श्रीगोपाल गुप्ता:
इस साल की शुरुआत मार्च में अपनी ही कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिराकर भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सिंह की सरकार बनवाकर मुरैना जिले से मंत्री बने एदल सिंह कंषना और गिर्राज डंडौतिया पुनः एक बार इस्तीफे देने के कारण अगामी 3 नवंबर को हो रहे उपचुनाव में मतदाताओं की शरण में हैं! ऐदल सिंह कंषाना जहां सुमावली विधानसभा से छठवीं दफा तो वहीं गिर्राज डंडौतिया दिमनी विधानसभा से तीसरी मर्तबा मंत्री रहते हुये भारतीय जनता पार्टी से उम्मीदवार हैं,दोनों ही अपने परंपरागत क्षेत्र से ही भाग्य आजमा रहे हैं! मगर मुरैना जिले का राजनीतिक चुनावी इतिहास इनकी जीत में रोड़ा अटकाता हुआ प्रतीत हो रहा है, बिना किसी कारण के अकारण ही जिले का ये मिथक रहा है कि जब पहली दफा सन् 1977 में मंत्री पद मुरैना के हिस्से में आया तभी से कोई भी मंत्री अपना अगला चुनाव जीतने में नाकायाब रहा है! हालांकि ये कोई वैज्ञानिक तर्क नहीं है कि भविष्य में या इस चुनाव में भी ये मिथक बना रहेगा। मगर सन् 77 के बाद बाद जब भी जिले में कोई मंत्री बना और उसने कोई अगला चुनाव लड़ा तो ये मिथक सामने खड़ा मिला, न केवल खड़ा मिला बल्कि इसने अपने आपको उस चुनाव में बनाये रखा! हालांकि ऐदल सिंह कंषाना खुद 2003 में इसका शिकार हो चुके हैं जब वे कांग्रेस के दिग्विजय सिंह सरकार में राज्यमंत्री के रुप में शामिल थे! सन् 77 में आपातकाल के बाद हुये विधानसभा में जयप्रकाश नारायण के आव्हान पर कई दलों को मिलाकर बनी जनता पार्टी के चुनाव चिण्ह चक्र में हलधर पर चुनाव लड़े और जीते मुरैना से बाबू जबरसिंह एडवोकेट को लोक निर्माण मंत्री तो वहीं नई बनी सुमावली विधानसभा से जीते जनसंघ व भाजपा के महायोद्धा जाहर सिंह शर्मा को मुख्यमंत्री वीरेन्द्र सखलेचा सरकार में संसदीय सचिव बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया था!
परिणाम सामने है अगले चुनाव सन् 1980 में जाहर सिंह शर्मा मुरैना से कांग्रेस के महाराज सिंह ऐडवोकेट के हाथों पराजित हुये तो बाबू जबर सिंह चुनावी परिदृष्य से बाहर हो गये! दिमनी से कई बार के विधायक और भाजपा के दिग्गज मुंशीलाल सन् 89 में पटवा सरकार में मंत्री बनने के बाद 93 में उसी दिमनी से कांग्रेस के उम्मीदवार के हाथों खेत गये ,जिस दिमनी को उनका और भाजपा का किला कहा जाता था। हार तो कीरतराम सिंह कंषाना भी सुमावली से गये जिन्हें दिग्विजय सिंह सरकार में अंतिम दिनों में राज्यमंत्री का ओहदा मिला था! मंत्री बनने के बाद अगला चुनाव हारने वालों की सूची यहीं नहीं थमीं जबकि यह सिलसिला आगे भी सन् 2018 के विधानसभा चुनाव तक बना रहा,जब पुलिस सेवा से इस्तीफा देकर पूर्व आईजी आपीएस रुस्तम सिंह शिवराज सिंह की भाजपा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहते हुये कांग्रेस के रघुराज सिंह कंषाना के सामने बेअसर साबित हुये और कंषाना ने ये बाजी उनसे कब्जाली! हालांकि 2008 में भी रुस्तम सिंह मुरैना से पहली मर्तबा जीतकर उमा भारती और शिवराज सिंह की भाजपा सरकार में काबीना मंत्री बनने के बाद बहुजन समाज पार्टी के परसुराम मुदगल से हार का स्वाद चख चुके थे। लगभग यही मिथक की कहानी मुरैना विधानसभा को भी अपने में समेटे हुये है! यहां से भी कोई भी दिग्गज और विधायक लगातार दूसरा चुनाव जीतने में कभी कामयाब नहीं रहा! अब देखना दिलचस्प रहेगा कि 2018 में जीते कांग्रेस के रघुराज सिंह कंषाना खुद के इस्तीफे से खाली हुई मुरैना विधानसभा क्षेत्र से पार्टी बदलकर भाजपा उम्मीदवार के तौर पर लगातार जीत दर्ज कराकर और मंत्री ऐदल सिंह कंषाना सुमावली से और गिर्राज डंडौतिया दिमनी से लगातार जीतकर मिथक तोड़कर चुनावी इतिहास बनाते हैं? या फिर स्वयं मिथक के इतिहास के शिकार बनते हैं?
फिलहाल मंत्री जी जरा धीरे चलो…. मिथक खड़ा यहां मिथक खड़ा… काबिज है।’