करणी सेना के लोगों द्वारा सार्वजनिक रूप से गालियां दिए जाने पर एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अपना मौन तोड़ दिया है।घटना के 4 दिन बाद उन्होंने ट्वीट करके अपनी “व्यथा” जाहिर की है।शिवराज ने गाली देने वालों को माफ करने की भी बात कही है।
इसके साथ ही यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि इस मुद्दे पर शिवराज इतने अकेले क्यों हैं?उनकी पार्टी और उनके मंत्रिमंडल के साथी इस मुद्दे पर मुंह में दही जमाए क्यों बैठे हैं ?मुख्यमंत्री के सार्वजनिक अपमान पर सब मौन क्यों हैं?
आपको याद होगा कि करणी सेना ने 8 से 12 जनवरी तक भोपाल में धरना और प्रदर्शन किया था।इसी प्रदर्शन के दौरान करणी सेना के कुछ युवाओं ने मुख्यमंत्री को बहुत ही गन्दी और अश्लील गालियां दी थीं।यह गलियां पुलिस कर्मियों के सामने दी गई थीं।साथ ही इनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया गया था।
इस मामले में पुलिस ने आंदोलन खत्म हो जाने के बाद कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था।एक व्यक्ति को हरियाणा से गिरफ्तार भी किया गया है।उसके खिलाफ कुछ नए मुकदमें भी भोपाल पुलिस ने दर्ज किए हैं।इस गिरफ्तारी के बाद करणी सेना के आंदोलन के सूत्रधार जीवन सिंह शेरपुर ने भी मुख्यमंत्री को गाली दिए जाने की निंदा की थी और खेद जताया था।
इस बीच आज मकर संक्रांति के दिन शिवराज सिंह ने अपनी पीड़ा जाहिर की है।उन्होंने ट्वीट करके कहा है पिछले दिनों एक आंदोलन के दौरान अभद्र भाषा का उपयोग किया गया था।
मुख्यमंत्री की आलोचना का अधिकार है।लेकिन जिस मां का स्वर्गवास बरसों पहले मेरे बचपन में ही हो गया था उनके लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल अंतरात्मा को व्यथित कर गया।
इस मामले में क्षमा मांगी गई है।मैं भी अपनी मां से प्रार्थना करता हूं कि वह जहां भी हों अपने इन बच्चों को क्षमा करें।मेरे मन में अब उनके लिए कोई गिला शिकवा नहीं है।
आप सब अपने हैं।अपना भी कोई गलती कर दे उसको अपने से अलग नहीं किया जा सकता।
मैं सबसे स्नेह करता हूं।सबके कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हूं।समाज के सभी वर्गों के विकास का काम किया है।आगे भी करता रहूंगा।
मुख्यमंत्री का यह ट्वीट यह प्रमाणित करता है कि वह वास्तव में बहुत दुखी हैं।स्वर्गीय मां के अपमान से उनको बहुत पीड़ा हुई है। करणी सेना की माफी को स्वीकार कर ,गाली देने वालों को माफ कर उन्होंने अपना बड़प्पन दिखाया है।मुख्यमंत्री पद की गरिमा के अनुरूप आचरण किया है।लेकिन यह अपमान उनके मन से निकल गया होगा ऐसा सोचना उनकी संवेदना को न समझ पाना ही होगा।उन्हें दुख हुआ है।एक पुत्र के नाते यह दुख होना स्वाभाविक भी है।
मुख्यमंत्री के ट्वीट के साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि जिस बात ने मुख्यमंत्री की अंतरात्मा को हिला दिया,उसका तनिक भी अहसास उनके मंत्रिमंडल के साथियों और सबसे संस्कारवान होने का दावा करने वाली उनकी पार्टी के जिम्मेदार नेताओं को क्यों नही हुआ ?
इसके साथ ही यह सवाल भी उठा है कि शिवराज को अकेला छोड़ दिया गया है?उनको दी गई गाली को उनकी समस्या मान कर सब चुप्पी साधे हैं?
शिवराज मंत्रिमंडल के एकमात्र सदस्य महेंद्र सिंह सिसोदिया ने इस घटना की तत्काल निंदा की थी।सिसोदिया मूलतः कांग्रेसी थे।वे ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए हैं।
उनके अलावा एक भी मंत्री ने मुख्यमंत्री की मां को दी गई गालियों का संज्ञान नही लिया।कोई भी इस पर कुछ नही बोला।और तो और वे राजपूत मंत्री भी इस बारे में अपना मुंह बंद किए हैं जिन्होंने करणी सेना की मांगे मानने का आश्वासन देकर आंदोलन और धरना खत्म कराया था।इससे पहले 5 जनवरी को मुख्यमंत्री आवास में राजपूत संगठनों का मजमा जुटाया था।कहा तो यह भी जा रहा है कि करणी सेना के आंदोलन को फेल करने के लिए ही वह सम्मेलन कराया गया था और मुख्यमंत्री से बड़ी बड़ी घोषणाएं कराई गईं थीं।
मंत्रियों के मौन से भी ज्यादा सवालिया मौन बीजेपी के नेताओं का है।छोटी छोटी बातों पर मेढ़क की तरह टर्र टर्र करने वाले नेताओं ने मुख्यमंत्री को दी गई गालियों को अनसुना और अनदेखा कर दिया।एक फिल्म अदाकारा के कपड़ों पर देश की अस्मिता को खतरा मानने वाले नेताओं को अपने मुख्यमंत्री की मां का अपमान क्यों नही दिखा?
अपनों का मुंह बंद देखकर ही शायद मुख्यमंत्री ने अपनी अंतरात्मा की पीड़ा का इजहार खुद किया।बचपन में खोई मां को याद किया।उनसे गुहार भी कि वे गाली देने वालों को माफ कर दें।
लेकिन इसके साथ ही यह बड़ा सवाल भी खड़ा हुआ है कि क्या चुनावी साल में शिवराज सिंह को अकेला छोड़ दिया गया है?आने वाले दिनों में उन्हें अपनी लड़ाई अकेले लड़नी होगी?पार्टी अब उनका साथ नहीं देगी?मुख्यमंत्री की कुर्सी पर गिद्ध दृष्टि जमाए लोग अपना सामाजिक दायित्व भी भूल गए हैं।
सबके “सामूहिक मौन” की अलग अलग व्याख्या हो सकती है!लेकिन आज पार्टी के एक वरिष्ठतम नेता के प्रति ऐसा नजरिया अपने आप में एक मिसाल है।ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।पिछले दिनों इंदौर में हुए दो बड़े कार्यक्रमों में भी शिवराज ही निशाने पर रहे थे।
शिखर से उतरे और पार्टी द्वारा किनारे किए गए नेताओं को साथियों द्वारा छोड़े जाने के अनेक उदाहरण मौजूद हैं।लेकिन शिखर पर मौजूद व्यक्ति के साथ ऐसे व्यवहार की यह पहली मिसाल होगी।
कुछ भी हो अपना एमपी गज्जब है और अजब भी! सजग कितना है यह पता नहीं!
अरुण दीक्षित