नई दिल्ली स्थित एम्स के नेतृत्व में डब्ल्यूएचओ-एम्स (WHO-AIIMS) सीरोप्रवलेंस स्टडी की गई. ये स्टडी दिल्ली, फरीदाबाद, भुवनेश्वर, गोरखपुर और अगरतला के शहरी और ग्रामीण इलाके में की गई. इसके मुताबिक दक्षिणी दिल्ली के शहरी क्षेत्र में पुनर्वास कॉलोनी, जहां घनी आबादी है, दूसरी लहर से पहले भी 74.7% की सीरोप्रवलेंस थी. ये किसी भी सीरो-आकलन (Sero-Assessment) में अब तक की सबसे अधिक रिपोर्ट की गई.
स्टडी के मुताबिक, दक्षिण दिल्ली में 0-18 आयु वर्ग (स्कूल जाने वाले) आयु वर्ग में उतनी ही सीरोप्रवलेंस (73.9%) पाई गई जितनी 18 साल (74.8%) से ज्यादा उम्र के लोगों में थी.
WHO-AIIMS स्टडी के अनुसार, दिल्ली और एनसीआर (फरीदाबाद) के इन क्षेत्रों में तीव्र कोरोना की दूसरी लहर के बाद अधिक सीरोप्रवलेंस हो सकता है. सीरोप्रवलेंस के ये स्तर ‘तीसरी लहर’ के खिलाफ सुरक्षात्मक हो सकता है.
इसके अलावा दूसरी लहर के दौरान, फरीदाबाद (ग्रामीण क्षेत्र) एनसीआर में 59.3% (दोनों आयु समूहों में लगभग बराबर) की सीरोप्रवलेंस है, जिसे पिछले राष्ट्रीय सर्वे की तुलना में उच्च माना जा सकता है. गोरखपुर ग्रामीण में 87.9% की सबसे ज्यादा उच्च प्रसार दर है. 2 से 18 साल आयु वर्ग में 80.6% और 18 साल से ज्यादा में 90.3% हैं.
दिल्ली और यूपी दोनों में कोरोना केसों में पीक और तेज गिरावट को इन निष्कर्षों से आंशिक रूप से समझाया जा सकता है. कुल मिलाकर, सर्वेक्षण में शामिल ग्रामीण आबादी के आधे से अधिक (62.3%) में संक्रमण के सबूत मिले हैं.
अगरतला ग्रामीण इलाकों में कम से कम सीरोप्रवलेंस (51.9%) था. ऐसा शायद इसलिए हुआ क्योंकि इसमें कुछ आदिवासी आबादी भी शामिल थी, जो कम गतिशील होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कोरोना संक्रमण की संभावना कम होती है.