हाल में ही जीएसटी काउंसिल की 45 वीं मिटिंग सम्पन्न हुई जिसमें एक फारमेलटी के तौर पर कुछ चीजों पर टैक्स बढ़ा दिया, कुछ पर कम कर दिया और कुछ को करमुक्त कर संतुलन बनाने का प्रयास किया गया.
इसी तरह केरल हाईकोर्ट के निर्णय के आधार पर पेट्रोल डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की नाकाम कोशिश की गई जो कि सिर्फ एक दिखावटी कदम था.
असली मुद्दा राज्यों को जीएसटी क्षतिपूर्ति देने का था जो जून 2022 में केन्द्र सरकार की तरफ से खत्म हो रहा है.
राज्य चाह रहे हैं कि इसे 2026 तक जारी रखा जावे और मिटिंग का असली मकसद भी यही था लेकिन केन्द्र सरकार ने साफ तौर पर अपने हाथ उठा दिये है और इसे जारी रखने से मना कर दिया है.
केन्द्र सरकार का मत है कि जो राज्यों को क्षतिपूर्ति देने के लिए उसने उधारी ली है, उसे चुकाने में ही 2026 तक का समय लग जावेगा और राज्यों को बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था और कानून के क्रियान्वयन से अपनी आय बढ़ाने पड़ेगी.
अब राज्यों पर भारी दबाव ये है कि जीएसटी जैसे केन्द्रीय कानून से आय बढ़ना बहुत कुछ केन्द्र सरकार की आर्थिक और व्यापारिक नीति पर आधारित होता है और ऐसे में उनके लिए आय बढ़ाने का संसाधन पेट्रोल डीजल, प्रापर्टी, शराब, बिजली और नगर निगम, आदि पर टैक्स लगाना ही चारा हैं.
45 वीं जीएसटी काउंसिल मिटिंग से यह साफ हो गया है कि आम जनता के लिए परेशानियां और बढ़ेंगी, मंहगाई और जरुरत के सामानों में मूल्य वृद्धि तय है. जिस तरह केन्द्र अपनी सम्पत्ति को बेचने की योजना बना रहा है, उसी तरह राज्यों को भी प्रक्रिया अपनानी पड़ेगी ताकि राजस्व मिल सके बढ़ते सरकारी खर्चे और जन प्रचार और सहुलियत की योजनाओं के लिए.
होना तो यह चाहिए था कि केन्द्र सरकार जीएसटी क्रियान्वयन और उससे संबंधित सारे नितिगत फैसलों की जबाबदारी खुद लें और राज्यों को उनकी जरूरत के आधार पर केन्द्र सरकार द्वारा बनाई गई नितियों को लागू करने का अधिकार दिया जाए.
केन्द्र सरकार के पास विशेषज्ञों की टीम है और हर राज्य आर्थिक और व्यापारियों मोर्चे पर सिर्फ केन्द्र सरकार की नीति का अनुशरण करें और केन्द्र द्वारा बनाए गए मापदंड के अनुसार राज्य की अर्थव्यवस्था चलाए.
केन्द्र को हर हाल में राज्यों में हो रही राजस्व की कमी की जबाबदारी लेनी होगी तभी जीएसटी जैसे कानून का सही मायने में सही क्रियान्वयन और उपयोग जनता को लाभ देगा.
महाराष्ट्र, गुजरात और तेलंगाना जैसे राज्यों को छोड़ दे तो आप पाऐंगे कि हर राज्य आर्थिक और व्यापारिक नीति में असक्षम है और सिर्फ वित्त का समायोजन और गैर जरूरी कामों में खर्च करने में लगा है.
ऐसे में जीएसटी काउंसिल की मिटिंग सिर्फ दिखावा मात्र न रहकर कुछ क्रांतिकारी बदलाव और राज्यों की आर्थिक समस्या का निवारण केन्द्र बनें एवं जीएसटी कानून एक जन हितैषी कानून के रूप में उभरे, तभी जीएसटी की तर्कसंगता और उपयोग जनता के समक्ष साबित होगा.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर