आरबीआई के दोहरे मापदंड, अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति को लेकर कर रहे देश को गुमराह:
एक तरफ तो आरबीआई बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार पर अपनी पीठ थपथपा रही है तो दूसरी ओर लोगों को शेयर मार्केट में पैसे लगाने के प्रति सचेत कर रही है.
जहाँ एक ओर आरबीआई अर्थव्यवस्था के प्रति गिरते कंज्यूमर कान्फिडेंस इंडेक्स से चिंतित है तो दूसरी ओर विकास दर प्रति सकारात्मक रुख रखती है.
आखिर देश की वास्तविक आर्थिक स्थिति क्या है?
आरबीआई को जल्द स्पष्टीकरण देना होगा अन्यथा सरकार राहत पैकेज पर फैसला नहीं ले पाएगी.
सरकार आंकड़े कह रहे हैं कि देश में बेरोजगारी चरम पर है, महंगाई अब तक के सबसे उच्च स्तर पर है और स्वास्थ्य सेवाओं में तथा टीकाकरण अव्यवस्थाओं से घिरा हुआ है.
छोटे उद्योग और एमएसएमई बंद होने के कगार पर है और बैंक में बढ़ते एनपीए से उनकी हालत दयनीय है और फिर भी आरबीआई बढ़ते विदेशी मुद्रा कोष को अर्थव्यवस्था की मजबूती बता रहा है.
विदेशी मुद्रा बढ़ने का कारण विदेशी निवेश का हमारे पूंजी और शेयर बाजार में आना है. ये विदेशी निवेशक हमारे बाजार में उठापटक कर फायदा भुनाकर निकल जाते हैं.
दूसरा कारण यदि हम समझेंगे तो पाएंगे कि हम उत्पादन बंद होने के कारण कच्चा माल और तेल का आयात कम कर रहे हैं और इससे हमारा विदेशी मुद्रा खर्च काफी कम हो गया है.
साफ है विदेशी मुद्रा भंडार हमारे कोष की मजबूती तो बताता है लेकिन अर्थव्यवस्था को प्रभावित नहीं करता. हमारी अर्थव्यवस्था जीडीपी के विकास पर आधारित है और इसके लिए जब तक आम जनता के हाथ में पैसे नहीं पहुंचेंगे तब तक अर्थव्यवस्था की रिकवरी संभव नहीं है.
इसलिए सरकार को जल्द राहत की घोषणा करनी चाहिए, जिसमें लोन की किश्तों पर मोरेटोरियम और ब्याज दर पर सब्सिडी, जीएसटी की दरों को कम करना, पेट्रोल डीजल पर से सेस कम करना, बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान और स्वास्थ्य संरचना का विकास एवं टीकाकरण में तेजी, आदि.
सरकार को चाहिए कि साथ ही शेयर बाजार पर नजर रखने वाली संस्था सेबी को सचेत करें कि जिन कम्पनियों में जमकर विदेशी निवेश हो रहा है, वहाँ पर ध्यान रखें कि ईमानदार और छोटे निवेशकों से धोखाधड़ी न हो और आरबीआई इस चीज को पक्का करें कि विदेशी पैसे का सही उपयोग हो.
इसके लिए यह नियम बनाना जरूरी है कि जो विदेशी निवेश आएगा, वह कम से कम 6 महीने देश में रहेगा.
साथ ही कोशिश यह करनी होगी कि देश में व्यापार और उत्पादन अपने सामान्य स्तर पर जल्द से जल्द शुरू हो ताकि बेरोजगारी, मंहगाई और बैंक के लोन खराब होने की समस्या से निजात पाया जा सकें.
*साफ है विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ एक प्रकार का रिजर्व है जो आरबीआई द्वारा डालर के मूल्य को नियंत्रित करने एवं विदेशी मुद्रा खर्च हेतु उपयोग किया जाता है और इसकी अधिकता हमारे खर्च करने की क्षमता दर्शाता है और अर्थव्यवस्था की दृष्टि से मात्र एक लघु और सीमित मापदंड हो सकता है जिसका प्रचार अर्थव्यवस्था की मजबूती के रूप में नहीं किया जा सकता। (लेख में लेखक के निजी विचार है इसके मध्य उदय किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं है)
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर