पहले लाॅकडाउन ने कमर तोड़ी…और अब महंगाई के करंट का झटका

 

*पेट्रोल महंगा…रसोई गैस ने भी बिगाड़ा लोगों के घर का बजट*

सबसे अधिक परेशानी मध्यम वर्गीय लोगों की….न मांग सकते है और न अपना दुखड़ा सुना सकते है

शुभम जायसवाल :

उज्जैन। महंगाई आसमां छू रही है…चाहे पेट्रोल की कीमत हो या फिर रसोई गैस की या फिर दाल और सब्जी ही क्यों न हो, हर तरफ महंगाई ही महंगाई हो गई है। बीते दो वर्षों से *आम नागरिकों की आर्थिक कमर लाॅकडाउन ने पहले से ही तोड़ रखी है और अब दिनों दिन बढ़ती महंगाई डायन निगल रही है….।*
इस महंगाई के जमाने में सबसे अधिक यदि हालत खराब है तो मध्यमवर्गीय लोगों की। जो न सरकार से किसी तरह की अपेक्षा कर सकते है और न मांग सकते है। इतना ही नहीं स्थिति यह होती है अपनी आर्थिक हालत के बारे में किसी के सामने दुखड़ा भी नहीं सुना सकते है। हालांकि ऐसे वर्ग के लोगों की पीड़ा यह है कि वैसे ही पहले लाॅकडाउन और अब जनता कफ्र्यू ने पारिवारिक आर्थिक स्थिति चरमरा दी है और उपर से बढ़ती महंगाई ने ओर अधिक परेशानी को खड़ा कर दिया है। बता दें कि पेट्रोल की कीम 107 रूपए प्रति लीटर तक पहुंच गई है वहीं हाल ही मे घरेलू रसोई गैस सिलेण्डर भी महंगा हो गया है। इसके साथ ही रोजमर्रा की वस्तुओं की भी कीमत दिनों दिन बढ़ रही है। एक तरफ आबादी कोरोना के बढ़ते संक्रमण से जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है। वहीं दूसरी ओर दवाइयों और इलाज के खर्चों का बोझ झेल रहे आम आदमी को अब किचन के बजट के लिए भी जद्दोजहद का सामना करना पड़ रहा है। खाने-पीने की चीजों का दाम आसमान छू रहा है. हालत ये है कि अब खुदरा दुकानों पर कम संख्‍या में ही लोग आ रहे हैं  जो खरीदारी कर भी रहे हैं, वो अब पहले की तुलना में कम क्‍वांटिटी में ही खरीदारी कर रहे हैं। अगर दाल की ही बात करें तो बीते 15 दिन में इसमें बड़ा इजाफा देखने को मिल रहा है। अरहर की दाल करीब 100 रुपये प्रति किलोग्राम थी, वो आज 150 रुपये बिक रही है। इसी प्रकार उड़द की दाल का भाव बीते 15 दिन में 115 रुपये से बढ़कर 170 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच चुकी है। मसूर की दाल का भाव 70 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर अब 90 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया है। इसी प्रकार खाने के तेल का दाम भी बढ़ा है। सरकार महंगाई पर नियंत्रण पाने में सफल नहीं हुई। महंगाई पर नियंत्रण करने की जगह सरकार आंकड़ों के जरिए अपनी साख बचाने में लगी हुई है। पेट्रोल के बढ़ती हुई कीमतों को भी प्रतिशत के अनुसार जनता के सामने ला कर ये बताया जाता है कि कोई और सरकार होती तो कीमत ज्यादा होती। महंगाई की मार से आम आदमी का बजट बिगड़ गया है। सरकार चाहे तो कीमतों पर नियंत्रण कर सकती है, मगर इसके लिए उसे कड़े कदम उठाने पड़ेंगे। हमारे यहां भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था न होने और परिवहन व्यवस्था भी ठीक न होने के कारण सब्जियाँ, फल, दूध वगैरह ही नहीं सड़ता, बल्कि अनाज तक सड़ जाता है, जो एक अक्षम्य अपराध है। फिर वायदा कारोबार, आयात-निर्यात में दिशाहीनता, जमाखोरी और कालाबाजारी की समस्याएँ भी अपनी जगह हैं। सरकार यहाँ हस्तक्षेप कर सकती है, मगर उसे गरीब की सब्जी-रोटी की चिंता हो तो ही तो वह हस्तक्षेप करेगी? वह गरीब आदमी के धैर्य की परीक्षा ले रही लगती है।

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