पुलिस अभिरक्षा में बंदी की मौत पर उत्तराधिकारियों को 5 लाख रूपये 2 माह में दें

 

*सोमवार, 22 मार्च 2021*

*पुलिस अभिरक्षा में बंदी की मौत पर उत्तराधिकारियों को 5 लाख रूपये 2 माह में दें*

*उच्च स्तरीय तथ्यान्वेषी समिति का गठन भी किया जाये*

*आयोग ने की अनुशंसा*

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने पुलिस अभिरक्षा में बंदी की मौत हो जाने के एक मामले में राज्य शासन से मृतक के उत्तराधिकारियों को पांच लाख रूपये क्षतिपूर्ति दो माह में देने की अनुशंसा की है। राज्य शासन चाहे, तो इस राशि की वसूली संबंधित पुलिस अधिकारी/पुलिसकर्मियों से कर सकता है। मामला वर्ष 2019 का है।
आयोग ने अपनी अनुशंसा में यह भी कहा है कि मध्यप्रदेश शासन पुलिस या जेल अभिरक्षा के दौरान बंदियों द्वारा की गई आत्महत्या के कारण अप्राकृतिक परिस्थितियों में हुई मृत्यु के मामलों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के संदर्भित मामले में दिये गये निर्णय और अभिरक्षा प्रबंधन के लिए ऐसी मृत्यु के उपरांत शीघ्र इस पर विचार एवं दोषी लोकसेवकों के विरूद्ध कार्यवाही करे। साथ ही मृतकों के परिजनों को यथाशीघ्र आर्थिक मुआवजा राशि दिलाये जाने के संबंध में विचार हेतु एक उच्च स्तरीय तथ्यान्वेषी समिति का गठन करे, जिससे ऐसे मामलों में लोकसेवकों की भूमिका एवं मृतक के परिवार को आवश्यकतानुसार सहायता के साथ ही इनकी रोकथाम के लिए आवश्यक उपाय प्रदेश स्तर पर किये जा सकें और अप्राकृतिक मृत्यु के मामलों में आयोग में प्रस्तुत होने वाले ऐसे प्रकरणों की जांच और अंततः उनके निराकरण के कारण पीड़ितों को प्राप्त हो सकने वाले सहायता लाभों में अनावश्यक विलम्ब न हो।
आयोग ने *प्रकरण क्र. 5820/छतरपुर/2019* में छतरपुर जिले के भगवां पुलिस थाने में अभिरक्षा में बंदी की मौत हो जाने के मामले में यह अनुशंसाएं की हैं। भगवां थाने के बंदी वीरन उर्फ वीरेन्द्र लोधी द्वारा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, बडामलहरा, जिला छतरपुर में पुलिस अभिरक्षा में मेडिकल परीक्षण के दौरान 30 सितम्बर 2018 को बाथरूम में रौशनदान की सलाखों में गमछे से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली गई थी। इस मामले में अनुसंधान अधिकारी/ पुलिसकर्मियों की अभिरक्षा प्रबंधन में उपेक्षा के साथ-साथ बंदी को अभिरक्षा में लेने के पश्चात उसके जीवन, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के अधिकार की उपेक्षा सहित उसके मानव अधिकारों की भी घोर उपेक्षा हुई।

*उपचार/रेफरल/ट्रीटमेंट/क्लीनिकल जांच पठनीय राइटिंग में लिखे जायें*
*समान परिस्थिति वाले तीन मामलों में आयोग ने राज्य शासन से की अपेक्षा*

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने राज्य शासन से समान परिस्थिति वाले तीन मामलों में उपचार/रेफरल/ट्रीटमेंट/क्लीनिकल जांच पठनीय राइटिंग में लिखे जाने हेतु समुचित निर्देश जारी करने पर विचार करने की अपेक्षा की है।
आयोग ने कहा है कि राज्य शासन विचार करे कि जेल या पुलिस विभाग के कर्मचारी जब भी अपने वैधानिक दायित्वों के अन्तर्गत दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 या कारागार अधिनियम, 1894 या जेल नियमावली के अन्तर्गत चिकित्सकीय परीक्षण/उपचार करवाने जाते हैं तो संबंधित चिकित्सा परीक्षण/उपचारकर्ता चिकित्सक, परीक्षण/उपचार के दौरान उपचार हेतु दवाई लिखते हैं या कोई क्लीनिकल जांच या टेस्ट लिखते हैं या बंदी को उपचार हेतु हायर ट्रीटमेंट सेन्टर हेतु रेफर करते हैं, तो उपचार/रेफरल/ट्रीटमेंट/ क्लीनिकल जांच पठनीय राइटिंग में लिखें व मौखिक रूप से अभिरक्षा में लिये व्यक्ति का चेक-अप करवाने आये पुलिस/जेलकर्मियों को उपचार/होने वाले क्लीनिकल जांच/ रेफरल की जानकारी भी सूचित करें। जेल एवं पुलिस विभाग के संबंधित अधिकारी/ कर्मचारी, जो कि दण्ड प्रक्रिया संहिता/जेल नियमावली/म.प्र. (न्यायालयों में उपस्थिति) नियम, 1958 के अंतर्गत किसी बंदी या व्यक्ति को उपचार/चिकित्सकीय परीक्षण या क्लीनिकल जांच के लिये अस्पताल ले जाते हैं, वे अपने वैधानिक दायित्व निर्वहन के अन्तर्गत चिकित्सकीय परीक्षण के दौरान बंदियों के किये जाने वाले उपचार/टेस्ट/रेफरल सेन्टर की जानकारी संबंधित चिकित्सक से लें एवं उसी अनुसार चिकित्सकीय उपचार की कार्यवाही सुनिश्चित करें। राज्य शासन यह भी निर्देश जारी करने पर विचार करे कि बंदियों को चिकित्सा उपचार/परीक्षण/क्लीनिकल जांच हेतु भेजे जाने के पश्चात उनके वापस आने पर, उनका उपचार/परीक्षण या उनकी जांच हुई या नहीं हुई, इसकी जवाबदारी संयुक्त रूप से सहायक जेल अधीक्षक/जेल अधीक्षक एवं जेल चिकित्सक की निर्धारित होगी।
उल्लेखनीय है कि जेल अधीक्षक, जिला जेल शहडोल द्वारा महिला बंदिनी कुंवरवती उर्फ कविता सुपुत्री अमरसिंह गौड़ निवासी सेहरापानी, थाना गरियाबंद, जिला गरियाबंद, छत्तीसगढ़ को 23 सितम्बर 2017 को जेल अभिरक्षा में मध्यरात्रि में बच्चा पैदा होना, उसे अस्पताल में भर्ती करवाना और उसके रिश्तेदारों को बच्चे का मृत शरीर लेने की जानकारी आयोग को प्रेषित की गई, जिस पर *प्रकरण क्र. 7332/शहडोल/2017* पंजीबद्ध पर इसे 04 अक्टूबर 2017 को संज्ञान में लिया गया था। दूसरा मामला एक दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित शीर्षक खबर ’’गर्भवती थी अविवाहिता बंदी, जेल प्रशासन था अनजान’’ पर संज्ञान लेकर *प्रकरण क्र. 7307/शहडोल/2017* दर्ज किया गया था। तीसरे मामले में उर्मिला साहू, लक्ष्मी परते, देवकी उईके व निखिता पाठक का एक शिकायती पत्र आयोग को प्राप्त हुआ था, जिसमें जेल की महिला सर्किल के अंदर गोदाम बना के रखना, दिन में एवं शाम को कई बार कैदियों को प्रवेश करवाया जाना आदि अव्यवस्थाएं उल्लेखित की गई थीं, जिस पर *प्रकरण क्र. 7801/अशोकनगर/2018* पंजीबद्ध किया गया। तीनों प्रकरणों की परिस्थितियां लगभग एक समान होने से तीनों प्रकरणों को एक साथ समेकित किया गया और तीनों प्रकरणों में ही आयोग द्वारा राज्य शासन से उपरोक्तानुसार निर्देश जारी करने हेतु विचार करने की अपेक्षा व्यक्त की गई है।

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