बाबू गेनू सैद: स्वदेशी आंदोलन के अनसुने नायक

बाबू गेनू सैद: स्वदेशी आंदोलन के अनसुने नायक

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय और सरदार पटेल जैसे महानायकों का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। लेकिन इस संग्राम के कई गुमनाम पैदल सैनिक भी थे, जिन्होंने बिना किसी प्रसिद्धि की चाहत के, अपने जीवन का बलिदान दिया। इन्हीं में से एक थे मुंबई के एक सूती मिल मजदूर, बाबू गेनू सैद। आज उनकी 91वीं पुण्यतिथि है।

बाबू गेनू का जन्म 1 जनवरी 1908 को पुणे के महांनगुले गांव के एक गरीब परिवार में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा केवल चौथी कक्षा तक प्राप्त करने के बाद, उनका बचपन आर्थिक तंगी और संघर्ष में बीता। पिता की असमय मृत्यु के बाद, परिवार का बोझ उनकी मां पर आ गया। बालक बाबू ने मिल मजदूर बनकर अपनी मां का सहारा बनने की ठानी।

महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित बाबू गेनू ने विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार और स्वदेशी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। 12 दिसंबर 1930 को, उन्होंने मुंबई की सड़कों पर विदेशी कपड़ों के ट्रक को रोकने का प्रयास किया। ब्रिटिश पुलिस के आदेश पर ट्रक चालक ने ट्रक को उनके ऊपर से नहीं चलाने की हिम्मत दिखाई, लेकिन एक क्रूर ब्रिटिश अधिकारी ने ट्रक की कमान संभालते हुए बाबू गेनू को कुचलकर उनकी शहादत ले ली।

उनकी इस बलिदानी घटना ने स्वदेशी आंदोलन को नई ऊर्जा दी। आज भी मुंबई की “गेनू स्ट्रीट” और महांनगुले गांव में उनकी मूर्ति, उनके बलिदान की गाथा सुनाती है। कस्तूरबा गांधी ने उनके घर जाकर उनकी मां को सांत्वना दी और उनके वीर पुत्र की प्रशंसा की।

बाबू गेनू सैद, एक साधारण मजदूर होते हुए भी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के असाधारण नायक बन गए। उनका बलिदान हमें सिखाता है कि सच्चे नायक वही हैं, जो अपनी मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं।

#स्वदेशी #बाबूगेनूअमररहें

Shares