सीएम के तौर पहला जन्मदिन मोहन का

मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव आज एक साल के हो गए हैं। तो कैसा रहा है उनका ये अब तक का सफर? वह सफर जिसके शुरू में कुछ उलझन वाले हालात दिखे, चुनौतियाँ तो खैर थी हीं। वह भी भरपूर। अर्थशास्त्र में श्रम विभाजन की थ्योरी होती है। इस पहले साल में डॉ. मोहन यादव कर्म विभाजन की थ्योरी पर चल रहे हैं। इसके लिए उन्होंने खुद को ही अलग-अलग हिस्सों में बांट रखा है।

डॉ यादव ने सबसे पहले राज्य की माली हालत पर किसी कुशल माली की तरह ध्यान दिया है। जब वह मुख्यमंत्री बने, तब लोकसभा का चुनाव सिर पर था। लाड़ली बहना योजना में ज़रा-सी भी चूक भाजपा के लिए भारी पड़ सकती थी। यादव विभजित हुए, एक हिस्से पर आम जनता को साधे रहने का दायित्व था तो दूसरे पर पार्टी नेतृत्व की उस उम्मीद को पूरा करने का जिम्मा था, जो उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के निर्णय से जुड़ी हुई थी। यादव दोनों ही मोर्चों पर सफल रहे।

लाड़ली खुशी से खिल गई और साथ ही प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों पर भी कमल खिल गया और यादव ‘जस की तस धर दीनी चदरिया’ वाले अंदाज में इसका सारा श्रेय पार्टी और मोदी को देते गए। अब अगली बात में हम कह सकते हैं कि गृह, सामान्य प्रशासन और जनसंपर्क सहित दस-दस विभाग वाले वजन को उठाकर डॉ. यादव ने सियासी व्यायामशाला में अपनी ताकत दिखाने का प्रयास किया है। लगता है कि वह बहुत सधे हुए अंदाज में चल रहे हैं।

खुद को दस महकमों के खांचे में विभक्त कर वह यह परख रहे हैं कि उनके किस वजीर में वह नजीर स्थापित करने की क्षमता है, जिसे अपने हिस्से के कुछ अहम विभाग दिए जा सकें। जो अपात्र चेहरे जोड़ -तोड़ करके मंत्रिमंडल में शामिल हो गए, उन्हें विभाग वितरण में पद तो मिला, लेकिन कद नहीं। दरअसल यादव बेहद महीन तरीके से यह आकलन करते हुए आगे बढ़ रहे हैं कि किसकी हद कितनी है और उसे किस तरह उतनी ही तवज्जो देना है।

अनुराग जैन को राज्य का मुख्य सचिव बनाकर मुख्यमंत्री ने पहले ही साल में जता दिया है कि प्रशासनिक गलियारों में जमी निकम्मेपन की धूल को बाहर करने के लिए वो एक रोडमैप लेकर चल रहे हैं। डीजीपी की नियुक्ति में भी ऐसा ही रहा। खरामा-खरामा एक साल वाली पायदान पर पहुंचे यादव ने दिखा दिया है कि वह एक निश्चय के साथ पूरे निश्चिन्त भाव से आगे बढ़ रहे हैं।

प्रदेश में निवेश के लिए यादव ने परंपरागत आग्रहों को अलग रखा, वो उपत कर विदेशों की तरफ नहीं भागे। उन्होंने पहले देश के महानगरों में जाकर निवेशकों को आमंत्रण दिया। इसके बाद रीजनल कॉन्क्लेव के जरिए प्रदेश की ही नब्ज टटोली, फिर वे विदेश गए और दिखता है कि निवेश के लिहाज से उनकी यह यात्रा सफल रही।

प्रशासन में सुशासन के लिए यादव ने लोगों से दुर्व्यवहार के आरोपी अफसरों को संभलने का अवसर दिए बगैर लूप लाइन में डाल दिया। पद के मद में चूर कई चेहरों को पूरी तसल्ली के साथ किनारे सरका दिया। इससे यह संदेश चला गया कि सिस्टम में कोई गलत हो या मक्कार, इस सरकार के पास दोनों का ही इलाज है और इलाज से भी बढ़कर एक मामले में सर्जरी वाले हालात तो तब ही बन गए थे, जब यादव ने बीते अक्टूबर में सीएम हेल्पलाइन के पेंडिंग मामलों की समीक्षा कर अफसरशाही में खलबली मचा दी थी।

यादव लच्छेदार बातें नहीं करते हैं, यही उनकी यूएसपी भी है क्योंकि जब कोई मुख्यमंत्री खांटी आम आदमी के अंदाज में बात रखता है तो सामने वाले का उस पर यकीन होने की संभावना बढ़ जाती है। कई उदाहरणों की रोशनी में यह दिखता है कि यादव एक कदम उठाने से पहले अगले कदम की राह का भी निश्चय कर लेते हैं। इसके लिए उनकी अपनी शैली है। आम लोगों से बेहद सहज संवाद, फिर किसी को जवाब देने के लिए उनकी किलर इंस्टिंक्ट भी ध्यान देने लायक है।

भोपाल के एक कार्यक्रम में यादव ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ‘बेचारगी’ के किस्से सुनाए। लेकिन इस दौरान पूरे समय उनके चेहरे पर ‘मजे लेने’ वाले भाव नहीं दिखे, जबकि बात चुटकी लेने वाली ही थी। यादव सरल तरीके से अपनी बात कह गए। मनमोहन सिंह के हाल बता गए और यह सब यूं हुआ, जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं हो।

वर्ष 2023 के आसपास उस समय के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के बीच एक अघोषित प्रतियोगिता आकार ले चुकी थी। यहीं से मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. मोहन यादव के एक साल के कामकाज की बात की जा सकती है। अब एक बार फिर राज्य में सत्ता और संगठन के बीच कुशल कदमताल दिखने लगी है। लोकसभा चुनाव से लेकर अमरवाड़ा, बुदनी का उपचुनाव इसका गवाह है। डॉ. यादव व्यक्ति नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के आधार पर चयन करने में यकीन रखते हैं। उन्हें पता है कि किसी की क्षमताओं का कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है।

साल भर का समय कभी अनिश्चितता तो कभी चुनौतियों वाला रहा। इनमें यादव कई जगह सफल तो कही जगह ठिठके हुए भी नजर आए। इस सबके बीच वो अधिकांश जगहों पर अपने हिसाब से ‘जमावट’ करने में भी कामयाब रहे हैं। भविष्य की कुछ विपरीत परिस्थितियों से निकलने के लिए यादव अपनी टीम सहित तैयार तो दिख रहे हैं, लेकिन खुद यह टीम मुख्यमंत्री के अनुरूप कितनी तैयार है, यह देखना बहुत जरूरी होगा और यह भी देखने वाली बात होगी कि टीम के लिहाज से गलत चयन वालों के चाल-चलन को सुधारने के लिए यादव क्या करेंगे? क्योंकि इस जमावट को बार-बार ताश के पत्तों की तरह फेंटने का समय यादव के पास नहीं रह गया है।
मुख्यमंत्री के रूप में पहले जन्मदिन के बाद यादव का असली समय शुरू होता है।

लेखक,  प्रकाश भटनागर

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