शिवराज का दर्द……

  • प्रकाश भटनागर :

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दर्द किस बात का है? आईफा अवार्ड में प्रदेश सरकार के करोड़ों रूपए बर्बाद होने का या फिर इस बात का कि वे खुद अब जनता के करोड़ों रूपए बर्बाद करने लायक नहीं रहे। आखिर कमलनाथ वहीं तो कर रहे हैं जिसकी शुरूआत का श्रेय मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को ही जाता है। गुड़ खा-खा कर अघाया हुआ किसी दूसरे को भला कैसे गुड़ खाना छोड़ने की नसीहत दे सकता है? शिवराज अगर अपनी याददाश्त पर थोड़ा जोर देंगे तो उन्हें याद आ जाएगा कि उनका तीसरा कार्यकाल जनता के गाड़ी कमाई की बर्बादी का एतिहासिक दौर था। चाहे सिंहस्थ के बहाने खुद की दुनिया भर में ब्रांडिंग का मामला हो या फिर नर्मदा यात्रा जैसे सरकारी प्रायोजित कार्यक्रम या फिर शंकराचार्य की सबसे बड़ी प्रतिमा बनवाने से जुड़ी पदयात्रा हो (इसका इक्कट्ठा हुए लोहे का हिसाब अब कम से कम शिवराज को कमलनाथ से एकआध बार तो पूछ ही लेना चाहिए था।) कमलनाथ तो आईफा अवार्ड में कुछ सौ करोड़ बर्बाद करेंगे

खुद शिवराज ने क्या किया था? उन्हें नहीं भी याद हो तो उन लोगों से पूछ लेना चाहिए जो आज भी सीएम सचिवालय में कमलनाथ के भी खास बनकर काम कर ही रहे हैं। बाकी वे अपनी उस कोटरी से पूछ सकते हैं जो रिटायर्ड होकर घर बैठ गई है या फिर इधर-उधर हो गई। आखिर उनमें से कुछ के नाम तो करोड़ों रूपए ब्लेकमैल के बदले देने के मामलों में चर्चा में आएं ही हैं। शहद के बदले भेद छिपाने की जो घूस अदा की गई है वो शिवराज के इवेंट मास्टरों ने आखिर इन इवेंटों की कमीशनखोरी में ही तो कमाई होगी। इसलिए जब शिवराज सिंह चौहान आईफा अवार्ड को लेकर कहें कि कांग्रेस सरकार पर सत्ता का नशा सिर चढ़ कर बोल रहा है तो अफसोस के साथ हंसी आना स्वाभाविक है। गोपाल भार्गव की प्रतिक्रिया को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर स्वाभाविक और रस्मी आलोचना मानना चाहिए। लेकिन अब अगर कोई पुराना पापी, पाप करने के नए बने अधिकारी को उसके पाप गिनाए तो भैया, थोड़ा समझ में आना मुश्किल है। कमलनाथ तो फिर भी वल्लभ भवन, दिल्ली और छिंदवाड़ा तक खुद को समेट कर रखे हैं।


इसलिए थोड़ा कुछ तो कम खर्च हो रहा होगा। वरना, जितना आए दिन शिवराज के प्रदेश भर में कार्यक्रम होते थे, और उनमें भीड़ जुटाने के लिए सरकार का जितना पैसा पूड़ी और पानी की बोतल पर खर्च होता था, वो भी तो आखिर जिम्मेदार अफसर जनता की जेब से ही निकालते होंगे। शिवराज जी जरा याददाश्त पर थोड़ा तो जोर दीजिए। इस आईफा अवार्ड से भी करोड़ों की बर्बादी, कुछ मनोरंजन के अलावा कर्ज में डूबे प्रदेश के हिस्से में कुछ नहीं आएगा। मध्यप्रदेश की ब्रांडिंग से कुछ भला नहीं होना है। सारा खेल माल कमाने का है, सो जिनका भला होना है, वो हो जाएगा। पर कुछ सवाल तो शिवराज जी आपसे बनते ही हैं। आप कमलनाथ सरकार पर सवाल नहीं उठाते तो मैं यह सवाल नहीं पूछता। प्रदेश के खजाने से सात सौ करोड़ रूपए से ज्यादा नमामि देवी नर्मदे और नर्मदा सेवा यात्रा में खर्च करने से प्रदेश को क्या फायदा हुआ? इस दौरान छह करोड़ पेड़ नर्मदा किनारे लगाने का एलान आपने किया था वो क्या फोकट में मिले थे।

आपने जनता का जो पैसा बर्बाद किया, उसमें गिनाने को बहुत कुछ है जिससे मध्यप्रदेश का कोई फायदा नहीं हुआ। सिंहस्थ में वैचारिक महाकुंभ के नाम पर करोड़ों खर्च हुए, क्या मिला नेकी की दीवार और अध्यात्मिक विभाग? आपने हर साल इनवेस्टर्स मीट के नाम पर बड़े इवेंट किए, ढेरों यात्राएं की, देश विदेश में ढेरों रोड़ शो किए, ये जो करोड़ों खर्च हुए उसे न आपने कमाया था ने आपकी जेब से जाना था। मध्यप्रदेश कौन सा समृद्ध प्रदेश बन गया? तो फिर कमलनाथ को भी उनके हिस्से का करने दो। मध्यप्रदेश की किस्मत में बर्बादी अगर उसके राजनेताओं के हाथों ही लिखी है तो फिर इसमें कमलनाथ की भागीदार पर एतराज कैसा? आखिर आपको अपने बाल बच्चों की जीविका की चिंता थी तो ये तो कमलनाथ को भी होना ही चाहिए। नहीं क्या? हां, कमलनाथ भी कुछ नया कर रहे हैं। आपके भी कुछ अपराधियों के साथ फोटो-शोटो कभी कभार छपा करते थे। भले ही वे तबके थे, जब आप मुख्यमंत्री नहीं थे। अब कमलनाथ ने आपसे ज्यादा सत्ता की राजनीति को देखा है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री बने भले ही अभी उनका पहला साल बीता हो लेकिन सत्ता की राजनीति से उनका लंबा नाता है। तो वे भी अदालत से सजा पाए शराब माफिया को अगर आईफा के मंच पर एक प्रायोजक के तौर पर बराबर खड़ा होने का मौका दे रहे हैं तो कौन सी बड़ी बात। सोम डिस्टलरी के मालिक और शराब कारोबारी जगदीश अरोरा को मुरैना में न्यायिक मजिस्ट्रेट और सेशन कोर्ट दोनों से शराब तस्करी के मामले में सजा हो चुकी है। आबकारी नियम कायदों के अनुसार, उसकी डिस्टलरी का लायसेंस रद्द हो जाना चाहिए था। ऐसा तो हुआ नहीं, शायद माफिया का हल्ला मचाते हुए खास शराब माफिया का फायदा देखते हुए ही नई आबकारी नीति मेंं उसके मनमाफिक बदलाव किए गए हैं। अब सरकार है तो जो चाहे कर सकती है। समरथ को कोई कैसे दोष दे सकता है। अब तुलसीदास जी यह कह गए हैं तो इसे नकारने का मतलब नहीं। लोकतंत्र में जनता एक दिन के लिए समर्थ है, बाकी पांच साल के लिए वो दूसरों को समर्थ बनाती है। तो कर्ज में डूबे इस प्रदेश की जनता सांप नाथ और नाग नाथ में से ही किसी को चुनने को अभिशप्त है। सबको अपने हिस्से की बर्बादी फैलाने का अधिकार लोकतंत्र ने दे रखा है। इसलिए जो हो रहा है वो सब अच्छा है, आगे भी अच्छा ही होगा……

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