चाणक्य ने मनुष्य, जीवन और समाज पर गहन अध्ययन किया और फिर इनके लिए नीतियां बनाईं. इन नीतियों के बल पर चाणक्य ने एक साधारण से बालक चंद्रगुप्त को भारत का सम्राट बनाया और मौर्य वंश की स्थापना की. उनकी नीतियों के आधार पर मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है. उन्होंने अपनी नीतियों को चाणक्य नीति नाम के नीति ग्रंथ में समाहित किया है. इसमें वो एक श्लोक के माध्यम से सांप को एक प्रकार के व्यक्ति से बेहतर बताते हैं. आइए जानते हैं उनकी इस नीति के बारे में…
दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः ।
सर्पो दंशति काले तु दुर्जनस्तु पदे पदे ।।
इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य सांप और दुर्जन की तुलना करते हैं और कहते हैं कि सांप दुर्जन मनुष्य से ज्यादा बेहतर है. वो बताते हैं कि सांप खुद पर खतरा महसूस होने पर ही डसता है या फिर काल यानी मृत्यु आने पर ही डंक मारता है लेकिन दुर्जन प्रवृति का मनुष्य तो हर समय इसी ताक में रहता है कि कब मौका मिले और डंक मार दे. दुर्जन मनुष्य आपका कभी भला नहीं कर सकता.
यही कारण है कि चाणक्य कहते हैं, मित्रों का चयन करते वक्त सावधान रहना चाहिए. मित्र ऐसा हो जो मददगार हो और मुसीबत में आपके साथ खड़ा रहे. लेकिन आप दुर्जन से मित्रता करेंगे तो वो आपको हमेशा नुकसान ही पहुंचाएगा. इसलिए दुर्जन व्यक्ति का जितना जल्दी हो सके साथ छोड़ देना चाहिए.
प्रलये भिन्नमार्यादा भविंत किल सागर:
सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलेयशपि न साधव:।
इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मर्यादा छोड़ कर किनारों को तोड़ देता है, लेकिन सज्जन व्यक्ति प्रलय के समान भयंकर आपत्ति एवं विपत्ति में भी अपनी मर्यादा नहीं बदलते. वो धैर्य नहीं खोते और गंभीर बने रहते हैं. मुश्किल घड़ी में ऐसे व्यक्ति संयम रखने में सफल होते हैं और कामयाबी को हासिल करते हैं.