प्राइवेट अस्पताल कोरोना संक्रमितों को कुत्ते की मौत मार रहे…

 

और सरकार मूत में मछी मारने में व्यस्त

महेश दीक्षित:

कुत्ते की मौत मरना, एक मुहावरा है…जिसका मतलब है कि जब कोई असहाय और निर्बल हो जाए, और उसे निष्ठुरता और क्रूरता के साथ बेरहमी से मार दिया जाए। मध्यप्रदेश के कोविड अस्पतालों में रोजाना जिस तरह से सैकड़ों कोरोना संक्रमित लोग बेमौत मर रहे हैं या डाक्टरों की क्रूरता और अस्पतालों की लापरवाही से मार दिए जा रहे हैं। श्मशानों और कब्रस्तानों में जिस तरह से लोगों की जलती चिताओं और दफन होती लाशों के डरावने मंजर दिखाई दे रहे हैं, उन्हें देखकर लगता है कि, जैसे निरापराध लोग सिस्टम की नाकामी, लापरवाही, अकर्मण्यता और नाइंतजामी की वजह से जबरन बलि चढ़ाए और कुत्ते की मौत मारे जा रहे हैं। सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश में कोरोना संक्रमण से अब तक 4,491 लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि प्रदेश के श्मशान घाटों और कब्रस्तानों से ऊपर जाने वालों के जो आंकड़े मिल रहे हैं, वो सरकारी मौत के आंकड़ों से कई गुना ज्यादा हैं।

कोरोना महामारी के विकट संकटकाल में लोगों की यह दुर्दशा देखकर हमने सोचा भी नहीं था कि, जिन जनप्रतिनिधि, विधायक, सांसद, मंत्री और मुख्यमंत्री और शासकीय सेवकों को जिन्हें कि, सिर्फ लोगों की सेवा और तिमारदारी के लिए हमने विधानसभा, संसद, सरकार और दफ्तरों में बैठाया था, और जिस मीडिया (पत्रकार/अखबार/टीवी) को हमने चौबीसों घंटे इनको खबरदार करने के लिए तैनात किया था, वो इस संकटकाल में नपुंसक और शक्तिहीन साबित होकर रह जाएंगे। कोरोना संक्रमित लोगों को भगवान भरोसे छोड़ कोविड अस्पतालों के संचालकों को नौंचने के लिए सौंप दिया जाएगा।

कोरोना महामारी के इस विकट संकटकाल में मध्यप्रदेश में सरकार और प्रशासन नाम की कोई चीज कहीं दिखाई नहीं दे रही है। हां, कोरोना के संक्रमण रोकने के लिए जिम्मेदार नेता, मंत्री और अफसर हिलते-डुलते और कोरोना समीक्षा बैठकों के नाम पर लाकडाउन-लाकडाउन खेलते और मूत में मच्छी मारते जरूर दिखाई दे रहे हैं।

कहने का मतलब कोरोना के संकटकाल में अब सारा सिस्टम सरकार और प्रशासन के हाथों में न रहकर प्राइवेट अस्पतालों के संचालक के हाथों में शिफ्ट हो गया है। किसे भर्ती करना है, किसे नहीं करना है। किस मरीज को बेड देना है, नहीं देना है। किससे, कितनी फीस वसूलना है। किसको जिंदा रखना और किसे मार देना है। अब यह इन प्राइवेट अस्पताल संचालकों की कृपा पर निर्भर हो गया है। कोरोना के संक्रमण से किसी के मां-बाप, पति-पत्नी, बेटा-बेटी और रिश्तेदार बुरी तरह से तड़प रहे हैं। रो रहे हैं। गिड़गिड़ा रहे हैं। मर रहे हैं। इससे इन प्राइवेट अस्पताल संचालकों को कोई फर्क नहीं पड़ता। ये भगवान तो पहले से ही कहे जाते थे। सरकार और प्रशासन के नपुंसक साबित हो जाने से अब सरकार भी ये प्राइवेट अस्पतालों के संचालक हो गये हैं। सरकार और प्रशासन का भय खत्म हो जाने से ये क्रूर अस्पताल संचालक संगठित डकैत की भूमिका में दिखाई दे रहे है़ं। ऐसे डकैत जिन्हें कृत्य देख-देख सचमुच के डकैत भी शरमा रहे हैं। ऐसा लगता है कि, जैसे ये कोविड अस्पताल जी-जागते इंसान-इंसानियत के कत्लखानों में तब्दील हो चुके हैं। जहां कोई कोरोना संक्रमित के नाम पर भर्ती भर हो जाए। दो-चार लाख रुपए एडवांस फीस जमा कराने के बाद लिखवा तो मरीज और उसके परिजन से पहले ही लेते हैं कि, इलाज के दौरान यदि तुम मर जाते हो, तो यह अस्पताल की जिम्मेदारी नहीं होगी। पहले बेड देने और फिर कोरोना मरीज के इलाज के नाम पर मरते दम तक चलता है, लोगों को आक्सीजन, इंजेक्शन और दवा के नाम पर लूटने का धंधा। पिछले एक महीने में प्रदेश के कोविड अस्पताल संचालकों के कमीनेपने की घिनौनी कारतूतें सामने आने के बाद भयभीत और प्रताड़ित होकर लोग यह कहने लगे हैं कि, इन अस्पतालों में कोरोना के इलाज के लिए जाने का मतलब है, कपड़े में लिपटकर सीधे श्मशान पहुंचना। जिसके बाद इलाज के दौरान अस्पताल में अपने कोरोना पीड़ित परिजन को देख तो सकते नहीं हैं, मर जाने के बाद भी परिजन का परिवार मुंह नहीं देख सकता।

यह सही है कि, कोरोना का संक्रमण प्रदेश में महामारी का रूप ले चुका है। लेकिन सवाल है कि, आखिर और कब तक प्राइवेट अस्पताल संचालकों का कोरोना संक्रमितों के इलाज की आड़ में लोगों से लूट और लोगों की मौत का ये गोरखधंधा चलता रहेगा? और कब तक सरकार और उसके जिम्मेदार तमाशबीन बनकर कोरोना संक्रमितों की मौत के आंकड़ों की गिनती करते रहेंगे…?

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