देश के 5 राज्यों में विधान सभा चुनाव (Assembly elections 2023) के लिए वोटिंग का समय नजदीक आता जा रहा है। मध्य प्रदेश में सभी राजनीतिक दल अपनी एडी चोटी का जोर लगाना शुरू कर चुके हैं। मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों (Assembly elections 2023) की तैयारियों में मालवा-निमाड़ क्षेत्र दोनों प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा का फोकस एरिया बना हुआ है। मालवा और निमाड़ की अहमियत इस चुनाव में काफी ज्यादा है।
मध्य प्रदेश बीजेपी और कांग्रेस, दोनों के लिए काफी अहम है। एक तरफ जहां कर्नाटक में जबरदस्त जीत हासिल करने के बाद मध्य प्रदेश को लेकर कांग्रेस की उम्मीदें बढ़ गई हैं तो वहीं बीजेपी भी किसी भी हालत में यहां सत्ता बरकरार रखने की हर संभव कोशिश कर रही है। हालांकि सूबे की सत्ता पर किसका राज होगा, इसका फैसला 3 दिसंबर को ही होगा।
इन सब के बीच मध्य प्रदेश का एक क्षेत्र ऐसा भी है जिसे मध्य प्रदेश की सत्ता की चाबी माना जाता है और वो क्षेत्र है मालवा निमाड़। किसानों, व्यापारियों और आदिवासियों से भरे इस क्षेत्र के तहत विधानसभा की 66 सीटें आती हैं जो बाकी क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा है। बीजेपी कांग्रेस बखूबी इस बात को जानते हैं कि राज्य की सत्ता का रास्ता इसी क्षेत्र से होकर गुजरता है, इसलिए दोनों ही पार्टियों का इस क्षेत्र पर खास फोकस रहता है।
क्यों खास है मालवा निमाड़ की सीट?
साल 2018 में जब कांग्रेस को जीत मिली थी तब मालवा निमाड़ क्षेत्र ने ही पार्टी का वनवास खत्म किया था। इस क्षेत्र में पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था और बीजेपी से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की थी। उस समय कांग्रेस ने 66 में से 35 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी केवल 28 पर सिमट कर रह गई थी। इससे पहले साल 2013 में स्थिति बिल्कुल उलट थी। बीजेपी इस क्षेत्र में 57 सीटों पर जीत हासिल करते हुए सूबे की सत्ता पर काबिज हुई थी जबकि कांग्रेस यहां केवल 9 सीटें ही हासिल कर पाई। 2020 में सत्ता पलट होने के बाद फिलहाल बीजेपी के पास मालवा निमाड़ में 33 सीटें हैं जबकि कांग्रेस के पास 30 सीटे हैं. दोनों ही पार्टियों को इस क्षेत्र की अहमियत का अंदाजा है, इसलिए दोनों ही यहां लोगों का दिल जीतने की हर संभव कोशिश कर रही है।
आदिवासियों की अहम भूमिका
जब राहुल गांधी के नेतृत्व वाली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को मध्य प्रदेश के 380 किलोमीटर लंबे इलाके से गुजरना था, तो कांग्रेस ने मार्च के लिए इस क्षेत्र को चुना, जिसे कई लोगों ने एक सोची-समझी रणनीति करार दिया। मालवा-निमाड़ क्षेत्र में 15 जिले हैं, जिनमें 9 विधानसभा सीटों वाला इंदौर, उज्जैन (7), रतलाम (5), मंदसौर (4), नीमच (3), धार (7), झाबुआ (3), अलीराजपुर (2) शामिल हैं। बड़वानी (4), खरगोन (6), बुरहानपुर (2), खंडवा (4), देवास (5), शाजापुर (3) और आगर मालवा (2) शामिल है। राज्य की एसटी के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 22 इसी क्षेत्र में हैं। ऐसे में यहां आदिवासी भी डिसाइडर फैक्टर माना जाता है। पिछली बार कांग्रेस ने 15 सीटें जीतकर आदिवासियों के बीच अपना आधार बढ़ाया था. 2013 में ये आंकड़ा छह था। इस दौरान भाजपा की सीटें 15 से घटकर छह रह गई थी.
वहीं जानकारों का कहना है कि मुताबिक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ग्रामीण इलाकों में जनता से जुड़ाव और उनकी सरकार की हाल ही में शुरू की गई ‘लाडली बहना योजना’ महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हालांकि एक दर्जन से अधिक सीटों पर दोनों पार्टियों के बागी नतीजे बदल सकते हैं। अगर इन्हें पार्टी का टिकट दिया जाए तो इन बागियों में जीतने की क्षमता है।