें कहा गया है कि बेसलाइन परिदृश्य में भी बैंकों का ग्रॉस एनपीए मार्च 2022 तक बढ़कर कुल 9.8% हो सकता है. जबकि बहुत ज्यादा दबाव की स्थिति में ये बढ़कर 11.22% तक हो सकता है. मार्च 2021 तक बैंकों का ग्रॉस एनपीए 7.48% रहा था.
आरबीआई की रिपोर्ट में भले बैंकिंग सेक्टर का ग्रॉस एनपीए बढ़ने का अनुमान जताया गया हो, लेकिन ये भी कहा गया है कि बैंकों के पास अपने-अपने स्तर पर और सभी को मिलाकर यानी एग्रीगेट लेवल पर भी पर्याप्त पूंजी रहेगी.
ऐसे में अब एनपीए बढ़ने से बैंकों की सेहत और पूंजी पर क्या असर होगा ये देखना होगा.
आरबीआई ने इससे पहले जनवरी में वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जारी की थी, तब उसने कहा था कि सितंबर 2021 तक बैंकों का ग्रॉस एनपीए 13.5% हो जाएगा जो 22 साल में सबसे अधिक ऊंचा स्तर होगा.
आरबीआई की रिपोर्ट में साफ कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का ग्रॉस एनपीए मार्च 2021 में 9.54% था जो मार्च 2022 तक बढ़कर 12.52% हो सकता है.
जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों का ग्रॉस एनपीए मार्च 2021 तक बढ़कर 6.04% से 6.46% तक और विदेशी बैंकों का एनपीए 5.35% से 5.97% के बीच रह सकता है.
वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट साफ तरह से दर्शाती है कि उधार पर उधार देने की नीति एनपीए स्तर को कुछ समय के लिए बढ़ने से रोक सकती हैं, लेकिन एनपीए जबरदस्त तरीके से अर्थव्यवस्था में बढ़ने वाले है जो सरकारी बैंकों की सेहत पर बुरा प्रभाव डालने वाले है.
बैंक नया लोन या अतिरिक्त लोन या रिस्ट्रकचरिंग करने से पहले खाते की विवेचना, समीक्षा और उसका आंकलन सही ढंग से करें ताकि जिस क्षेत्र में व्यापार और प्रमोटर में गुंजाइश नजर आती है, वहीं आगे बढ़े और ऐसा करते हुए ही एनपीए का स्तर नियंत्रण में रह सकता है अन्यथा सरकारी बैंकों पर विपरीत असर पड़ना तय है.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर