एमएसएमई योजनाओं में सरकार के पास वित्त उपलब्ध न होना, बना विकास में रोड़ा

 

 

एक तरफ सरकार एमएसएमई को अर्थव्यवस्था का इंजिन मानती है, उनके लिए विभिन्न योजनाएँ, सब्सिडी और प्रोत्साहन राशि की घोषणाएं की जाती है, तो दूसरी तरफ इन योजनाओं के संपादन के लिए वित्त की उपलब्धता न होना और इसका समय पर न मिलना, एमएसएमई क्षेत्र के विकसित न होने का मुख्य कारण है.

हाल का ही उदाहरण लें तो आप पाएंगे कि हस्तशिल्प उद्योग से जुड़े निर्यातकों को दो वर्षों से निर्यात प्रोत्साहन राशि नहीं मिल सकी है।

ऐसे में उनके लिए निर्यात को गति देने में दिक्कत आ रही है।

अब वाणिज्य मंत्रालय ने एक रास्ता सुझाया है- इसके तहत निर्यातकों को बैंकों के जरिये न्यूनतम ब्याज पर लोन दिलाने की व्यवस्था की जा रही है।

इससे निर्यातकों की समस्या का समाधान तो हो जाएगा, लेकिन उन पर दो से ढाई फीसद ब्याज का अतिरिक्त बोझ पडे़गा।

केंद्र सरकार ने निर्यात प्रोत्साहन राशि के रूप में 9,000 करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी।

मुरादाबाद के निर्यातकों को मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट फ्रॉम इंडिया स्कीम (एमईआइएस) में 400 करोड़ रुपये मिलने थे। लेकिन कोरोना संकट के बीच यह राशि नहीं मिली।

कोरोना की दूसरी लहर का असर कम होने के साथ ही मुरादाबाद के हस्तशिल्प निर्यातकों के पास ऑर्डर खूब आए हैं। इन्हें पूरा करने के लिए निर्यातकों को बड़ी धनराशि चाहिए।

इसके लिए निर्यातकों ने वाणिज्य मंत्रालय, वित्त मंत्रालय से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक को पत्र लिखे, पर नतीजा कोई नहीं निकला।

निर्यातकों के प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय वाणिज्य सचिव अनूप वधावन से मुलाकात की।

वहां इस बात पर सहमति बनी कि जब तक सरकार से प्रोत्साहन राशि का भुगतान नहीं होता है, तब तक के लिए निर्यातकों को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के सहयोग से न्यूनतम ब्याज पर पूंजी की व्यवस्था करा दी जाए।

इस संबंध में आरबीआई बैंकों को एक पत्र जारी करेगा।

इसके तहत बैंकों से कर्ज लेकर निर्यातक अपने ऑर्डर पूरे करेंगे।

इसके बाद सरकार से भुगतान मिलने पर वह राशि बैंकों को दे दी जाएगी.

*लेकिन आरबीआई कब पत्र जारी करेगा और बैंक कब लोन देंगे, तब तक आर्डर ही कैंसिल न हो जाए और एमएसएमई की परेशानी को लेकर ऐसे अनगिनत उदाहरण है.*

केन्द्र सरकार का यह कैसा सुझाव- आखिर निर्यातक या एमएसएमई ही क्यों लोन लें, जब की पैसे सरकार नहीं दे पा रही.

क्यों नहीं सरकार खुद कर्ज लेकर, वित्त की व्यवस्था कर दें?

आरबीआई और बैंकों के जरिये कर्ज उपलब्ध कराकर, बैंकों के हालात को बिगाड़ने का क्या उदेश्य?

क्या विदेशी मुद्रा भंडार और सोने का भंडार सिर्फ प्रचार के लिए रखा गया है?

क्या इस भंडार के एवज में इस कठिन समय में सरकार लोन लेकर, कोविड मुआवजा, व्यापार प्रोत्साहन और अन्य नागरिक जरुरतों को पूरा नहीं करना चाहिए?

आज सरकार ने बड़ी स्पष्ट नीति बना ली है कि जिसे भी देश में राहत की जरूरत है, वो सरकारी बैंकों से लोन लेवें और अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दें.

क्या राहत, प्रोत्साहन और सब्सिडी भी लोन के जरिये मिलेगी, तो वापस कैसे होगी और क्या फिर बैंक नहीं डूबेंगे और यदि बैंक डूबेंगे तो अर्थव्यवस्था और छोटे उद्योगों का क्या होगा, इसका उत्तर किसी के पास नहीं है.

सरकार अपनी जबाबदारी और जिम्मेदारी से भागेगी और दूसरे के कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की नीति बदलनी होगी.

लोन की घोषणाएं छोड़कर सरकार परोक्ष रुप से जन सामान्य को राहत दें, इसके लिए चाहे उसे अधिक नोट छापने पड़े या विश्व बैंक से कर्जा लेना पड़े ।

केन्द्र सरकार को तटस्थ होकर सभी को राहत प्रदान करते हुए वित्त की उपलब्धता करनी होगी और यह कह देने से कि हमारे पास पैसे नहीं है से देश नहीं चलेगा और अर्थव्यवस्था नहीं संभलेगी और साथ ही केन्द्र एवं राज्यों में तकरार और बढ़ेगा.।(लेखक के स्वयं के विचार है मध्य उदय किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं है)

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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