किसान आंदोलनः ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर एक तरफ किसान, दूसरी तरफ पहरा

उत्तर प्रदेश के तमाम ज़िलों से लगातार शिकायतें आ रही हैं कि किसानों को दिल्ली-उत्तर प्रदेश की की ग़ाज़ीपुर सीमा पर जाने से रोका जा रहा है तो दूसरी ओर दिल्ली पुलिस ने पिछले तीन दिन से अपनी सीमा में किसानों का प्रवेश रोकने के लिए जो बाड़ लगाई है, उसे देखकर हर कोई हैरान है.

धरनास्थल से क़रीब एक किमी आगे जहां दिल्ली की सीमा शुरू होती है, दिल्ली पुलिस ने कई स्तरों पर बैरिकेडिंग कर दी है. वहां चेतावनी देने वाला नोटिस भी लगा हुआ है जिसमें लिखा है कि इस जगह पर धारा 144 लागू है, इसलिए चार से ज़्यादा लोगों का एक साथ जुटना ग़ैर-क़ानूनी है.

इस नोटिस को देखते हुए बॉर्डर पर जमा किसानों ने उससे कुछ मीटर पहले बाँस के डंडों का एक अपना अस्थाई बैरियर लगा दिया है ताकि आंदोलन में शामिल कोई भी किसान दिल्ली पुलिस की बैरिकेडिंग के पास न जा सके.

आठ-दस युवक इस बैरियर के आस-पास हर वक़्त मौजूद रहते हैं और मीडिया से जुड़े लोगों के अलावा किसी को भी उधर न जाने की हिदायत देते हैं.

यूपी के बिजनौर ज़िले के रहने वाले दिलीप कुमार की भी ड्यूटी इस बैरियर पर लगी है.

दिलीप कहते हैं, “किसानों का आंदोलन शांतिपूर्ण है और यह दिल्ली पुलिस को भी पता है. 26 जनवरी को लालक़िले पर जो कुछ भी हुआ, उसका आंदोलनरत किसानों से कुछ भी लेना-देना नहीं था. यह भी सब लोग जान चुके हैं.”

“लेकिन अंतरराष्ट्रीय सीमा जैसी बैरिकेडिंग करके दिल्ली पुलिस और सरकार यह संदेश देना चाहती हैं कि किसानों से उन्हें कितना ख़तरा है और इसकी आड़ में वो 26 जनवरी वाली घटना के लिए किसानों पर लगाए गए आरोप को और पुख़्ता करने की कोशिश कर रहे हैं. पर लोगों को मालूम है और हमें इसकी चिंता भी नहीं है. हम तो ख़ुद यहां निगरानी कर रहे हैं कि ग़लती से भी कोई किसान यहां न आ जाए.”

गाज़ीपुर बॉर्डर पर चल रहे किसानों के धरनास्थल पर रविवार शाम से ही सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है. यूपी की ओर से दिल्ली जाने वाले सभी रास्तों को कई स्तरों के बाड़े लगाकर बंद कर दिया गया है. यहाँ तक कि पैदल जाने के रास्ते भी बंद कर दिए गए हैं.

बाड़ों के पीछे पुलिस और सुरक्षा बल के जवान बड़ी संख्या में हर वक़्त तैनात रखे गए हैं.

दिल्ली से यूपी आने वाले सिर्फ़ एक रास्ते को खुला रखा गया है जो कि आनंद विहार से होते हुए गाज़ियाबाद को आता है. लेकिन यहाँ भी केवल सड़क की एक ओर का रास्ता खुला है और उस पर कई किलोमीटर लंबा जाम लग जाता है.

बैरिकेडिंग और कँटीले तारों को सिर्फ़ राष्ट्रीय राजमार्ग 24 पर ही नहीं लगाया गया है बल्कि फ़्लाईओवर के नीचे भी लगाया गया है ताकि यहां से भी कोई गुज़र न सके.

यही नहीं, कँटीले तारों के दूसरी ओर गड्ढे भी खोद दिए गए हैं और इस तरफ़ यानी यूपी की तरफ़ बैरिकेडिंग से पहले नुकीली कीलों की चादर जैसी बिछा दी गई है.

कँटीले तारों की इन्हीं बैरिकेडिंग के पास बाग़पत से आए एक बुज़ुर्ग किसान स्नान कर रहे थे.

मैंने पूछा कि यह बाड़ क्यों लगाई जा रही है? उनका जवाब था, “पुलिस वालों से ही पूछो. हो सकता है हमारी सिक्योरिटी में ही लगा रखी हो. हमें कोई दिक़्क़त नहीं है. हम तो शांतिपूर्ण तरीक़े से यहां बैठे हैं. सरकार चाहती है कि यहां से चले जाएं, तो तीनों काले क़ानून वापस ले ले. हम तुरंत चले जाएंगे.”

गाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों के दोबारा जुटने के बाद से वहाँ भीड़ लगातार बढ़ती ही जा रही है.

पश्चिमी यूपी के तमाम ज़िलों में लगभग हर दिन किसानों की पंचायत हो रही है और फिर बड़ी संख्या में किसान ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर इकट्ठा हो रहे हैं.

वहाँ मौजूद कुछ किसानों का कहना है कि यह बैरिकेडिंग इसलिए कर दी गई है ताकि किसानों के टेंट और आगे तक न बढ़ने पाएँ.

गाज़ीपुर बॉर्डर के आस-पास के इलाक़ों में रहने वाले अधिकांश लोग दिल्ली में काम करते हैं और वसुंधरा, वैशाली, इंदिरापुरम, कौशांबी में रहते हैं. सड़कें बंद कर देने के कारण लोगों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

शामली की रहने वाली सुमन कश्यप पिछले कई दिनों से लगातार अपने कुछ साथियों के साथ धरनास्थल पर आ रही हैं.

वो कहती हैं, “पुलिस ने ये बैरिकेडिंग इसीलिए की है ताकि स्थानीय लोगों को परेशानी हो और वो अपना ग़ुस्सा किसानों पर उतारें. लेकिन स्थानीय लोग भी जानते हैं कि यह बैरिकेडिंग किसने की है.”

गोरखपुर से आए अतुल त्रिपाठी पिछले दो महीने से अपने कुछ दोस्तों के साथ गाज़ीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन में शामिल हैं. अतुल त्रिपाठी इस बैरिकेडिंग से बड़े आहत हैं.

वो कहते हैं, “यह बैरिकेडिंग जवानों और किसानों के बीच की गई है. उन्हें अलग किया गया है. धरनास्थल पर किसान आंदोलन कर रहे हैं और जवान अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं. उनके बीच अच्छे संबंध हैं. साथ में खाना भी खाते हैं और चाय भी पीते हैं.”

“लेकिन इस बैरिकेडिंग की वजह से वो इतने दूर कर दिए गए हैं जैसे एक ही देश के जवान और किसान नहीं बल्कि दो अलग देशों के लोग हों.”

दिल्ली पुलिस की इस सख़्त बैरिकेडिंग की वजह पूछने पर पहले तो दिल्ली पुलिस के अधिकारी कुछ भी कहने से परहेज़ कर रहे थे.

लेकिन मंगलवार को दिल्ली पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में जब यह सवाल पूछा गया तो उनका कहना था, “मेरी समझ में नहीं आता कि जब 26 जनवरी को ट्रैक्टरों का उपयोग किया जा रहा था, पुलिस पर हमला किया जा रहा था, बैरियर्स तोड़े जा रहे थे तब कोई प्रश्न नहीं पूछा गया. हमने तो सिर्फ़ बैरिकेडिंग को मज़बूत किया है ताकि पहले की तरह तोड़े न जा सकें.”

दिल्ली पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव की मानें तो इतनी सख़्त बैरिकेडिंग की वजह यह है ताकि किसी भी ट्रैक्टर का प्रहार इसे न तोड़ सके.

सहारनपुर के रहने वाले सत्तर वर्षीय रामपाल सिरोही पेशे से अध्यापक रह चुके हैं. कहते हैं, “बैरिकेड लगाकर रास्ते रोके जा सकते हैं, रास्ते बंद नहीं किए जा सकते.”

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