विश्व पर्यावरण दिवस: लॅाकडाउन ने इस साल बदल दी तस्वीर

नदियों में दिखने लगी तलहटी, हिमालय के होने लगे दर्शन

विश्व पर्यावरण दिवस: लॅाकडाउन ने इस साल बदल दी तस्वीर

-जहरीली हवा से होने वाली मौतों का आंकड़ा भी आया नीचे

लखनऊ, 04 जून । पांच जून को मनाया जाने वाला विश्व पर्यावरण दिवस इस बार पिछले सालों से अलग होगा। इस वर्ष लॉकडाउन की वजह से उत्तर प्रदेश में प्रदूषण काफी कम हो गया है। नदियों के जल निर्मल होने से उसकी तलहटी तक दिखने लगी है। वायुमंडल साफ होने से प्रदेश के कुछ भागों से सुदूर हिमालय के दर्शन होने लगे हैं। साथ ही जहरीली हवा कम होने से लोगों को गंभीर रोगों से काफी राहत मिली और मौत के आकड़े में भी कमी आई है।

पिछले वर्षों तक पर्यावण को लेकर सरकारें और गैर सरकारी संगठन बहुत चिंतित रहते थे, लेकिन इस साल लोगों की चिंताएं थोड़ा कम हैं । दरअसल कोरोना आज भले दुनिया भर में मानव के लिए महामारी का रूप ले चुका हो लेकिन, प्रदूषण की मार झेल रहीं नदियों और वायुमंडल के लिए यह कातिल वायरस संजीवनी साबित हुआ है। लॅाकडाउन का पर्यावरण पर बड़ा ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

नदियों में दिखने लगी तलहटी
लाॅकडाउन के चलते प्रदेश की प्रमुख दो नदियों गंगा और यमुना में मिलों के कचरे और गंदे नालों का प्रवाह रुक गया। इससे नदियों की वाटर क्वालिटी में व्यापक सुधार आया है। ऑक्सीजन कंटेंट बढ़ गया है। जल इतना निर्मल हो गया है कि जगह-जगह नदियों की तलहटी दिखने लगी है। प्रयागराज में तो गंगा और यमुना का संगम इस समय स्पष्ट देखा जा सकता है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी माना है कि लाॅकडाउन के दौरान बंद कारखानों की वजह से औद्योगिक कचरे में कमी आई है, जिससे गंगा-यमुना समेत अन्य नदियों के जल स्वच्छ हो रहे हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के माॅनिटरिंग डेटा में भी दोनों नदियों के पानी की गुणवत्ता मछलियों और वन्यजीवों के लिए अनुकूल मिली है। उत्तर प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि लाॅकडाउन के दौरान वाराणसी के अंदर गंगा में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 8.3-8.9 ग्राम प्रति लीटर पाई गई, जो स्वच्छ जल के न्यूनतम स्तर सात ग्राम प्रति लीटर से पर्याप्त अधिक है।

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. डीएन शुक्ल ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि लाॅकडाउन के चलते गंगा का जल अपेक्षाकृत निर्मल हुआ है। प्रो. शुक्ल ने कहा कि इस समय गंगा का जल कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी में काफी साफ नजर आ रहा है। बीएचयू आईआईटी के प्रो. पीके मिश्र की माने तो गंगा का जल 40 प्रतिशत तक शुद्ध हो गया है।

वहीं आगरा और मथुरा के लोग यमुना के जल को पिछले कई दिनों से अपेक्षाकृत अधिक साफ देखकर चकित हैं, क्योंकि इन दोनों शहरों में यमुना का पानी हमेशा गंदा दिखता था और गंदगी के कारण उसमें सफेद झाग दिखाई देते थे। पर्यावरणविदों का कहना है कि अगर औद्योगिक इकाइयों का रासायनिक कचरा नदियों में न गिरे तो गंगा और यमुना में खुद को साफ रखने की क्षमता विद्यमान है।

वायु प्रदूषण में भी आई कमी

राजधानी लखनऊ, गाजियाबाद, नोएडा, कानपुर और वाराणसी समेत उत्तर प्रदेश के अधिकतर शहर लाॅकडाउन से पहले बेहद प्रदूषित हो गये थे। सांस लेने के लिए लोगों को शुद्ध हवा नहीं मिल पा रही थी, लेकिन अब वे चैन की सांस ले रहे हैं। करीब हर बड़े शहर के प्रदूषण में खासी कमी आई है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 21 मार्च को देश भर में लगे जनता कर्फ्यू से पहले और बाद की जो तुलनात्मक रिपोर्ट दी थी उसके अनुसार उत्तर प्रदेश के अधिकतर शहरों में वायु की गुणवत्ता अच्छी और संतोषजनक थी। वहीं, लाॅकडाउन के दौरान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पांच अप्रैल को जो रिपोर्ट जारी की उनमें इन शहरों के वायु प्रदूषण में और कमी पाई गई थी। हालांकि, 31 मई के बाद लाॅकडाउन में छूट के कारण वाहनों का आवागमन प्रारम्भ हो गया है, फिर भी स्थिति काफी संतोषजनक है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी ताजी रिपोर्ट के अनुसार गुरुवार शाम चार बजे तक आगरा की एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 66, कानपुर की एक्यूआई 64, लखनऊ की 146, वाराणसी की 66, मेरठ की 125, गाजियाबाद की 163 और नोएडा की 141 रही।

हिमालय के होने लगे दर्शन
लॅाकडाउन से पर्यावरण पर पड़े सकारात्मक प्रभाव का नतीजा यह रहा कि मुजफ्फरनगर और सहारनपुर के लोगों को करीब 40 साल बाद हिमालय के दर्शन होने लगे। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मुजफ्फरनगर हैदरपुर वेटलैंड से इस समय हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों का दीदार हो रहा है। वहीं भोर में शहर की ऊंची इमारतों से भी शिवालिक पर्वत श्रृंखला के दर्शन होने लगे हैं।

मुजफ्फरनगर के रहने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी एएन कौल बताते हैं कि बीसवीं सदी के पांचवें दशक तक मुजफ्फरनगर में प्रदूषण लगभग शून्य था। उस समय तक वर्षा ऋतु के बाद हिमालय की शिवालिक श्रृंखला की बर्फ से ढकी चोटियां वहां से साफ दिखती थीं।

श्री कौल ने वहां के पर्यावरण को लेकर एक पुस्तक ‘‘जाने कहां गए वो दिन’’ भी लिखी है, जिसमें इस बात की चर्चा है कि किसी जमाने में मुजफ्फरनगर की धरती से हिमालय के दर्शन होते थे। लेकिन, समय के साथ शहर में प्रदूषण तेजी से बढ़ा। इसी साल 27 जनवरी को वायु प्रदूषण की स्थिति सबसे ज्यादा 383 रही। सामान्य दिनों में एक्यूआई 200 से 250 रहता है। लाॅकडाउन के दौरान वहां की एक्यूआई 100 से नीचे तक पहुंच गई थी। इस समय गाड़ियों के आवागमन में छूट के बावजूद वहां की एक्यूआई 100 से 125 के बीच ही है।

इसी तरह पिछले दिनों सहारनपुर के एक आयकर अधिकारी दुष्यंत कुमार सिंह द्वारा खींची गई एक फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई। इस फोटो में सहारनपुर से सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित हिमालय की पहाड़ियां साफ नजर आ रही हैं। इसके बाद एक आईएफएस अधिकारी रमेश पाण्डेय ने भी अपने ट्वीटर हैंडल पर कई फोटो डाली और लिखा कि लॉकडाउन के चलते सहारनपुर में वायु प्रदूषण खत्म सा हो गया है। दृश्यता इतनी बढ़ गई है कि सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित हिमालय की पहाड़ियां साफ नजर आ रही है।

मौतों का आंकड़ा भी आया नीचे
लाॅकडाउन के चलते प्रदेश के वातावरण में इतना सुधार आया कि हृदय और सांस संबंधित गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या में एकाएक कमी आ गई। इससे मौत का ग्राफ नीचे गिरा है। लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. वेद प्रकाश ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि श्वास संबंधी बीमारी के मूल कारण धूल और धुआं हैं। लाॅकडाउन के कारण सड़कों पर वाहनों की संख्या नगण्य हो गई। इससे प्रदेश के शहरों में वायु प्रदूषण में भारी कमी आई। ओजोन लेयर रिपेयर हुई। ऐसे में लोग अब चैन की सांस ले रहे हैं। साथ ही लाॅकडाउन के दौरान लोग घरों में रहे। इससे तनाव कम हुआ। नतीजतन हृदय और सांस संबंधित गंभीर रोगों से लोगों को राहत मिली और मौतों की संख्या में भारी कमी आई।

वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व राज्य सभा सांसद आरके सिन्हा का भी मत है कि कोरोना ने लोगों को बहुत सिखाया। लाॅकडाउन के कारण लोगों को अपने घरों में शुद्ध भोजन मिला। शुद्ध हवा मिली। इससे हृदय, श्वसन और पेट संबंधी कई गंभीर रोगों से लोगों को काफी राहत मिली। साथ ही लोग असमय मौत से भी बचे।

पांच जून को ही पर्यावरण दिवस क्यों ?
दरअसल संयुक्त राष्ट्र संघ ने पर्यावरण के प्रति पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए वर्ष 1972 में पांच से 16 जून तक स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पर्यावरण सम्मेलन किया था। इस सम्मेलन में 119 देशों ने भाग लिया था। इसी दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह तय किया था कि हर साल पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाएगा, ताकि लोग पर्यावरण के प्रति सचेत हो सकें। उसी समय से लगातार हर वर्ष पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत में 19 नवंबर 1986 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। इसके तहत जल, वायु और भूमि तीनों से संबंधित कारक तथा मानव, पौधे एवं अन्य जीव पर्यावरण संरक्षण के अंतर्गत आते हैं।

आयोजित होंगे विविध कार्यक्रम
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर शुक्रवार को राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में कई कार्यक्रम आयोजित होंगे। लखनऊ चिड़ियाघर के अलावा कई संस्थानों में तरह-तरह की प्रतियोगिताएं भी की जाएंगी। कुछ संस्थान जैव विविधता संरक्षण को लेकर जागरुकता अभियान चलाएंगे। सरकारी एवं गैर सरकारी संगठन इस मौके पर पौध रोपण का भी कार्यक्रम करेंगे। उप्र की योगी सरकार ने तो इस साल पूरे प्रदेश में 25 करोड़ पौध रोपण का लक्ष्य निर्धारित किया है।

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