साइंटिफिक-एनालिसिस: अंधेरी नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा ..

 

महाराष्ट्र सरकार की उठा-पटक पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सहित पांच न्यायाधीशों की बैंच का फैसला सुन महाराष्ट्र नहीं देश की जनता को भी इसी कहावत का सत्यापन लगता हैं |

सुप्रीम कोर्ट नें फैंसले में सबकुछ “नैतिकता” व “मर्यादा” के इर्द-गिर्द रखा व इसी के नाते भूतपूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को न्यायपालिका में श्रृद्धा व बिना मुख्यमंत्री की कुर्सी के बैठने का सब्र/सबूरी रखने का मार्ग दिखाया, इसके साथ ही वर्तमान मुख्यमंत्री शिंदे की “नैतिकता” व “मर्यादा” पर विश्वास रखा की वो सदन के स्पीकर द्वारा शिंदे गुट की ओर से प्रस्तावित स्पीकर गोगावले को चीफ व्हिप नियुक्त करना अवैध फैसला जानकर स्वयं सरकार का इस्तीफा दे देंगें और सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नैतिकता व मर्यादा को बताते हुए मामला सात जजों की बड़ी बैंच को सौंप दिया |

सरकार बदलने के पूरे घटनाक्रम को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की भूमिका पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास विधानसभा में फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए कोई पुख्ता आधार नहीं था। फ्लोर टेस्ट को किसी पार्टी के आंतरिक विवाद को सुलझाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते। राज्यपाल के पास ऐसा कोई संचार नहीं था जिससे यह संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं। राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके हैं।

इस टिप्पणी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा नियुक्त सरकार को ईशारों में ही असंवैधानिक बता दिया और स्वयं द्वारा राज्यपाल को सजा न दे पाने व विधायकों की सदस्यता रद्द न कर सकने कि विवशता बताते हुए राज्यपाल स्वयं सरकार बर्खास्त कर अपना इस्तीफा दे देने का नैतिकता व मर्यादा वाला मार्ग बता गये |

इसके लिए उस समय वर्तमान राज्यपाल पद पर थे या नहीं यह सार्वजनिक रूप से इस पद की मर्यादा बनाये रखने के लिए मायना नहीं रखते | वर्तमान राज्यपाल की तरफ से उनके वकील भी सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार थे | राज्यपाल को अपने इस्तीफे में इस बात का जीक्र करते हुए पद की मर्यादा के लिए ऐसा त्याग बताते हुए राष्ट्रपति को सौंप देते | इसके ऊपर महामहिम राष्ट्रपति क्या निर्णय लेते जिससे असली अपराधी को दण्ड मीलता व संविधान की गरीमा के लिए पद त्याग देने वाले के साथ अन्याय न हो | इसे हमें भी संविधान संरक्षक राष्ट्रपति की नैतिकता व मर्यादा पर छोड़ देना चाहिए |

जहां तक हमे ज्ञात हैं सुप्रीम कोर्ट किसी भी मामले की सुनवाई करने से पहले जांचता हैं कि वो मामला कानूनी तौर पर सुनने लायक हैं या नहीं और उसके दायरे में आता हैं या नहीं …… जबकि उच्चतम अदालत ने 17 फरवरी को महाराष्ट्र राजनीतिक संकट से संबंधित याचिकाओं को सात-सदस्यीय संविधान पीठ के सुपुर्द करने का आग्रह ठुकरा दिया था। अब फैसले में अपने दायरे से बाहर का मामला बताकर सात-सदस्यीय संविधान पीठ को भेजना “नैतिकता” व “मर्यादा” को ही कटघरे में खडा कर दिया प्रतीत होता हैं |

यदि मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच जनों की पीठ यह कहती कि हमने सुनवाई कर ली हैं और राज्यपाल व स्पीकर को दोषी पाया है परन्तु इन्हें सजा देना व कार्यवाही करना हमारे अधिकार श्रेत्र के बाहर हैं इसलिए हम इस मामले को सभी 15 न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज रहे हैं | यदि उन्हें हमारी सुनवाई को दुबारा चलाने की जरूरत लगती हैं तो चलाये अन्यथा राष्ट्रपति के सर्वोच्च संवैधानिक पद की मर्यादा रखते हुए नैतिकता के तहत उन्हें ही राज्यपाल व स्पीकर की सजा तय करने का अनुरोध कर देते जिससे न्यायपालिका की न्याय देने की मर्यादा कलंकित न हो व अपराधी खुला छूट कर देश व समाज में ऐसे अपराध करने की नई परम्परा शुरु करने की जनता के मध्य मिसाल न बन सके |
राष्ट्रपति स्वयं इस मामले को नहीं देखेगी व उनकी संवैधानिक कुर्सी मीडिया के संवैधानिक चेहरे के अभाव में लगंडी हैं इसलिए अखबारों के प्रकाशन व टीवी प्रसारण का कोई औचित्य नहीं हैं | यदि राजनेता स्वयं जाकर राष्ट्रपति से मुलाकात कर अवगत कराये तो अलग बात हैं |

संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट की फुल संविधान पीठ को ही संरक्षक का दर्जा प्राप्त हैं | यदि राष्ट्रपति किसी कारण वश राज्यपाल, स्पीकर व असंवैधानिक सरकार पर समय की मर्यादा रखते हुए फैसला न ले पाये तो उच्चतम न्यायालय की फुल संविधान पीठ स्वयं सजा निर्धारित कर दे | इसे संविधान के अनुसार राष्ट्रपति भी न बदल सकते हैं और निरस्त कर सकते हैं |

यदि ऐसा कदम न उठाया गया तो देश के अन्दर अन्याय का बोलबाला हो जायेगा और सभी अपराधी, स्वार्थी, लालची व विदेशी लोग असंवैधानिक सरकार के पीछे छुप कर जनता का जीवन दुर्भर कर देंगे और वह सिर्फ कागज पर बेआबरू हुई संविधान की प्रस्तावना को कौसते – कौसते विधी द्वारा स्थापित विधान को अलविदा करेंगे |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक

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