मिलावटखोरी और स्वास्थ्य संबंधित अपराध हमारे देश में उदार: इसे जघन्य अपराध की श्रेणी में लाने की जरूरत

 

माननीय उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनों दो मामलों में मिलावटखोरी को स्वास्थ्य संबंधित अपराध की श्रेणी में लाते हुए जोर दिया कि इन पर कड़े प्रावधानों की जरूरत और जमानत देने से मना कर दिया.

इन फैसलों के आधार पर सरकार को स्वास्थ्य संबंधित अपराधों को जघन्य अपराध की श्रेणी में डालना चाहिए ताकि कालाबाजारी, मिलावटखोरी, नकली दवाईयां, ईलाज में लापरवाही, अधिक दाम वसूलना, मुनाफाखोरी, आदि पर नकेल कसी जा सके और लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ बंद हो.

मामला मध्य प्रदेश के नीमच में पिछले साल दर्ज इस मुकदमे में दोनों गोयल बंधु पर आरोप है कि वे गेहूं को अखाद्य सुनहरे रंग का उपयोग कर और उन्हें पॉलिश करके बेच रहे थे।

दिसंबर, 2020 को छापे के बाद उनके परिसर से कई हजार किलो पॉलिश किए गए गेहूं की बोरियां जब्त की गईं।

दोनों पर भारतीय दंड संहिता के तहत खाद्य पदार्थों में मिलावट और हानिकारक खाद्य पदार्थ बेचने का मुकदमा दर्ज किया गया था।

बीते हफ्ते खाद्य पदार्थों में मिलावट के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को यह कहते हुए अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था कि खाद्य पदार्थो में मिलावट पूरे समाज के खिलाफ अपराध है।

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी से कहा था कि आप नकली खाद्य पदार्थ बेचकर न केवल एक व्यक्ति, बल्कि पूरे समाज को मारने की कोशिश कर रहे हैं।

इस तरह के अपराधों को हल्के में नहीं लिया जा सकता है।

यह मामला मिलावटी घी का था। आरोपी की दलील थी कि घी खाने के लिए नहीं थी, बल्कि वह मंदिरों में दीपक जलाने के लिए थी।

घी वाले मामले के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को खाद्य पदार्थों में मिलावट के नीमच मामले की सुनवाई के दौरान मिलावटखोर आरोपियों को यह कहकर अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया कि क्या वे अपने परिवार को मिलावटी खानपान की चीजें खिलाने को तैयार है, जो ग्राहकों को खिलाया जा रहा है।

जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने यह बात दो आरोपियों प्रवर गोयल और विनीत गोयल की अग्रिम जमानत की याचिका पर सुनवाई के दौरान कही।

आरोपियों के वकील ने जब यह कहा कि मामले के तथ्यों के कारण उनके मुवक्किलों को जमानत मिलनी चाहिए।

इस पर पीठ ने वकील से कहा, क्या आप या आपका परिवार यह खाना खाएंगे?

अगर आपका जवाब हां में है तो हम जमानत देने पर विचार करेंगे।

वकील द्वारा इस सवाल का जवाब देने में देरी किए जाने पर पीठ ने कहा, इन मामलों में जमानत मांगने वाले वकील के लिए इस तरह के एक बुनियादी सवाल का जवाब देना मुश्किल क्यों होना चाहिए।

इसका मतलब यह क्यों नहीं समझा जाना चाहिए कि बाकी लोगों को मरने दो। हमें क्यों परेशान होना चाहिए?

*सुप्रीम कोर्ट ने खाद्य पदार्थों में मिलावट के मामलों पर चिंता जताते हुए कहा, स्वास्थ्य से संबंधित अपराधों के मामले में हमारा देश बहुत उदार हैं।*

यह कहते हुए पीठ ने कहा कि हम दोनों आरोपियों को जमानत देने से पक्ष में नहीं हैं।

कोर्ट का रुख देखते हुए
वकील ने याचिका वापस ले ली।

*सुप्रीम कोर्ट के रुख से साफ है कि अब बारी सरकार और प्रशासन की है कि वह अब मिलावटखोरी और स्वास्थ्य संबंधित अपराधों पर ऐसी नकेल कसें कि स्वास्थ्य जैसा मानवता का क्षेत्र मुनाफाखोरी का अड्डा न बने और जल्द से जल्द कड़े कानून लागू किए जावें.

(लेख में लेखक के स्वयं के विचार है मध्य उदय किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं है)

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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