बीएमएचआरसी वेंटीलेटर पर..? केंद्र सरकार को फिक्र नहीं


इस बदत्तर हालात के लिए पूरी तरह केंद्र सरकार खास तौर से ICMR के असंवेदनशील अफसर जिम्मेदार है….


अलीम बजमी, 18 मई 2022,
भोपाल। बीएमएचआरसी (भोपाल मेमोरियल हॉस्पीटल एंड रिसर्च सेंटर) यानी 85 एकड़ भूमि में बना 350 बिस्तरों वाला सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल है। दावा है कि यहां आधुनिक उपकरण और अत्याधुनिक चिकित्सीय सुविधाएं हैं, जो पूरे मप्र में बेजोड़ हैं। लेकिन हकीकत उलट है। यहां भोपाल गैस कांड के प्रभावितों को कैंसर, किडनी, लीवर, लंग्स, हॉर्ट, डायबीटिज आदि का इलाज नहीं मिल रहा है। उन्हें दूसरे अस्पतालों में भटकना पड़ रहा है। अस्पताल प्रबंधन एवं केंद्र सरकार की अरुचि से ऐसा प्रतीत होता है कि बीएमएचआरसी अब वेंटीलेटर पर है। अस्पताल में चिकित्सीय व्यवस्थाओं की बदहाली का फायदा निजी अस्पतालों को हो रहा है। वे इसके बहाने जमकर चांदी कूट रहे हैं। इस संवेदनशील मुद्दे पर जन प्रतिनिधियों की चुप्पी तकलीफ देह है। उनकी ओर से अब तक कोई ऐसा प्रयास नहीं किया गया, जिससे मालूम हो कि वे व्यवस्थाएं दुरुस्त कराने ठोस मशक्कत कर रहे हैं।
यहां के हालात को देखकर लगता है कि केंद्र सरकार को इस अस्पताल की बड़ी सर्जरी करनी चाहिए। इसकी पहल जन प्रतिनिधियों की ओर से की जाए तो ज्यादा सार्थक होगा। कहने को तो यहां गैस पीड़ितों के लिए माकूल व्यवस्थाएं है लेकिन सच्चाई तो ये है कि यहां न तो सुपर स्पेशलिस्ट, न ही स्पेशलिस्ट डॉक्टर है। जरुरी संसाधन की कमी भी अखरती है। ऐसे में मरीजों को कैसे इलाज मिले, ये सवाल मौजूं है…? हांलाकि ये मामला हाईकोर्ट के संज्ञान में आने के बाद उसने केंद्र सरकार समेत बीएमएचआरसी को जरुरी कदम उठाने को कहा। डॉक्टरों के खाली पदों पर नियुक्तियां भी करने के निर्देश दिए। इस सबके बाद भी यहां की व्यवस्थाओं को देखकर ये आभास नहीं होता कि प्रबंधन के कान पर जूं भी रेंगी हो।
गौरतलब है कि अस्पताल के संचालन का जिम्मा केंद्र सरकार के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग यानी डीएचआर के पास है। इसके अधीन गैस पीड़ित क्षेत्रों में आठ स्वास्थ्य केंद्र भी है। लेकिन सभी जगह विशेषज्ञ चिकित्सक, जीवन रक्षक दवाईयों का अभाव, जांच की सुविधाओं की कमी आदि अखरती है। दावा तो मुफ्त इलाज का है लेकिन क्वालिटी स्तर का ट्रीटमेंट मिलेगा, इसमें संदेह है। दरअसल भव्य भवन से इलाज नहीं मिलता। इसके लिए डॉक्टर, जरुरी संसाधन, जीवन रक्षक दवाएं, उपकरण आदि होना भी चाहिए। ताजी स्थिति ये है कि सभी स्वास्थ्य केंद्रों समेत बीएमएचआरसी में कई गंभीर बीमारियों से जुड़े विभागों में डॉक्टर ही नहीं है। सहायक स्टॉफ की कमी का असर भी चिकित्सीय सेवाओं पर पड़ता है। इस ओर भी प्रबंधन का ध्यान नहीं है। अस्पताल की बिगड़ी व्यवस्थाओं की वजह में एक कारण ये भी है कि गैस पीड़ितों के ट्रीटमेंट का कोई प्रोटोकॉल नहीं बनाया गया। इसको लेकर गैस पीड़ित संगठनों ने कई बार आवाज उठाई लेकिन ध्यान नहीं दिया गया। नतीजे में गैस कांड के 37 साल बाद भी गैस पीड़ितों की स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान नहीं हुआ।
यद्यपि सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश पर त्रिस्तरीय अति विशेषज्ञता सेवा प्रदान करने और समग्र रूप से गैस पीड़ितों को अपनी सेवाएं देने के उद्देश्य से बीएमएचआरसी खोला गया था। अस्पताल का प्रबंधन जब तक ट्रस्ट के हाथों में रहा, गैस पीड़ितों को इलाज में कोई उल्लेखनीय परेशानी नहीं हुई लेकिन सुप्रीम कोर्ट के नियंत्रण से इसे मुक्त करने के बाद से अस्पताल फुटबाल बन गया। स्थायी रूप से तय नहीं हो सका। ये किसके नियंत्रण में रहेगा। वहीं अस्पताल को शोध केंद्र के रूप में विकसित करने की भी परिकल्पना की गई थी। लेकिन रिसर्च के मामले में भी ये पिछड़ गया।
कहने को तो बीएमएचआरसी में एनेस्थेसियोलॉजी एवं गहन चिकित्सा, कार्डियोलॉजी, कार्डियोथोरासिक सर्जरी, मेडिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, नेफ्रोलॉजी, न्यूरोलॉजी, न्यूरोसर्जरी, नेत्र विज्ञान, पैथोलॉजी, साइकियाट्री, पल्मोनरी मेडिसिन, रेडियोलॉजी, सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन और यूरोलॉजी के विभाग हैं। लेकिन इन विभागों का सच ओपीडी और बेड एडमिशन से पता लगता है कि ये कितने क्रियाशील है। साथ ही जांच के दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक पर्चे भी सच बताने को काफी है। इस अस्पताल ने कभी ऐसी रिसर्च नहीं की कि इलाज लेते हुए कितने मरीजों की मृत्यु हो गई।
सबसे तकलीफ यहां के डॉक्टर, अधिकारी और स्टॉफ के आचरण को लेकर भी है। उनका व्यवहार मानवीय नहीं है। न ही वे संवेदनशील है। ऐसा लगता है कि यहां के अदना से लेकर आला तक का नैतिकता, सामाजिक मूल्यों एवं सामाजिक सरोकारों से कोई नाता नहीं है। केंद्र सरकार से मिल रही मोटी तनख्वाह ही उनका परम ध्येय बन गया है। ये अत्यंत दुखद है। पीड़ादायक है।वैसे हाईकोर्ट ने हाल ही में मॉनिटरिंग कमेटी की सिफारिशों और पूर्व में दिए कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं करने पर अफसरों को फटकार लगाई है। साथ ही चार हफ्ते में जवाब भी मांगा है। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा है। हाईकोर्ट के जवाब तलब करने से एक उम्मीद की रोशनी दिखाई दी। उम्मीद में जीवन की आस, हमारी इच्छा और आकांक्षा सब शामिल है। शायद ये जीवन को सहारा देने और आगे बढ़ने वाली अवस्था का नाम है।
और अंत में निदा फाजली के लफ्जों में …….
हर एक घर में दिया भी जले, अनाज भी हो
अगर ना हो कहीं ऐसा तो एहतिजाज भी हो
हुकूमतों को बदलना तो कुछ मुहाल नहीं
हुकूमतें जो बदलता है वो समाज भी हो
रहेगी कब तलक वादों में क़ैद खुश-हाली
हर एक बार ही कल क्यूँ, कभी तो आज भी हो
ना करते शोर शराबा तो और क्या करते
तुम्हारे शहर में कुछ और काम काज भी हो


अलीम बजमी, न्यूज एडिटर
दैनिक भास्कर

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