मप्र राज्य दबा कर्ज के बोझ से: कुल कर्ज अब हमारे राज्य के बजट से भी ज्यादा:

आपको जानकर हैरानी होगी कि आज राज्य सरकार द्वारा लिए गए 2000 करोड़ रुपये के कर्ज के साथ ही हमारे राज्य पर कर्ज बढ़कर 2.53 लाख करोड़ रुपये का हो गया है जो कि हमारे सालाना बजट 2.41 लाख करोड़ से भी अधिक हो गया है.

इसका मतलब अब ब्याज का खर्च कितना बढ़ जाएगा, ये सोच से परे है और कर्ज चुकेगा कैसे- ये भगवान ही जाने, लेकिन अभी तो सरकारी खर्चे कर्ज से चलाए जाए.

वर्ष 2020-21 में राज्य सरकार ने अपने 2.41 लाख करोड़ रुपये के खर्च को पूरा करने के लिए लगभग 52 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया था यानि कि आमदनी 1 रुपये और खर्च 1.50 रुपये.

अर्थशास्त्र में सरकार द्वारा कर्ज लेने की क्षमता को गलत नहीं माना गया है बशर्ते कर्ज का पैसा जनउपयोगी, जनहितैषी, व्यापारिक ढांचे एवं आधारभूत संरचना की मजबूती एवं प्रशासनिक व्यवस्था की कायाकल्प के लिए उपयोग किया जाए- जिससे भविष्य में राज्य इतना समृद्ध बनें कि सारे कर्ज ब्याज सहित आसानी से चुका सकें.

राज्य के आर्थिक हालात और जन सामान्य में इतना कर्ज लेने के बावजूद भी व्याप्त परेशानियां देखकर ऐसा नहीं लगता और अर्थशास्त्र के ऊपर के सिद्धांत का पालन राज्य सरकार कर पाऐगी- कहना संदेह के दायरे में आता है.

चाहे व्यापार हो, रोजगार हो, शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो , मंहगाई हो या फिर प्रशासनिक व्यवस्था हो- राज्य का हर व्यक्ति सरकार द्वारा इतना कर्ज लेने और खर्च के बावजूद असहज और परेशान है.

ऊपर से इतना बड़ा कर्ज राज्य को डुबोने के लिए काफी है और भविष्य में राज्य की संपत्ति बेचकर कर्ज चुकाने के अलावा सरकार के पास कुछ नहीं होगा, तब जन सामान्य के क्या हालात होंगे ये सोच से परे है.

इसलिए अब राज्य सरकार के लिए यह एक बहुत जरूरी कदम होगा कि राज्य की आर्थिक स्थिति को लेकर जनता से संवाद करें और उन्हें अपने साथ लें. राज्य की अर्थव्यवस्था पर श्वेत पत्र जारी करें और जनता को विश्वास दिलाए कि कर्ज की हर एक पाई का उपयोग राज्य और जनहित में किया गया है.

प्रशासनिक व्यवस्था और खर्च में पारदर्शिता लानी होगी. खर्चों की प्राथमिकता तय करनी होगी और संसाधनों के उपयोग में कुशलता लानी होगी. आय के क्या संसाधन जुटाए जा रहे हैं- यह जनता के समक्ष रखना होगा ताकि अर्थव्यवस्था की ऐसी कठिन घड़ी में जनता राज्य सरकार का साथ दे सकें.

सही बात तो यह है कि हमारा राज्य कर्ज की सीमा को पार कर चुका है और अब और कर्ज इस राज्य को संकट में ले जावेगा और इसलिए सरकार को जनता के समक्ष पारदर्शिता से अपने हालात का विवरण देना होगा नहीं तो जनता इस कर्ज का दंश भुगतेगी और राज्य सरकारें कर्ज लेकर मौज करेंगी.

लेखक एवं आर्थिक सलाहकार: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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