अरुण दीक्षित:
विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी प्रत्याशियों की दूसरी सूची सार्वजनिक होने के बाद प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में हलचल मची हुई है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने प्रदेश के वरिष्ठतम और अपने समकालीन बीजेपी नेताओं को चुनाव मैदान में उतार कर सभी राजनीतिक पंडितों का गणित फेल कर दिया है। एक जमाने में कांग्रेस के स्थाई कोषाध्यक्ष और एक टर्म के अध्यक्ष सीताराम केसरी के लिए कहा जाता था – न खाता न बही।जो केसरी कहें वह सही!यही बात अब मोदी और शाह की जोड़ी पर चस्पा हो गई है।वैसे बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता इससे एक कदम आगे बढ़ कर कहने लगे हैं – न खाता न बही और न पेन न स्याही!अब होगा वही जो नहीं “कहेंगे” भाई!
इस बात के अर्थ बहुत हैं।इन्हें खोजने वाले खोज भी रहे हैं।इस बीच पार्टी के बड़े नेताओं को विधानसभा चुनाव में उतारे जाने पर बीजेपी के एक केंद्रीय नेता ने बहुत जोरदार बात कही।नेता जी सालों से बीजेपी का दामन थामे हुए हैं।जवानी पार्टी के नाम निकल गई।अब बुढ़ापे का सहारा खुद ढूंढ रहे हैं।पार्टी में आज जो शीर्ष पर हैं,उनकी नस नस से भलीभांति वाकिफ हैं।
सामान्य बातचीत में उन्होंने एक बड़ा रहस्योद्घाटन किया!दुनियां जहान की बातों के बीच में उन्होंने अचानक सवाल किया – पंडित जी आपको पता है कि गुजरातियों ने एमपी के नेताओं के साथ अपने गांव वाला खेल खेला है। मैंने कहा – नेता जी कौन सा खेल? मेरे सवाल पर वे जोर से हंसे और बोले – अरे महाराज वही कोल्हू के ताजे गुड़ वाला खेल!
आपको याद होगा कि जब गुड़ बनने का सीजन होता है तो गांव के कोल्हू पर बच्चों की भीड़ लग जाती है।बच्चे ताजे गुड़ के लालच में जुटते हैं।शरारतें भी करते हैं।ऐसे में कोल्हू पर बैठा बूढ़ा हाथ में गुड़ देने के बजाय उनकी कोहनी पर चिपका देता था। साथ ही कहता था जा चाट ले।खत्म हो जाए तो और ले जाना!बच्चा कोहनी पर लगे गुड़ को चाटने की जुगत में लग जाता!न वो चाट पाता और न फिर मांग पाता!
इन गुजराती “भाइयों” ने भी वही काम किया है। पार्टी के बड़े बड़े नेताओं की कोहनी पर गुड़ चिपका दिया है।अगर वे गुड़ चाट लेंगे तो उन्हें आगे माल काटने का मौका मिल सकता है।और नही चाट पाए तो फिर जहां पहुंच गए हैं, वहीं रहेंगे!
नेता जी की इस बात पर अपनी भी ट्यूब लाइट जली।मैं कुछ बोल पाता उससे पहले वे खुद बोल पड़े!कहने लगे – बहुत सोच समझ कर यह खेल खेला गया है।तीन केंद्रीय मंत्री, चार सांसद और एक राष्ट्रीय महामंत्री, सब हैं तो बड़े नेता।एक महिला सांसद को अगर छोड़ भी दें तो बाकी सातों नाम तो बड़े हैं।सब मुख्यमंत्री शिवराज के साथ वाले और समकालीन हैं।
अब अगर ये सब जीत जाते हैं तो इन आठ में से 6 सीटें बीजेपी के खाते में आ जायेंगी।दो तो उसके पास पहले से ही हैं।मतलब पार्टी को 6 सीटों का फायदा।लेकिन अगर आप इन नेताओं की नजर से देखें तो उनके लिए तो यह बड़ी चुनौती है।
नरेंद्र तोमर लंबे समय से केंद्रीय राजनीति में हैं।वे अभी मोदी सरकार में कृषि मंत्रालय संभाल रहे हैं।प्रदेश सरकार में भी वे मंत्री रहे हैं।उन्हें मोदी का विश्वासपात्र माना जाता है।शिवराज के तो दोस्त वे हैं ही।वे अपने बेटे को राजनीति में उतारना
चाह रहे थे।लेकिन मोदी ने अचानक उन्हें ही अखाड़े में उतार दिया।
यह खुद नरेंद्र तोमर के लिए एक बड़ा झटका है।यह अलग बात है कि जिस दिमनी विधानसभा सीट से उन्हें प्रत्याशी बनाया गया है वह उनके लोकसभा क्षेत्र मुरैना में ही आती है। दिमनी के लोग बीजेपी और कांग्रेस दोनों के ही साथ रहे हैं।1990 से लेकर अब तक उन्होंने चार बार बीजेपी और चार बार कांग्रेस को जिताया है।अभी वहां कांग्रेस का विधायक है।जो सिंधिया की बगावत के बाद भी जीत गया था।ऐसे में तोमर को मुश्किल तो होगी।
ऐसा ही कैलाश विजयवर्गीय के साथ हुआ है।उन्हें इंदौर की एक नंबर सीट से उतारा गया है।अपनी विधानसभा सीट अपने बेटे को सौंप चुके कैलाश ने तो साफ कहा कि टिकट मिलने से वे खुश नही है।वे तो पार्टी का प्रचार करना चाहते थे।अब उन्हें जनता के हाथ जोड़ने पड़ेंगे।
कैलाश को उतारने का एक मतलब यह भी है कि उनके बेटे को अब विधानसभा का टिकट नहीं मिलेगा।क्योंकि खुद नरेंद्र मोदी पार्टी में परिवारवाद खत्म करने की बात अक्सर कहते रहते हैं।
अब सीधे शब्दों में कहें तो वानप्रस्थ की ओर बढ़ रहे नेताओं को शादी का मौर पहना दिया गया है।
प्रह्लाद पटेल,फग्गन सिंह कुलस्ते,गणेश सिंह,राकेश सिंह और रीति पाठक भी ऐसी ही स्थिति में हैं।अचानक उन्हें विधानसभा में झोंका गया है। हार जीत की बात न भी करें तो भी यह असहज करने वाली स्थिति तो है ही।
एक तथ्य और है!इस प्रयोग के जरिए मोदी एमपी के बीजेपी नेताओं की गहराई भी नापना चाहते हैं।दिग्गज नेताओं के चुनावी नतीजे ही उनकी हैसियत तय करेंगे। अगर वे जीत गए तो उनकी जमीनी पकड़ साबित हो जायेगी और वे मुख्यधारा में बने रहेंगे। और अगर हार गए तो फिर कहां जाएंगे यह वक्त ही बताएगा।
इससे मोदी को एक फायदा और होगा!गुजरात के बाद मध्यप्रदेश में भी वे मनमाना प्रयोग करने की स्थिति में होंगे!जो जीतेंगे उन्हें चुनौती मानकर हाशिए पर पहुंचाने की रणनीति बनेगी।और अगर हार गए तो फिर मध्यप्रदेश में मनमानी करने से उन्हें कौन रोक पायेगा। फिर एमपी संघ और बीजेपी के बाद मोदी की भी प्रयोगशाला बन जायेगा।
फिलहाल तो उन्होंने इन आठ नेताओं की कोहनी पर गुड़ चिपकाया है। हो सकता है कि अगली सूची में कुछ और दिग्गजों की कोहनी पर गुड़ टपकता दिखे!अगर ये नेता अपनी ही कोहनी का गुड़ चाटने की कोशिश करते रहे तो गुजरात के बाद एमपी भी मोदी की प्रयोगशाला होगा।और यदि इन नेताओं ने अपनी कोहनियां एक दूसरे के मुंह के सामने कर दीं तो इनके मुंह तो मीठे होंगे ही प्रदेश भी प्रयोगशाला बनने से बच जायेगा।देखना यह है कि ये नेता आपसी सामंजस्य बना पाते हैं या नहीं।
अगर एक हो गए तो मध्यप्रदेश का ऐतिहासिक दर्जा तो कायम रहेगा ही।साथ ही उनकी अगली पीढ़ियों का भी भला हो जायेगा। नही हुए तो तस्वीर ही बदल जायेगी।फिर कोई खट्टर या धामी ही राज करेगा।नेता जी की बात में दम तो नजर आ रहा है!
अब जो होगा वह वक्त बताएगा।पर इतना तो तय है कि अपना एमपी है तो गज्जब!है कि नहीं?