यहां हैं होली पर हिन्दू पंचांग पढ़ने की कायम है परम्परा

हमीरपुर,  वीरभूमि बुन्देलखण्ड के हमीरपुर जनपद के सुमेरपुर थाना क्षेत्र के कुंडौरा गांव में होली पर्व पर धार्मिक स्थल में ग्रामीणों के बीच हिन्दू पंचांग पढ़ने और सुनाने की (हिन्दू कलेन्डर) परम्परा कायम है। ये परम्परा भी सैकड़ों साल पुरानी है जिसे गांव के हर कोई को इंतजार रहता है।
हमीरपुर शहर से करीब दस किमी दूर कंडौरा गांव कई परम्पराओं के लिये विख्यात है। यहां होली का त्यौहार भी बड़े ही अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। गांव के बी.एल.कुशवाहा, रमेश कुमार ने बताया कि अतीत में गांव में परम्परायें इसलिये शुरू की गयी थी ताकि गांव के लोग त्यौहार, मौसम, लग्न, बाजार का रुख, वार्षिक राशिफल और भविष्य फल सामूहिक रूप से जान सके। होली जलने के बाद परेवा को जब गांव में पुरुष वर्ग होली मिलन समारोह आयोजित करता है तो गांव के राम जानकी मंदिर में कुंडौरा और दरियापुर ग्रामों के लोग बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं।
फाग गाने वाले गायक और वादक पहले बड़े चाव से ईसुरी कवि की फागे (होली गीत) गाते हैं फिर इसी गांव के ब्राह्मण या मंदिर के पुजारी हिन्दू पंचांग पढ़कर सुनाते हैं। आचार्य मिथलेश द्विवेदी ने बताया कि पिछले कई सालों से गांव के सुन्दरलाल ही मंदिर परिसर में हिन्दू पंचांग पढ़ते थे जिसे सुनने के लिये ग्रामीणों की भीड़ भी उमड़ती थी लेकिन उनके निधन के बाद अब ये दायित्व रामकिशोर शास्त्री निभा रहे हैं।
हालांकि अब जमाना बदल गया है। इंटरनेट के जमाने में न्यूज चैनल, आकाशवाणी व प्रिन्ट मीडिया के माध्यम से हर तरह की जानकारी लोगों को मिल जाती है। इसके बाद भी ग्रामीण परिवेश की परम्पराओं के प्रति लोगों का जुड़ाव अभी भी देखा जा रहा है। सांस्कृतिक परम्पराओं में जन मानस की इतनी अगाध आस्था है कि उसे जोड़े रखने में लोग आत्म संतोष भी महसूस करते हैं।
गांव के सरपंच अवधेश यादव कहते हैं कि पंचांग पढ़ने की परम्परा से गांव के आम लोगों में एकता, प्रेम और भाईचारा का भाव उत्पन्न होता है। कहीं-कहीं त्यौहार दो दिनों तक मनाये जाते हैं लेकिन समस्त ग्रामवासियों के बीच कौन त्यौहार कब मनाया जाना है, पंचांग के अनुसार उनकी तिथि का निर्धारण हो जाता है। जो सर्वमान्य भी होता है। इसीलिये इस तरह की परम्परायें सामाजिक एकता को प्रगाढ़ बनाये हुये हैं।
पंडित दिनेश दुबे ने बताया कि होली पर पंचांग पढ़ने की परम्परा इस गांव में बहुत पुरानी है, जो कुंडौरा गांव में बदलते दौर में आज भी कायम है। इस तरह की परम्परायें सिर्फ गांवों में ही देखने और सुनने को मिलती हैं। जहां परम्परायें होती हैं वहां हर त्यौहार की रंगत भी कुछ और ही होती है।
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