निर्मल सिरोहिया :
मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय का मुख्यमंत्री चुना जाना भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व की राजनीतिक सूझबूझ और दूरगामी सोच की निशानी है। उनका यह निर्णय चौंकाता जरूर है, लेकिन इसमें कोई कमजोरी नहीं झलकती। उज्जैन से विधायक चुने गए डॉ. मोहन यादव छात्र राजनीति की उपज हैं और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आदर्शों के साथ राष्ट्रवादी दल भाजपा की पाठशाला से राजनीति सीखने के साथ शिक्षा की कई उपाधियों के साथ विशेषज्ञता प्राप्त हैं। वे सार्वजनिक मंचों पर जबानी जंग करने के साथ मैदानी जोर आजमाईश में भी निपुण हैं। बाबा महाकाल की नगरी के इस यौद्धा के मन में भक्तिभाव की भी कमी नहीं हैं। धर्म, संस्कृति और सामाजिक दायित्वों के निर्वहन में डॉ. मोहन यादव कई बार खुद को साबित कर चुके हैं। उन्होंने अपने कार्यों का कभी बखान नहीं किया और न ही महत्वाकांक्षाएं ही प्रकट की। लेकिन आज के दौर की भाजपा के कुशल नेतृत्व की तीक्ष्ण नज़रों से वे बच न सकें और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की तिकड़ी ने मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य और राजनीति के केंद्र का मुखिया चुनते वक्त उन्होंने डॉ. मोहन यादव की खूबियों को याद रख उन्हें प्रदेश का सिरमौर बना दिया। पार्टी नेतृत्व का यह निर्णय भविष्य की राजनीति के लिए कितना सार्थक और निर्णायक सिद्ध होगा यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि भाजपा अपने आदर्श पंडित दीनदयाल उपाध्याय के समाज के अंतिम व्यक्ति तक सत्ता के अधिकार और भागीदारी के संकल्प को पूरा करने में सफल रही है। डॉ. मोहन यादव को मिला दायित्व और गरिमामयी पद का सम्मान पूरे मालवांचल का सम्मान है, इसलिए चौंकिए मत, खुशियां मनाईए, कोई अपना, अपने अंचल का आज सिरमौर है। फिलहाल, डॉ. मोहन यादव को बधाई एवं शुभकामनाएं।
*और हां मोहन भाई, आज बूरा मत मानिएगा, आप वहीं हैं और हम भी। बस अब आप संवैधानिक पद पर है, इसलिए अब मोहन भाई नहीं डॉ. मोहन यादव लिखने की जिम्मेदारी का निर्वहन करने दीजिए। हमें आप पर गर्व है।*