भारत ही नहीं पुरी दुनिया में काल्पनिक कहानियों के माध्यम से नई पीढी यानि विशेष रूप से छोटे बच्चों को शिक्षा देना व समाज के आदर्श मार्ग पर जीवन को अग्रसर करने में बहुत बड़ा योगदान रहा हैं | इसमें जंगल बुक से जुडा मोगली, विक्रम-बेताल से जुडी कहानियां, अरबेरियन नाईट्स से जुडी अलिफ लैला जैसे सैंकडों उदाहरण मौजूद हैं | समय के चक्र के साथ इन कहानियों का किताबों से बाहर निकल फिल्मों के माध्यम से चलचित्र बनकर आना सदैव प्रसिद्धियों और कामयाबी के नये-नये शिखरों को बनाते आ रहा हैं | यह श्रृंखलाएं सिर्फ मनोरंजन ही नहीं लोगों के चरित्र एवं बच्चों के बौद्धिक क्षमता का विकास भी करती है। असामाजिक, अनैतिक, हिंसक बातों को इन काल्पनिक कहानियों के माध्यम से फैलाव करने को माइंडवाश करने की संज्ञा दी जाती हैं जो कानूनन अपराध के दायरे में आती हैं |
इस पृथ्वी पर मानवों की प्रजाति में अरबों-खरबों ईंसान आये और चले गये परन्तु जिन्होंने भी अपने जीवन में बड़े आयाम बनाये वो ही इन कहानियों के रूप में अमरता का वरदान का वरदान प्राप्त कर गये | इसके विपरित जिन काल्पनिक कहानियों ने जीवन के आदर्शों के बडे आयाम बनाये वो कई वर्षों तक एक पीढी से दुसरी पीढी में बढते हुए असली जीवन आधारित आयाम बन गये | इसमें कहीं बातें / तरिके / कर्म आम लोगों की जीवनशैली में समाकर गाथाएं, प्रथाएं एवं रीति-रिवाज बनते आये हैं और बनते रहेंगे | मन की बात कार्यक्रम को सरकारी आदेश के रूप में बच्चों को दिखाना व उस पर प्रदर्शनी और निबंध लिखवाना इसी सोच के राजनैतिक प्रयोग या इस्तेमाल कहलाते हैं |
ऐसे ही नये रिवाज की शुरुआत नये संसद-भवन के उद्घाटन में असली सेंगोल (राजदंड) के प्रतिक की पूजा व लोकसभा में अध्यक्ष की कुर्सी के पास रखकर करी गई | इस सेंगोल का ईतहास तमिलनाडु के चोल साम्राज्य से जुडा है | इसे जिसे स्थारान्तरित किया जाता हैं उससे न्यायपूर्ण शासन की अपेक्षा की जाती हैं न कि न्यायपूर्ण शासन की गारन्टी हो जायेगी | इसे 1947 में धार्मिक मठ-अधिनियम के प्रतिनिधि ने भारत गणराज्य के पहले प्रधानमंत्री को सौंपा और राजशाही खत्म होने के कारण इसे इलाहबाद संग्रहालय में रख दिया था | विज्ञान के सिद्धांतों की माने तो यह राजदण्ड अपने साथ सदियों पहले सुरक्षा के लिए हथियार रखने के रिवाज या किसी राजा के चलने में तकलीफ होने के कारण छडी लेकर चलने की मजबूरी का कारण हो सकता हैं | जो धीरे-धीरे किन्वंतियों व अपनी शारीरिक कमजोरी को छिपाने की वजह से राजदंड की संज्ञा पा गये |
अब बात आती हैं ब्रिटिश लेखिका जे के राउलिंग के हैरी पॉटर के नाम के उपन्यास व उस पर आधारित फिल्मों की, जो दुनिया भर में कई भाषाओं के अन्दर डबिंग होने से चर्चित हुई | यह काल्पनिक कहानी पर आधारित हैं परन्तु इसके माध्यम से जो शिक्षा दी गई वो उच्चतम स्तर की बौद्धिकता का प्रतिक रही हैं | इसमें मौत के तीन तोफों एल्डर छड़ी, पुनर्जीवन पत्थर व अद्धश्य चौगे की बात कहीं गई हैं | इसमें से किसी एक के पास होने पर मौत को हराकर अमर रह सकते हैं | फिल्म के अन्त में एल्डर छड़ी नायक हैरी पॉटर के पास आ जाती हैं | इस पर उसके मित्र रॉन वीसली, हरमाइन ग्रेंजर बहुत खुश होते हैं | रॉन कहता हैं कि एल्डर छड़ी दुनिया में सबसे ताकतवर छड़ी हैं, इस कारण कोई हमे हरा नहीं सकता हैं |
इसके आगे हैरी पॉटर कुछ सोचकर उस छड़ी को तोडकर फेंक देता हैं | उसे लगा होगा कि अपने को महान व शक्तिशाली बनाने के चक्कर में इसे अपने पास रखा गया तो दूसरे लोग इसे पाकर सबसे ताकतवर बनने के लालच में उन पर हमला व अलग-अलग तरह के षडयंत्र रचते रहेंगे और उसका व लोगों का जीवन जीना दूभर हो जायेगा | इस फिल्मी कहानी में अन्त तक आते आते यह स्पष्ट हो जाता हैं कि मौत के तिनों तोफे हेडमास्टर एल्बस डंबलडोर के पास पहले पहुंच गये थे व एक समय जीवित रहने का काढा बनाने वाला पारस पत्थर भी आया परन्तु उन्होंने शक्तिशाली व अमर रहने की बजाय मौत को गले लगाया ताकि लोगों का जीवन खुशहाल रहे व लॉर्ड वोल्डेमॉर्ट के आतंक को खत्म किया जा सके |
भारत की विशाल सभ्यता एवं संस्कृति में सेंगोल जैसे कई प्रतिक देखने व सुनने को मिलते हैं इसमें सुदर्शन चक्र, त्रिशुल, भाला, शिव-धनुष, गद्दा, तलवार इत्यादि-इत्यादि सैकडों उदाहरण भरे पडे हैं | यदि इन सभी को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास रखा जाये तो उनके बैठने के लिए भी जगह नहीं बचेगी | अब आप सोचिए सत्ता व कुर्सी के लालच में ऐसे ही प्रतिकों को आधार बनाया तो लोगों की मानसिक सोच कितनी स्वार्थी, व्यक्तिगत व ओछी होती चली जायेगी | यदि मौत के तोफे जैंसी कोई चीज इनको मिल जाये तो सत्ता की स्थाई प्राप्ति व अजर-अमर हो जाने के अंधेपन (जैसे नरबलि और जीवित जीवों की बलि) में पुरी व्यवस्था का सत्यानाश कर देंगे |
विज्ञान की माने तो ऐसे पडपंचों से मुक्त रहना चाहिए ताकि मानसिक रूप से लालच, घृणा, अहंकार जैसे अवगुण पैदा ही नहीं हो पाये | इससे लोगों के कष्टों को दूर कर जीवन में खुशहाली लाने का कर्म ईमानदारी व निस्वार्थ भाव से हो पायेगा | ये ही ईंसान के मर जाने के बाद भी उसको अजर-अमर बनाते हैं | भूतकाल की सोच से सिर्फ शिक्षा ली जाती हैं ताकि वर्तमान में अच्छे भविष्य हेतु कार्य किया जा सके न कि उस सोच से समय के चक्र को रूका समझ अच्छे दिन वाले भविष्य का सिर्फ ख्वाब देखा जाये | आने वाला भविष्य तो बोलने में सदैव अच्छा ही लिखा जाता हैं |
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक