– रजनीश कुमार :
लेबर पार्टी के नवनिर्वाचित युवा सांसद डॉ गौरव शर्मा ने बुधवार को न्यूजीलैंड की संसद में भारतीय संस्कृति का मान बढाते हुए संस्कृत में शपथ लिया। भारत से बाहर संस्कृत में शपथ लेने वाले नेताओं में सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी भी है जिन्होंने भारतीय संस्कृति की आधार एवं गौरव भाषा संस्कृत में इसी वर्ष जुलाई में शपथ ली थी। वैश्विक मंच से प्राचीन भारतीय संस्कृति का यह उद्घोष हर उस संस्कृतिकर्मी को गौरवान्वित करता है जिन्हें अपने संस्कृति पर गर्व है।
विश्व के अलग अलग हिस्सों में संस्कृत और भारतीय संस्कृति का सम्मान फिर से उस विमर्श को जन्म देता है कि भारत और भारतीयता के दृष्टि से संस्कृत की आखिर क्या महत्वता है? विचारणीय प्रश्न तो यह है कि जब भारत और संस्कृत एक-दूसरे के पर्याय हैं तो इस भाषा को जाने बिना कोई भारतीय कैसे हो सकता है?
इससे असहमत नहीं हुआ जा सकता कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता का आधार संस्कृत भाषा है, भारत के विचार का आधार संस्कृत है। जिन वेद, उपनिषद जैसे ग्रंथों को भारत की पहचान माना जाता है वे संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं और कोई भी इस भाषा को जाने बिना भारत को नहीं समझ सकता।
भारतियों में भारतीयता के इस प्राचीन भाव के साथ सांस्कृतिक चेतना जाग्रत करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा विविध प्रयास किये जा रहे है। ‘संस्कृत भारती’ संस्कृत की महत्वता को समझने की जरूरत की ओर ध्यान आकृष्ट करा रहा है। संघ का यह प्रकल्प देश के अलग अलग हिस्सों में संस्कृत शिविर संचालित करते हुए भारतियों को अपने प्राचीन भाषा से जोड़ने का सार्थक कार्य कर रहा है।
संस्कृत भारती का यह अनुभव है कि भारतियों के विकास का आधार वातावरण, नैतिकता और सुसंस्कार हो सकता है। इन आधारभूत बातों को अंतःकरण में स्थापित करने का माध्यम संस्कृत ही हो सकता है। संस्कृत संकार देने वाली भाषा है, भारतीयता के विचारों की अभिव्यक्ति तो संस्कृत में ही है। इसके उच्चारण मात्र से ही व्यक्ति के जीवन जीने की शैली स्वयं भारतीय हो जाती है और यह व्यक्ति के उच्चतम आदर्शों को प्रस्फुटित करता है।
आज देश में अनेकों गाँव ऐसे है जहाँ संस्कृत प्रेमियों के वजह से लोगों की मानवीय चेतना का विस्तार हुआ है, लोगों की आपसी बोलचाल की भाषा संस्कृत बन चुकी है। मध्यप्रदेश का झिरी और मोहद गाँव ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण गाँव है जहाँ संस्कृत भारती के प्रयासों से संस्कृत जन- जन की भाषा बन चुकी है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यहाँ सिर्फ एकदूसरे का हालचाल जाने के लिए ही नहीं बल्कि खेतों में हल चलाते किसान, दूरभाष पर बात करते ग्रामीण और नाई की दुकानों पर बाल कटाते समय भी यहाँ के नागरिकों की संवाद की भाषा संस्कृत ही होती है। इन गावों में अब कोई यह नहीं पूछता कि संस्कृत सिखने से उन्हें क्या फायदा मिलने वाला है? उन्हें नौकरी मिलेगी या नहीं? ग्रामीण बस इतना ही कहते है – ”संस्कृत हमारी प्राचीन भाषा है, हमारे सभी ज्ञान और विचारों की भाषा है संस्कृत, इतिहास और संस्कृति का आधार है संस्कृत!”
झिरी (राजगढ़) कोई सामान्य गाँव नहीं बल्कि यह मध्यप्रदेश के साथ साथ उत्तर भारत का ऐसा दिव्य ग्राम है जहाँ के सभी ग्रामीण आपस में संस्कृत में संवाद करते है। यहाँ तो खेतों में हल चलाने वाला किसान भी अपने बैलों से संस्कृत में ही आदेश देता है। इस ग्राम में कुल 141 परिवारों के लगभग 976 लोग रहते है। ‘संस्कृत भारती’ की ओर से इस ग्राम के लोगों को संस्कृत सिखाने की शुरुआत सन 2002 में विमला नामक एक युवती के द्वारा किया गया। एक ही वर्ष में ‘संस्कृत भारती’ ने कुछ ऐसा प्रयास किया कि ग्रामवासियों में संस्कृत की रूचि बढ़ गई, जिसका प्रतिफल यह हुआ कि यहाँ संस्कृत बोलचाल की भाषा बन गई। आज विमला जी इस गाँव की बेटी है और अगल बगल के गांव के लिए भी प्रेरणा बन गई है। झिरी गाँव के सांस्कृतिक उत्थान के कारण अन्य ग्रामों जैसे मुंडला व सूसाहेडीह के ग्रामीण भी संस्कृत सिखने के लिए झिरी आनेलगे है।
मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में स्थित मोहद गाँव जिसकी आबादी लगबघ 3500 है। यहाँ एक हजार से अधिक लोग संस्कृत में वार्तालाप करते है। इस ग्राम में ‘संस्कृत भारती’ के कई शिविर आयोजित हो चुके है। इसका असर यह हुआ कि इस गाँव के बच्चे ही नहीं बल्कि कम पढ़े लिखी महिलाएं भी अब संस्कृत में वार्तालाप करती है। यहाँ के लिए संस्कृत किसी वर्ग विशेष या जाति विशेष की भाषा नहीं बल्कि हर किसी के द्वारा सम्मान एवं गौरवपूर्वक तरीके से वार्तालाप होता है।
भाषा विचारों की सशक्त माध्यम होती है।किसी भी देश की प्राचीन भाषाओँ में ही उनके इतिहास, संस्कृति और सभ्यता की कई कहानियां समाहित होती है। भारत का वह स्वर्णिम कालखंड जब संस्कृत यहाँ संवाद की भाषा थी तब भारत अपने लोककल्याणकारी विचारों के माध्यम से दुनिया का मार्गदर्शन करता था, भारत विश्वगुरु था।
बदलते कालचक्र में भारत के उपर कई हमले हुए, न सिर्फ हमारी सीमाओं को तोडा मरोड़ा गया बल्कि यहाँ के मौलिक विचारों को नष्ट करने के लिए हमारे भाषा, संस्कृति, आचार विचार और व्यवहार तक को बदलने की भरसक कोशिश हुई।
यह एक एतिहासिक सत्य है कि कोई भी जीती हुई जातियां हारी हुई जातियों के ऊपर आधिपत्य ज़माने के लिए उसका मान भंग करती है, उसके राष्ट्रीय स्वाभिमान पर आघात करती है और अपनी भाषा और विचार को थोपने का प्रयास करती है। भारत के साथ भी ऐसा ही करने का प्रयास किया जाता रहा है , भारत के मौलिक विचार को ध्वस्त करने के उद्देश्य से इस्लामी आक्रान्ताओं के द्वारा पहले अरबी फ़ारसी शब्दों को यहाँ के जीवन में ठुंसा गया फिर अंग्रेजों के द्वारा अंग्रेजी थोपकर हमारे स्वाभिमान को नष्ट किया गया। । इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि हम सिर्फ शरीरधारी भारतीय रह गए, विचारों, व्यवहारों और संस्कारों ने हमें इस कदर प्रदूषित किया कि हम अपनी भाषा, संस्कृति और संस्कार को हीन दृष्टि से देखने समझने लगे ।
भारत के प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए भारतीय प्राचीन परम्परा, भाषा और सात्विक विचार की महत्वता को समझते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विभिन्न प्रकल्प संचालित करता है, जिससे समाज में पुनर्जागरण हो रहा है।