सीएम के बाद उज्जैन जिला अध्यक्ष ने तोड़ा मिथक
0 नपा उपाध्यक्ष कुर्सी ,जो बैठा हुआ बेपटरी
0 कुर्सी के करिश्में पर भारी पडे़ राजेश धाकड़
नागदा। सियासत में कई बार प्रचालित मिथक राजनेताओं के कैरियर पर भारी पड़ जाते हैं। जनमानस में भी ये मिथक बडे लोकप्रिय एवं सुर्खियों में होते हैं। मप्र के मुख्यमंत्रियों के बारे में यह मिथक थाकि, जो भी सीएम महाकाल की नगरी उज्जैन में रात्रि विश्राम करने की भूल करते हैं उसके बाद उसकी कुर्सी उससे रूठ जाती है। और पद से बिदाई की मान्यता है। इस कारण सूबे के मुखिया इस भय से उज्जैन में रात्रि विश्राम करने से कन्नी काटते रहे।
इस मिथक को मप्र के वर्तमान सीएम डॉ. मोहन यादव ने तोड़ा है। उन्होंने उज्जैन में रात्रि विश्राम कर उस मिथक को मुहतोड जवाब दिया। ऐसा ही एक मिथक उज्जैन जिले के औद्योगिक नगर नागदा की नगरपालिका उपाघ्यक्ष के पद को लेकर चला आ रहा है। यहां यह बात प्रचलित हैकि इस पद की इस मनहूस कुर्सी पर जो भी बैठ जाता है उसका नाम सियासत के गलियारों में ओझल हो जाता है। या फिर सियासत में कोई उच्ची छलांग नसीब नहीं होती । इसके बाद राजनीति स्थिर हो जाती है।इस बात के प्रमाण में यहां इतिहास भरा पड़ा है। इस कुर्सी की यहां अजीब दास्तान है। अभी तक 5 चेहरों को यह खामियाजा भुगतने का इतिहास है।
वर्तमान में जो भाजपा के उज्जैन जिला अध्यक्ष (ग्रामीण) राजेश धाकड़ बने हैं वे भी एक बार इस नपा उपाध्यक्ष नागदा की कुर्सी पर 20 जनवरी 2005 से 13 जनवरी 2010 तक बैठ गए थे। इस पद पर बैठने के बाद राजेश की राजनीति में कोई विशेष बदलाव नही आया। स्थानीय मंडल अध्यक्ष पद से हटने के बाद इनकी राजनीति को ग्रहण लगा रहा। महाविधालय जनभागीदार समिति के अध्यक्ष बने लेकिन यह पद उनकी योग्यता से बौना था। इस शहर में इनका नाम भाजपा की सियासत में बड़ा चेहरा है। इनके नाम रिकॉर्ड पांच बार पार्षद बनने का गौरव है। इस कुर्सी पर बैठने का इन्हंें भी खामियाजा भुगतना पड़ा। अब उस मिथक को पराजित करने वाले ये पहले शख्स बन गए है। हाल में भाजपा जिला उज्जैन ग्रामीण के पद मिला है।
जब आप नपा उपाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे उसके बाद इनकों राजनीति में लंबे समय तक कडवा घूंट पीना पड़ा। गत नपा परिषद के चुनाव में वार्ड 12 से टिकट की दौड में ंथे लेकिन इनकों एक टारगेट बनाकर टिकट से वंचित होना पड़ा। यदि इन्हे टिकट मिलता तो निंःसदंेह आज सुभाष शर्मा की जगह एक बार फिर नपा उपाध्यक्ष की कुर्सी पर दावा बनता। कारण की 6ठी बार के परिषद में सबसे वरिष्ठ पार्षद होते। पहली बार नपा में अध्यक्ष बनी सतोष ओपी गेहलोत को परिषद को बेहतर चलाने के लिए इनका अनुभव कारगर होता। जो भी हुआ एक सोची समझी रणनीति के साथ यह हुआ। इस गहरे जख्म पर कपड़ा डाल कर ये घैर्य एवं संयम से बैठे रहें। विचलित एवं असहज तो हुए लेकिन इजहार नहीं किया। अन्य राजनेताओं के समान उपेक्षा का कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं किया। राजेश के साथ जो भी जब सब कुछ हुआ तो शहर में यह संदेश गया कि नपा उपाध्यक्ष की कुर्सी पर जो भी बैठता है उसका यहीं हश्र होता है। यह उसी की परिणति है। कारण कि शहर में लगभग आधा दर्जन नपा उपाध्यक्ष बने उनकी राजनीति कभी परवान नहीं चढ़ पाई। इन आधा दर्जन उपाध्यक्ष में से राजेश ने इस मान्यता नपा उपायक्ष की कुर्सी के इस मिथक को तोड़ दिया है। मोहन यादव को सीएम का पद मिलने के बाद राजनीति के पंडित ये कयास लगाए जा रहे थेकि राजेश् को भोपाल में कोई संवेधानिक पद मिल सकता है। लेकिन इस पद ने ( जिला अध्यक्ष ग्रामीण) ने उस समीकरण के समकक्ष ला कर खड़ा कर दिया। अब चर्चा हैकि इस सूबे में दिलीपंिसंह शेखवात के हाथ से पांवरगेम जाने के बाद राजेश अब अपनी बेहतर टीम बनाने में इस वैक्यूम में बेहतर हवा भर सकते है। सियासती शंतरज के खेल में परिस्थतियां इनके अनूकुूल है। कौन- कौन नपा नागदा में उपाध्यक्ष बने उस पर केंदित यह विशेष रिपोर्ट-
(1) रमजान भाई
नागदा में नगरपालिका लगभग 1968 में अस्तित्व में आई। कई वर्षो से यहां प्रशासक का कार्यकाल रहा। वर्ष 1983 में पहली बार कांग्रेस के बालेश्वर दयाल जायसवाल नपा के अध्यक्ष बने थे। इनके कार्यकाल में रमजान भाई नपा उपाध्यक्ष बने थे। लेकिन उपाध्यक्ष की इस कथित मनहूस कुर्सी से वे राजनीति में छलांग नहीं लगा पाए। बाद में वे राजनीति में आगे नहीं बढ पाए। और इनका नाम सियासत के गलियारों में गुमनाम हो गया। ऐसे और भी चेहरे हैं।
(2 )जगदीश पोरवाल
श्री बालेश्वर दयाल जयसवाल के कार्यकाल में जगदीश पोरवाल ने भी उपाध्यक्ष की कुर्सी का दायित्व निभाया। इस कुर्सी से हटने के बाद इनकी राजनीति में भी कोई बदलाव नहीं आया। हालांकि कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष बने थे लेकिन कोई राजनीतिक जंप नहीं मिला।
(3) बंशीलाल मालपानी
इस कुर्सी पर किसी जमाने में कंाग्रेस का एक बड़ा चेहरा बंशीलाल मालपानी भी आसीन हुए थे। इन्हे यह पद कांग्रेस के बालेश्वर दयाल जायसवाल के अध्यक्ष काल में नसीब हुआ था। आप 3 फरवरी 1995 से 14 मार्च 1999 तक नपा में उपाध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन रहें। उस समय श्री मालपानी का नाम श्री जायसवाल के निकटतम विश्वसनीय लोगों में से पहली पायदान पर माना जाता था। मालपानी युवक कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री भी रह चुके है। लेकिन इनसे गलती यह हुई कि इस कुर्सी पर बैठ गए। इस मनहूस कुर्सी पर बैठने के बाद श्री मालपानी की सियासत मे ंकोई बडा उछाल नहीं आया। बताया जा रहा हैकि इस कुर्सी पर बैठने के बाद एक बार ये वार्ड 7 से पार्षद का चुनाव कांग्रेस की टिकट से भाजपा के शरद ओझा से हार गए। एक निर्दलीय उम्मीदवार हेमंत शेखावत ने भी कडी टक्कर दी। इन दिनों अब आप राजनीति से कौसो दूर है। संभव है उपाध्यक्ष की कुर्सी का ग्रहण है।
(4) संजू रानी राठौर
संजू रानी राठौर भी कांग्रेस के तत्कालीन श्री बालेश्वरदयाल जायसवाल के कार्यकाल में अल्प समय तक 15 मार्च 1999 से 14 फरवरी 2000 तक रहा। इनको बाद में इनको राजनीति रास ही नहीं आई। उपाध्यक्ष की मनहूस कुर्सी के कारण बाद में ये पार्षद का चुनाव तक हार गई। इस कुर्सी ने इनके परिवार के लोगों को भी अपने आगोश में लिया। इनके पति ओमप्रकश राठौर अभिभाषक संध के अध्यक्ष का चुनाव भी हार गए।
(5) रामसिंह शेखावत
रामसिंह शेखावत भाजपा का एक बड़ा चेहरा है। ये भाजपा की विमला चौहान के कार्यकाल में लंबे समय तक 15 मार्च 2000 से 19 जनवरी 2005 तक नपा में उपाध्यक्ष बने थे। इस पद को मिलने के बाद श्री शेखावत की राजनीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया। संासद प्रतिनिधि जैसे पद से संतोष करना पड़ा। बाद में पत्नी अंजंु कंुवर पार्षद बनी लेकिन भाजपा की परिषद लंबे समय तक इस शहर में चली लेकिन ना तो इन्हे उपाध्यक्ष का पद मिला ना कोई बड संवैधानिक ओहदा। एक बार श्री शेखावत को वार्ड परिसीमन की विसंगति को लेकर इन्हे हाईकोट का दरवाजा खटखटाने की लिए विवश होना पड़ा। इनके बारे में भी आम चर्चा हैकि उपाध्यक्ष की कुर्सी इनका पिछा नहीं छोड़ रही है। इनके अग्रज सुल्तानसिंह शेखावत मप्र शासन में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दो बार पाने में सफल हुए उसके बावजूद रामसिह इस कुर्सी के प्रकोप के कारण सियासत में बड़ी उपलब्धि नहीं हासिल कर पाए।
(6) राजेश धाकड़
राजेश धाकड़ को नपा उपाध्यक्ष का पद 20 जनवरी 2005 से 13 जनवरी 2010 तक नसीब हुआ। सबसे पहले निर्दलीय वरिष्ठ नेता बालेश्वरदयाल जायसवाल के अध्यक्षकाल में राजेश नपा उपाध्यक्ष बने। उस समय एक त्रिकोणीय टक्कर में बालेश्वर जी ने कांग्रेस के बाबूलाल गुूर्जर एवं भाजपा के गंगाराम गुर्जर को शिकस्त देकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अध्यक्ष पद पर काबिज हुए थे। लेकिन संयोग से श्री जायसवाल के पास पार्षद नहीं थे। तब इन्होंने तत्कालीन भाजपा पार्षद राजेश को इस पद के काबिल माना और उपाध्यक्ष बनाया था। लेकिन श्री जायसवाल की अध्यक्ष पद की आसीनगी भाजपा को रास नही आई। इनके खिलाफ शिकायतों ओैर पद के कथित दुरूपयोग के आरोप लगाए और इन्हेें मप्र शासन ने पदच्यूत कर दिया। तब राजेश धाकड उपाध्यक्ष थे। श्री जायसवाल को पद से हटाते ही मप्र शासन ने राजेंद्र अवाना को 29 जुलाई 2006 से 8 जनवरी 2006 तक कार्यकारी अध्यक्ष मनोनीत कर अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया। इनके कार्यकाल में भी राजेश उपाध्यक्ष बने रहें। इसी प्रकार से उपचुनाव में जब भाजपा के गोपाल यादव ने कांग्रेस के कृष्णकांत जायसवाल को मामूली मतों से हराकर 9 जनवरी 2007 से 17 अक्टूबर 2007तक अध्यक्ष बने तब भी राजेश की कुर्सी बरकरार रही। बालेश्वरजी जब होईकोर्ट से फिर जीत कर आए और उपचुनाव में निर्वाचित गोपाल यादव को घर लौटना पड़ा तब बालेश्वरजी फिर अध्यक्ष बने। इसके बाद भी भाजपा ने बालेश्वरजी के खिलाफ शिकायत की और पुनः पद से हटाया। जब शासन ने श्री जायसवालजी की जगह भाजपा की शोभायादव को कार्यकारी मनोनीत कर कुर्सी पर बैठा तो राजेश इसी कुर्सी पर नियमानुसार आसीन थे । एक बार फिर बालेश्वर जायसवाल ने उच्च न्यायलस से अपने प्रति हुए अन्याय का प्रकरण जीता और फिर हाईकोर्ट के आदेश पर 31 अगस्त 2009 से 13 जनवरी 2010 तक अध्यक्ष की कुर्सी संभाली। श्री जायसवालजी के इस कार्यकाल में भी नपा उपाध्यक्ष का पद राजेश की तकदीर में बरकरार रहा। राजेश ने अपने इस कार्यकाल में पांच अध्यक्ष चेहरों के साथ कार्यकार्य किया। लेकिन इस मनहूस कुर्सी के प्रकोप से राजनीति में बाद में गर्दिश में रहें। लेकिन इस मिथक को तोड़ने में आपकी तकदीर ने अब साथ दिया। कुल 6 चेहरों में से आपका एक मात्र को इस कुर्सी पर बैठने के बाद राजनीति रास आ गई है।
(7) सज्जनसिंह शेखावत
सज्जनसिंह शेखावत को उपाध्यक्ष की कुर्सी दो बार नसीब हुई। पहली बार 14 जनवरी 2010 से 5 जनवरी 2015 तक भाजपा की शोभा यादव के कार्यकाल में उपाध्यक्ष बने। शोभायादव ने कांग्रेस की ज्योति मोहता का सीघी प्रणाली से शिकस्त दे कर यह कुर्सी हासिल की थी। दूसरी बार अशोक मालवीय के कार्यकाल में पांच वर्ष तक 5 जनवरी 2015 से 5 जनवरी 2020 तक उपाध्यक्ष बने। अशोक मालवीय सीघी टक्कर में कांग्रेस उम्मीदवार सरिता टटावत से चुनाव जीते थें। अशोक मालवीय की इस परिषद में राजेश पांच बार के पार्षद थे लेकिन उपाघ्यक्ष की कुर्सी भाजपा की आपसी सियासत की दावपंच के चलते राजेश धाकड़ का नहीं मिली और सज्जन को नसीब हुई। लेकिन सज्जनसिंह के लिए भी यह कुर्सी मनहूस साबित हो गई। पिछले नपा के चुनाव में आप को भी पार्षद तक का टिकट नहीं मिला। सज्जन की राजनीति भी इन दिनों इसी मनहूस उपाध्यक्ष की कुर्सी के कारण गर्दिश में चल रही है। अब वर्तमान में सुभाष शर्मा इस कुर्सी से 10 अगस्त 2022 से मोहब्बत कर बैठे हैं। अब देखना हैकि सुभाष मिथक तोड़ पाएंगे या अन्य उपाध्यक्ष की तरह राजनीति के मैदान में ओझल हो जाएंगे यह सब कुछ भविष्य की गर्त में है।
-कैलाश सनोलिया