जबलपुर : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अपेक्स बैंक के प्रशासक पद से हटाए गए अशोक सिंह को राहत दी है। हाईकोर्ट ने कहा कि अपेक्स बैंक के प्रशासक पद पर अगर राज्य सरकार कोई नई नियुक्ति करती है तो ये नियुक्ति मामले पर आने वाले हाईकोर्ट के अंतिम फैसले की अधीन रहेगी।वही कोर्ट ने शिवराज सरकार सहित अन्य को नोटिस जारी कर 3 सप्ताह में जवाब मांगा है।खास बात ये है कि अशोक सिंह दिग्विजय समर्थक माने जाते है और इस नियुक्ति को ग्वालियर चम्बल अंचल में सिंधिया के घटते कद के रूप में देखा जा रहा था, इसी के चलते नियुक्ति निरस्त करने का फैसला लिया गया था, हालांकि कोर्ट ने उपचुनाव से पहले अशोक सिंह और कांग्रेस को बडी राहत दे दी है।
दरअसल, पिछले साल जुलाई महीने में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आते ही अशोक सिंह अपैक्स बैंक का चेयरमैन मनोनीत किया गया था। कमलनाथ सरकार में यह पहली राजनीतिक नियुक्ति थी।। इतना ही नही बैंक का प्रशासक बनते ही सरकार ने उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दे दिया था, लेकिन प्रदेश में शिवराज सरकार के आते ही 25 मार्च 2020 को एक आदेश जारी करते हुए अशोक सिंह की नियुक्ति रद्द कर दी गई थी। जिसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा था।कोरोना और लॉक डाउन के चलते सुनवाई हो नही लेकिन शुक्रवार को न्यायमूर्ति सुजय पॉल की कोरोना आपदाकालीन एकलपीठ के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये मामले की सुनवाई की।
इस दौरान याचिकाकर्ता अशोक सिंह का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ व अधिवक्ता हिमांशु मिश्रा ने रखा। राज्य की ओर से महाधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरव व शासकीय अधिवक्ता राजेश्वर राव ने पक्ष रखा। केवियेटर की ओर से अधिवक्ता बीडी सिंह व एसएम गुरु अपीयर हुए।बहस के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने दलील देते हुये हाई कोर्ट को अवगत कराया गया कि याचिकाकर्ता की अपेक्स बैंक, भोपाल के प्रशासक पद पर नियुक्ति जुलाई 2019 में हुई थी। आगे चलकर कैबिनेट मंत्रीका दर्जा भी दिया गया। लेकिन जैसे ही कमल नाथ सरकार (kamalnath sarkar)अल्पमत में आई और नई सरकार अस्तित्व में आई मनमाना निर्णय लेते हुए 25 मार्च 2020 को याचिकाकर्ता को हटा दिया गया। इस कदम के पीछे ठोस कारण रेखांकित नहीं किया गया। इससे साफ है कि कार्रवाई राजनीतिक दुर्भावनावश की गई।
इसके बाद कोर्ट ने अशोक सिंह को राहत देते हुए अंतरिम आदेश के तहत प्रशासक पद पर नियुक्ति को विचाराधीन याचिका के अंमित निर्णय के अधीन कर दिया गया है। साथ ही राज्य शासन सहित अन्य को नोटिस जारी कर 3 सप्ताह में जवाब पेश करने निर्देश दिया गया है।
आपको बता दें की विशुद्ध कांग्रेसी परिवार में पैदा हुए अशोक सिंह के दादा जी कक्का डोंगर सिंह सुप्रसिद्ध गांधीवादी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे । वे महात्मा गांधी के साथ वर्धा आश्रम में रहे और फिर ग्वालियर आकर आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े । वे लंबे समय तक कांग्रेस कार्यालय में ही रहे । अशोक सिंह के पिता स्व राजेन्द्र सिंह बहुत छोटी उम्र में ही सेवादल में शामिल हो गए । वे 1971 में विधायक बने और फिर श्यामाचरण शुक्ल मंत्रिमंडल में लोक निर्माण मंत्री बने । राजेन्द्र सिंह अजुर्न सिंह-दिग्विजय समर्थक नेताओं में गिने जाते थे। ग्वालियर के नव निर्माण में उनका महती योगदान रहा । गांधी मार्केट का निर्माण,सिटी सेंटर बसाने की योजना उनकी ही थी । घर में कांग्रेस पार्टी के प्रति समर्पण देखते हुए अशोक सिंह भी बचपन से ही कांग्रेस को समर्पित हो गए। लेकिन उनका परिवार अंचल का पहला अकेला ऐसा परिवार रहा जो कांग्रेस में होते हुए भी महल विरोधी रहा। लेकिन जब अशोक सिंह ने राजनीति में कदम रखा तो ज्योतिरादित्य सिंधिया से समन्वय बनाने की कोशिश की लेकिन उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। और वे आज भी अशोक सिंह को दिग्विजय खेमे का ही नेता माना जाता है।