वैश्विक न्यूनतम कर : ऑनलाइन कारोबार वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भी अब देना होगा टैक्स

 

 

भारत समेत दुनिया के 130 देशों ने जिस वैश्विक न्यूनतम कर समझौते पर सहमति जताई है, उसके तहत बहुराष्ट्रीय कंपनी को उन देशों में भी कर देना होगा, जहां वे ऑनलाइन कारोबार से मुनाफा कमाती हैं। चाहे भले ही उन देशों में इन कंपनियों की भौतिक रूप से मौजूदगी न हो।

150 अरब डॉलर का अतिरिक्त कर मिलेगा हर साल
इससे अमेरिकी के 5 फीसदी के वैश्विक न्यूनतम कर के प्रस्ताव पर जिन देशों ने सहमति जताई है उनमें जी-20 देश भी शामिल हैं। इससे दुनियाभर के देशों को हर साल 150 अरब डॉलर का अतिरिक्त कर मिलेगा। नई कर व्यवस्था के दो पहलू हैं।

पहला, दुनिया भर के देशों को अपने यहां कारोबार करने और मुनाफा कमाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर समुचित कर लगाने का अधिकार मिलेगा। दूसरा, अलग-अलग देशों में अपने यहां करदाताओं का आधार बनाए रखने (संख्या घटने से रोकने) के लिए कॉरपोरेट कर की दर कम से कम रखने की होड़ नहीं मचेगी।

भारत-चीन ने पहले जताई थी आपत्ति
इससे पहले भारत और चीन जैसे बड़े विकासशील देशों ने वैश्विक न्यूनतम कर के प्रति आपत्ति जताई थी। अब यह सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने की कोशिश करेंगी कि उनके देशों में जिन कंपनियों के मुख्यालय हैं। वह न्यूनतम 15 फीसदी की दर का भुगतान करें।

इन पर भी जुर्माना लगाने का प्रावधान
नए अंतर्राष्ट्रीय कर कानून में उन कंपनियों और देशों पर भी जुर्माना लगाने का प्रावधान होगा जो संबंधित नियमों से खिलवाड़ करेंगे। इससे उन कंपनियों पर लगाम कसेगी जो टैक्स कम रखने के लिए अपनी कमाई शून्य या लो टैक्स रेट वाले देशों में दिखाती हैं।

इसके अलावा शुरुआत में न्यूनतम कर के दायरे में वह बहुराष्ट्रीय कंपनियां आएंगी जिनकी सालाना कमाई 24 अरब डॉलर या इससे ज्यादा होगी। बाद में इसके दायरे में उन कंपनियों को भी लाया जाएगा जिनकी सालाना कमाई 12 अरब डाॅलर या इससे ज्यादा होगी।

अक्तूबर तक बन सकती है सहमति : भारत
वैश्विक न्यूनतम कर की ओईसीडी जी-20 रूपरेखा में शामिल होने के एक दिन बाद वित्त मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि मुनाफा आवंटन में हिस्सेदारी और कर नियम सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों को हल किया जाना बाकी है।

प्रस्ताव के तकनीकी विवरण आने के बाद इस करार पर अक्तूबर तक सहमति बन सकती है। मंत्रालय ने कहा कि भारत ऐसा सहमति वाला समाधान चाहता है जिसका क्रियान्वयन और अनुपालन आसान हो। साथ ही समाधान ऐसा होना चाहिए जिसकी बाजार क्षेत्रों को आवंटन अर्थपूर्ण और सतत रहे। खासकर विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए।

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