लालच और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती सरकारी योजनाएं

 

 

यह हमारे देश की विडम्बना ही तो है कि सरकारी स्कीमों का लाभ उनको छोड़कर जिन्हें इसकी जरूरत है, बाकी सब लेते हैं.

लालच और भ्रष्टाचार इस कदर समाज में बस चुका है कि इसे हटाने की बात करना सिर्फ जुमलेबाजी ही लगती है.

प्रदेश में निजी अस्पतालों द्वारा खुले आम आयुष्मान के नाम पर सरकारों को लूटा जा रहा है और प्रशासन एवं राजनीतिक मिलीभगत से करदाता का पैसा लुटवाया जा रहा है, वह भी कुछ निजी हाथों में.

अस्पताल चलाने के लिए यदि भ्रष्टाचार करना है या समाज को ठगना है तो फिर ऐसे अस्पताल खोलने का क्या फायदा?

लोगों की मजबूरी पर धंधा चलाना, सरकारी पैसे को लूटना, दुरूपयोग करना असंवेदनशील और असमाजिक है.

प्रदेश में जून 21 में 84 निजी अस्पतालों की जांच शुरू हुई थी और सिर्फ 3 अस्पतालों पर अभी तक कार्यवाही हो पाई. बाकी पर जांच कहाँ पहुँची, कुछ पता नहीं और इसके अलावा ढेरों निजी अस्पताल आयुष्मान घोटाला कर रहे हैं- वे कब जांच में आऐंगे, कुछ पता नहीं.

भोपाल के तो एक निजी अस्पताल ने 1655 फर्जी मरीज जो भरती ही नहीं हुए, उनके नाम पर 4 करोड़ रुपये सरकार से ले लिया और न जाने ऐसे कितने अनगिनत केस होंगे.

*समाज का विकास और लाभ तभी संभव है जब हम सब अपनी संकीर्ण मानसिकता को छोड़ देशहित में एक साथ काम करें. इसका सबसे उत्तम उदाहरण नोएडा की रेसिडेंट वेलफेयर सोसाइटी द्वारा अनेक धमकियों के बाद भी एकजुटता से केस लड़ा गया और अंततः ट्विन टावर रुपी भ्रष्टाचार ध्वस्त हुआ*

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