भारतीय नवसंवत्सर : कोरोना के कहर से लड़ने में सहायक हो सकती है भारतीय जीवनचर्या

 

भारतीय नवसंवत्सर : कोरोना के कहर से लड़ने में सहायक हो सकती है भारतीय जीवनचर्या

ऐसा माना जाता है कि सम्पूर्ण सृष्टि की वर्षगांठ है नवसंवत्सर यानि भारतीय नव वर्ष, विक्रमी संवत का संबंध सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत और ब्रह्मांड के ग्रहों एवं नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना को दर्शाती है। ब्रह्मांड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है। देश के भिन्न – भिन्न प्रान्तों में इसे अलग- अलग नामों जैसे चैत्रशुक्ल वर्ष प्रतिपदा, आंध्रप्रदेश में उगादि, महाराष्ट्र में गुड़ीपड़वा, सिंधु प्रान्त में चैतीचांद, जम्मू कश्मीर में नवरेह आदि से जाना जाता है।

भारतीय व्रत एवं त्यौहार मनाने के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण अवश्य हैं । जिन्हें प्राचीन समय में ऋषियों द्वारा शोध करके प्रकृति के अनुरूप ऋतु परिवर्तन एवं काल गणना के आधार पर बनाया गया है ।आवश्यकता है आज हम उन्हें उनके वास्तविक रूप में उनके महत्व के साथ कितना मनाते है ।

आज से चैत्रशुक्ल वर्ष प्रतिपदा संवत्सर 2077 का पहला दिवस है। प्रकृति परिवर्तन की बेला को ही नव वर्ष कहा है । साथ ही नवरात्र के काल परिवर्तन एवं ऋतु परिवर्तन के होते है नौ दिन, प्रकृति में इन दिनों भारी वायुमण्डलीय परिवर्तन क्रमिक रूप से घटित होते हैं, उनसे हमारा मन, मष्तिष्क व शरीर स्वस्थ रहे इसके लिए सात्विक आहार-विहार एवं सात्विक दिनचर्या का पालन किया जाता है ।शरीर की बाहरी शुद्धि के लिए पवित्र वातावरण में पवित्र वस्तुयों से संपर्क रखने के साथ आंतरिक शुद्धि के लिए शक्ति की आराधना के साथ अपने ईष्ट की उपासना, यज्ञ, साधना आदि किए जाते हैं।

नए वर्ष के पहले दिन से अपनाई जाने वाली प्राचीन दिनचर्या
वर्तमान समय में देश व दुनिया ऐसी आपातकाल की स्थिति में है जिसने अत्याधुनिक मानव के विज्ञान को भी पराजित कर दिया है ऐसी विपरीत परिस्थिति में सारी दुनिया का मनुष्य एक कोरोना नामक वायरस के प्रकोप से पीड़ित है, दुर्भाग्यवश भारत भी इसकी चपेट में आ चुका है। आज से 21 दिन तक पूरे भारत को लॉकडाउन कर दिया गया है । सभी को अपने घर पर रहने का आदेश है इसके अलावा रोकथाम के और कोई उपाय भी नहीं है। विचारणीय यह है कि हैम भारतीय भी दुनिया की होड़ में अपने हजारो वर्षो के विज्ञान और एक आदर्श जीवन पद्धति का तिरस्कार कर चुके हैं लेकिन कोरोना जैसी महामारी आज हमें स्मरण कराती है कि ‘नमस्ते’ द्वारा अभिवादन के क्या लाभ है ..? उसी प्रकार भोजन में शाकाहार ही क्यों उत्तम माना गया है?
चैत्र मास में नीम खाने से क्या फायदे हैं.?
हमारे ऋषियों ने चैत्र मास के 30 दिनों तक कड़वे स्वाद वाली नीम के कम से कम 5 पत्ते एवं अधिक से अधिक 108 पत्तियां खाने को कहा है कि जो भी चैत्र मास में नीम की पत्तियों का सेवन करेगा पूरे साल भर सैकड़ों बीमारियों से दूर रहेगा ।
बैक्टीरिया से लड़ता नीम
दुनिया बैक्टीरिया से भरी पड़ी है। हमारा शरीर बैक्टीरिया से भरा हुआ है। एक सामान्य आकार के शरीर में लगभग दस खरब कोशिकाएँ होती हैं और सौ खरब से भी ज्यादा बैक्टीरिया होते हैं। आप एक हैं, तो वे दस हैं। आपके भीतर इतने सारे जीव हैं कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते। इनमें से ज्यादातर बैक्टीरिया हमारे लिए फायदेमंद होते हैं। इनके बिना हम जिंदा नहीं रह सकते, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जो हमारे लिए मुसीबत खड़ी कर सकते हैं। अगर आप नीम का सेवन करते हैं, तो वह हानिकारक बैक्टीरिया को आपकी आंतों में ही नष्ट कर देता है।
नीम के बारे में उपलब्ध प्राचीन ग्रंथों में इसके फल, बीज, तेल, पत्तों, जड़ और छिलके में बीमारियों से लड़ने के कई फायदेमंद गुण बताए गए हैं। प्राकृतिक चिकित्सा की भारतीय प्रणाली ‘आयुर्वेद’ के आधार-स्तंभ माने जाने वाले दो प्राचीन ग्रंथों ‘चरक संहिता’ और ‘सुश्रुत संहिता’ में इसके लाभकारी गुणों की चर्चा की गई है। इस पेड़ का हर भाग इतना लाभकारी है कि संस्कृत में इसको एक यथायोग्य नाम दिया गया है – “सर्व-रोग-निवारिणी” यानी ‘सभी बीमारियों की दवा’
नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर रोगियों को नहाया जाता था ।

बीमार होती धरती को आरोग्य देता है अग्निहोत्र अर्थात यज्ञ
सनातन काल से देश में यज्ञ की परंपरा रही है। कई सालों तक लोग इसे मात्र एक कर्मकांड मानते रहे हैं, लेकिन आधुनिक शोध और अध्ययन से पता चला है कि अग्निहोत्र यज्ञ मानव स्वास्थ्य के साथ ही वायु, धरती और जल में होने वाले विकारों को दूर कर सकारात्मक बदलाव लाता है।
हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है, जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है तथा वातावरण को शुद्ध करती है।हवन का महत्व देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की ।बक्या वास्तविकता में हवन से वातावरण शुद्ध होता है और जीवाणु नाश होता है । उन्होंने ग्रंथों में वर्णित हवन-सामग्री जुटाई और जलने पर पाया कि यह विषाणु नाशक है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी 1 किलो जलने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन-सामग्री डाल कर जलायी गयी, एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर 94 प्रतिशत कम हो गया। यही नहीं, उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजूद जीवाणुओं का परीक्षण किया और पाया कि कक्ष के दरवाजे खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के 24 घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से 96 प्रतिशत कम था।
आने वाले 21 दिनों तक हम सभी अपने घर के अंदर हैं यदि परिवार के साथ सूर्योदय व सूर्यास्त के पहले हम हवन करें तो कोरोना वायरस से तो बचाव होगा ही साथ ही पर्यावरण प्रदूषण भी काफी हद तक कम होगा।
योग एवं प्राणायाम से बढ़ायें रोग प्रतिरोधक क्षमता व नाड़ी शोधन
घर पर रहते हुए अपनी दिनचर्या में प्राणायाम अवश्य करें इससे कोरोना जैसे संक्रमण से लड़ने कब लिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का विकास होगा एवं शरीर की समस्त नाड़ियों की शुद्धि भी होगी ।
यदि हम भारतीय परमपराओं के अनुसार आहार-विहार कर दैनिक दिनचर्या को स्वदेशी के साथ अपनाते तो कोई भी वायरस हमें छू नही सकता बल्कि हम अन्य देशों के लिए भी एक आदर्श जीवन पद्धति देने में सक्षम होते ।अभी भी समय है हम पुनः अपनी परम्पराओ और संस्कृति की ओर लौट आएं प्रकृति भी हमें इस महामारी के साथ यही संदेश दे रही है।

✍?सत्यकीर्ति राने

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