सरकार जल्द ले लोन मोरेटोरियम पर फैसला, नहीं तो बैंकों के हालात होंगे और खराब

 

 

कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार फिर से धीमी कर दी है। इसका असर लोन की ईएमआई भुगतान पर हुआ है।

कारोबारियों के कारोबार मंदा होने और नौकरीपेशा वर्ग की नौकरी जाने से अप्रैल में ऑटो-डेबिट भुगतान में बाउंस के मामले बढ़ गए हैं।

यानी लोन की ईएमआई का अटकने की घटनाएं बढ़ी हैं।

नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (एनएसीएच) के आंकड़ों के मुताबिक, संख्या के लिहाज से अप्रैल में 34.05 फीसदी ऑटो-डेबिट लेनदेन असफल रहे, जबकि मार्च में 32.76 फीसदी ऑटो-डेबिट लेनदेन ही असफल रहे थे।

यह फरवरी 2020 के बाद निचला स्तर था। यानी स्थिति में सुधार हो रहा था लेकिन फिर से संकट गहरा गया है।

अप्रैल में कुल 8.54 करोड़ ऑटो-डेबिट लेनदेन का प्रयास किया गया। इनमें से 5.63 करोड़ सफल और 2.90 करोड़ असफल रहे।

कोरोना की पहली लहर से उबरकर ईएमआई समय पर भुगतान में सुधार के संकेत थे, लेकिन अप्रैल में स्थिति फिर से खराब हो गई है।

बैंकों के अनुसार, सिर्फ ऑटो डेबिट असफल होने की घटनाएं नहीं बढ़ी हैं बल्कि चेक बाउसं करने के केस में भी इजाफा हुआ है।

यह इस बात का संकेत हैं कि लोग फिर से डरे हुए हैं औेर वह अपने संकट के समय के लिए फंड रखना चाहते हैं।

दूसरी लहर और लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर स्वरोजगार करने वाले और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले पर हुआ है।

संगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को वेतन मिल रहा है जबकि स्वरोजगार करने वाले का काम-धंधा बंद है।

इससे उनके लिए लोन की ईएमआई चुकाना मुश्किल हो गया है।

*डिजिटल की रफ्तार के बावजूद नकदी शीर्ष पर*

कोरोना वायरस की दूसरी लहर की वजह से इस वक्त देश में नकदी का चलन जीडीपी के छठे हिस्से तक पहुंच चुका है। इसके साथ ही डिजिटल पेमेंट भी काफी बढ़ा है।

7 मई 2021 में सिस्टम में कैश बढ़ कर 29.4 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया।

कोरोना महामारी की अनिश्चितता के कारण सर्तकता बरते हुए लोगों ने नकदी को प्राथमिकता दी है। इससे अर्थव्यवस्था में नकदी का चलन बढ़ा है।

 

*उपरोक्त तथ्यों से साफ है कि अर्थव्यवस्था के हालात बिगड़ते जा रहे हैं और यदि बैंक डूबेंगे तो इसका असर हमारे वित्तीय ढांचे पर पड़ना स्वाभाविक है, तो ऐसे में सरकार को तुरंत ये कदम उठाने चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था में मांग बनी रहे:*

1. अप्रेल 2021 से जुलाई 2021 की समयावधि का लोन मोरेटोरियम तुरंत लागू किया जावे, जिससे छोटे और मध्यम वर्ग को राहत मिलें और बैंक के अकाउंट भी खराब न हो.

2. ब्याज दरों में कटौती अगले 1 साल के लिए की जावे, ताकि किश्तों की रकम में कमी आ सकें.

3. कैश लेनदेन को कठिन नियमों और प्रावधानों को अगले 2 सालों के लिए शिथिल किया जावे ताकि व्यापारिक लेनदेन इस कठिन समय में भी चलता रहे, मांग बनी रहे और हमारी असंगठित अर्थव्यवस्था देश के आर्थिक हालात को सम्हाले रहे.

*हाल में ही सरकार ने अस्पतालों में कैश लेनदेन के नियमों को शिथिल किया है, अब इसे हर लेनदेन पर लागू करना होगा ताकि कैश से चलने वाली समांतर अर्थव्यवस्था हमारे वित्तीय हालात खराब होने से बचा सके.*

*साफ है नोटबंदी में 16 लाख करोड़ रुपये कैश की अपेक्षा अर्थव्यवस्था में आज लगभग 30 लाख करोड़ रुपये का कैश होना, सरकार की नीतियों पर प्रश्न उठाने के लिए काफी है.*

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल

Shares