0 ये कैसी जांच, फिर हास्यास्पद बात।
0 दो घूंट नसीब भी ना हुआ पानी ।
नागदा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने जब कुर्सी संभाली तो कमिंटमेंट था- ना खाउंगा ना खाने दूंगा। मप्र के मुखिया शिवराज बार -बार बोल रहे हैं प्रदेश में भ्रष्टाचारियों पर नकेल डाली जाएगी, किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा। लेकिन उज्जैन जिले के नागदा में उत्कृष्ट कार्य से किसी समय पुरस्कृत हुई नगरपालिका नागदा में भष्टतंत्र से जुडे़ एक कारनामे का मोदीजी एवं शिवराज सरकार की इस प्रकार की मंशा पर दाग लगाने का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसी नपा में गत दिनों सूचना अधिकार में बडा मामला यह सामने आया कि ग्रेसिम उद्योग ने मेंटीनेंस के नाम पर नगरपालिका नागदा से लाखों रूपए का चंबल का पानी बेच दिया। यह राशि का भुगतान जनता की गाढी कमाई से किया गया। जब आरटीआई में इसकी पोल खुली तो जल संसाधान विभाग के वल्लभ भवन में बैठे अधिकारियों तक मामला पहुंचा। वल्लभ भवन से वीडियों काफ्रेंसिंग से उज्जैन के जल संसाधन विभाग से जवाब- तलब हुए। बाद में दोनों पक्षों की औपचारिक बैठक उज्जैन में हुई। उसके बाद ग्रेसिम का अभी लगभग 71 लाख का भुगतान रोक दिया गया है। यह राशि चंबल नदी के पानी का पैसा है। इस पूरे प्रकरण एवं पानी के बदले प्रत्येक माह के भुगतान के दस्तावेज इस पोस्ट के लेखक के पास सुरक्षित है। यह खेल बरसों से चल रहा था।
जांच टीम गेस्ट हाउस पहुुॅची
इसी मामले को लेकर हाल में शुक्रवार को जल संसाधन विभाग के तीन अधिकारियों का एक जांच दल उज्जैन से नागदा आया। इस टीम में विभाग के एसडीओ रोशनसिंह भी शामिल थे। एसडीओं के मुताबिक यह जांच दल अभिषेक चैरसिया की शिकायत पर आया । इस दल को चंबल पर लगे विधुत मोटर आदि की जांच भी करना थी। अब बड़ी सोचने की बात हैकि जिस कंपनी के खिलाफ सरकारी अधिकारी सरकारी खर्च पर वाहनों को लेकर सरकारी दौरे पर आए और वे सबसे पहले ग्रेसिम के उस गेस्ट हाउस के मेहमान बन गए जिसके खिलाफ जांच करने आए थे। अधिकारी बुलेरों में सवार हो आए और जब बाहर निकले तो उसके प्रमाण इस लेखक के हाथ लग गए।
जब बाद में इनकी चोरी पकडी गई तो इस दल के अधिकारी ओप्रकाश तिवारी ने इस पत्रकार के सवाल पर जवाब दिया कि हम ग्रेसिम के गेस्ट हाउस में तो गए, लेकिन ग्रेसिम का पानी तक नहीं पिया। वाह, देश के जाने माने चिंतक, लेखक एवं राष्टीय विचारधारा के सहोदर ग्रेसिम कंपनी के संस्थापक स्व घनश्याम दास बिड़ला के अधिकारियों में इतने तो संस्कार हैकि वे अपने यहां आए मेहमानों को पानी का भी नहीं पूछे। जल संसाधन विभाग के इन अधिकारियों को यहां पानी भी नसीब नहीं हुआ। बड़ी सोचनीय बात है। साथ ही पत्रकारिता जगत के किरदारों के के लिए शोध का भी विषय हैकि ग्रेसिम प्रबंधन ने अबकि बार ऐसा क्योें किया।
ग्रेसिम क्यों भूला अबकि बार, इतिहास के संस्कार
ग्रेसिम के गेस्ट हाउस में शासकीय मेहमानों की खतिरदारी के कई प्रसंग है। कई राजनेताओं, मंत्रियों की स्मृतियां इस ग्रेसिम के गेस्ट हाउस में खातिरदारी की पंरपरा से इतिहास भरा पड़ा है। किसी समय एक महिला कलेक्टर के इस गेस्ट हाउस में ठहरने का मामला मीडिया में सुर्खियों में आया था। उनका भी दौरा सरकारी था और बाद में उनको उपहार भी भेंट किए गए थे। जिसकी तस्वीरे इन पक्तियों कंे लेखक ने अपने समाचार पत्र में प्रकाशित की थी। इस उद्योग प्रबंधक ने एक बार तो इस क्षेत्र के एक ओहदेदार अधिकारी को निवास करने के लिए क्रमांक 64/6 की एक कोठी दे दी थी। वे इस कोठी में परिवार समेत रहते इधर ,ग्रेसिम के खिलाफ आई शिकायतों को सुनते भी थे। इसी कड़ी में एक राष्ट्रीय स्तर के समाचार ने एक बार तो एक पुलिस अििधकारी की वह खबर भी प्रकाशित की थी एक थानेदार साहब एक वर्ष से ग्रेसिम के गेस्ट हाउस में मेहमान बने हुए है, यहां पर खाना पीना कर रहे है, अपना निवास भी बना रखा है। इन तमाम उदाहरण के अलावा ग्रेसिम तो स्थानीय राजनेताओं को भी तो अनुग्रहित करती है। यदि बारीकी से जांच की जाए तो इन दिनों में कुछ राजनेता एवं उनके परिजन भले ग्रेसिम के कर्मचारी नहीं है, लेकिन ग्रेसिम के आवास सुविधा का भरपूर लाभ ले रहे हैं। ग्रेसिम में यह भी संस्कार हैकि वर्तमान में पदस्थ कोई बडा अधिकारी इस काॅलोनी में भले किसी सप्ताह सत्संग के कार्यक्रम में जाए तो उसकी खातिरदारी तो कर ही देते है। समझ में नहीं आया कि जल संसाधन विभाग के इन ओहदेदार अधिकारियों को पानी पिलाने के इस संस्कार से वंचित क्यों हो गए। या तो जल संसाधरन विभाग के अधिकारी झूठ बोल रहें है। लेकिन इन सब बातों के अलावा जांच का यह विषय हैकि जिस कंपनी के खिलाफ जांच करने आए आंैर उसी के यहंा मेहमान बन कर जाए।
इस प्रकार अधिकारी आए हरकत में
ग्रेसिम उद्योग के द्धारा कथित मेंटीनेसं के नाम पर नपा नागदा को लाखों की राशि का पानी बैचने के कई प्रमाणित अभिलेख इस लेखक के पास सुरक्षित हंै। विभाग के तत्कालीन मुख्य अभियंता के जी सिंह ने 16 नवंबर 2021 को अपर सचिव के पत्र का संदेश देकर कार्यपालन यंत्री जलसंसाधन विभाग उज्जैन से एक प्रतिवेदन भी मांगा था। जिसमें केजी सिंह ने लिखा हैकि यह पूरा मामला वरिष्ठ कार्यालय से वीडियो कांफेसिंग में भी उठाया गया है। मुख्य अभियंता केजीसिंह बाद में विभाग से सेवानिवृत हो चुके हैं। ग्रेसिम के द्धारा पानी बैचने के इस मसले को लेकर जल संसाधन विभाग एवं ग्रेसिम पं्रबंधन के अधिकारियांे की एक बैठक उज्जैन में 12 जनवरी 2022 को हुंई थी। इस बैठक में जल संसाधन विभाग के अधिकारियों के अलावा ग्रेसिम वाइस प्रेसीडेंट( एच आर) एस के सिंह, पीआरओं संजय व्यास, प्रभात श्री वास्तव (लीगल अधिकारी) गिरीश सक्सेना ग्रेसिम की और से उपस्थित हुए थे। इस बैठक के बाद ग्रेसिम प्रबंधन की और से एक सफाई पत्र 18 जनवरी 2022 को जल संसाधन विभाग के कार्यालय उज्जैन में प्रस्तुत हुआ। इस पत्र पर संजय व्यास के हस्ताक्षर है। इस पत्र की प्रति भी इस लेखक के पास सुरक्षित है। अब ताजा अपडेट यह आ रहा हैकि ग्रेसिम का रोका गया भुगतान जोकि लगभग 71 लाख है उसके लिए जोड़तोड़ शुरू हुई है। लेकिन यह राह अब आसान नहीं है।
कैलाश सनोलिया
(वरिष्ठ पत्रकार)