सुरेश शर्मा:
संघ प्रमुख डा. मोहन भागवत के इस बयान पर सबसे अधिक चर्चा हो रही है जिसमें उन्होंने कहा था कि हर मस्जिद में मंदिर देखना उचित नहीं है। हिन्दू नेता बनने की इच्छा से ऐसा करना भी उचित नहीं है। इस बयान काे अधिक समर्थन नहीं मिला। यह भी सामने आया कि विचार के करीब रहने वाले विचारकों और पदाधिकारियों ने भी संघ प्रमुख के इस बयान को जल्दबाजी मान लिया। अब जब संघ के अंग्रेजी वाले मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने अपनी संपादकीय में बयान से विपरीत विचार व्यक्त किये हैं तब यह विषय और चर्चा में आना स्वभाविक है। संघ प्रमुख के इस बयान को राजनीतिक बयान माना गया जबकि संघ का कार्य राजनीति करना नहीं है समाज में व्यापक बदलाव लाना और सनातन आस्थाओं को अधिक सुदृढ़ करना है। संघ सामाजिक कार्यों के माध्यम से इसे सुदृढ़ करता भी आ रहा है और समाज में इसी प्रकार की उसकी मान्यता भी है। लेकिन जब इस प्रकार के बयान आ जाते हैं तब आस्था रखने वाले व्यक्तियों में विचलन पैदा होती है। वैसे संघ के मुखपत्रों में संघ प्रमुख की भावनाओं को सही से नहीं रखने का आरोप इससे पहले भी लगा है। बिहार चुनाव के समय आरक्षण पर दिये गये उनके बयान को मुखपत्र के कारण ही अधिक विवाद मिला था। तब यह कहा गया था कि संपादन करने वाले दोहरी मानसिकता के कारण ऐसा कर दे रहे हैं और उनके पत्रकारीय दबाव में कोई उन्हें कह नहीं पाता है। लेकिन संघ प्रमुख के बयान के दो मायने हैं। पहला यह कि यह सामाजिक क्रान्ति का विषय है इसे सामाजिक विवाद नहीं बनाना चाहिए। इस बयान में यह छुपा हुआ है कि मस्जिद में मंदिर देखने का कार्य इतिहास के उस क्रुर काल की याद दिलाये यह सामने आना चाहिए। इससे आज के समाज में टकराव व तनाव न हो ऐसा ध्यान रखना चाहिए। यह संघ का मुखपत्र स्पष्ट नहीं कर पा रहा है। दूसरा बयान का अर्थ यह है कि हिन्दू नेतृत्व पनपे जरूर लेकिन वह अपनी ऊर्जा काे समाज विकास और सनातन विस्तार में लगाये। ऊर्जा को विवाद में खर्च न करे? इसलिए फिर से यह कहना उचित होगा कि संघ के मुखपत्र अपनी भूमिका निभाने में कामयाब नहीं हो पाये। उनके संपादकीय विवाद पैदा करने और संघ प्रमुख को कमजोर दिखाने की राह दिखाने वाले रहे हैं। फिर चाहे आरक्षण की समीक्षा का बयान हाे या यह ताजा बयान। सर्वोच्च न्यायालय तक आरक्षण की समीक्षा का पक्षधर है। आरक्षण का लाभ समूचे समाज को मिले यह कौन नहीं चाहेगा लेकिन संघ प्रमुख के बयान को सही से नहीं समझाने के कारण वह विवाद बन गया। इसलिए मुखपत्र संघ प्रमुख की गंभीर और आने वाले भविष्य को दिशा देने वाले बयानों को खुद ही गलत दिशा में प्रस्तुत कर रहा है। वह अन्य संस्थानों को आलोचना का रास्ता दे रहा है।