दीपावली पर स्वदेशी सामग्री का संकल्प

 

 

डॉ. रामकिशोर उपाध्याय,

दीपावली अर्थात प्रकाश का पर्व, हर्ष-उल्लास और माँ लक्ष्मी की आराधना का पर्व। इस पर्व पर हम सभी माता लक्ष्मी से आराधना करते हैं कि वे हमारे घर-परिवार और देश पर कृपा बरसाएँ। हम लक्ष्मी माता से घर आने का आह्वान करते हैं किन्तु जाने-अनजाने हम उन्हें शत्रु देशों की ओर भेज देते हैं। विडंबना है कि दीपावली पर माता लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियाँ तक हम चीन से बनी हुई लेते हैं। चीनी लाईट, चीनी पटाखे, चीनी खिलौने और यहां तक कि घर में शुभ-लाभ व बंधनवार तक चीनी लगी होती है।

यद्यपि इसबार प्रसन्नता की बात है कि कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने पिछले चार-पाँच माह पूर्व से चीनी माल के बहिष्कार की घोषणा कर दी है। इसका परिणाम यह हुआ कि इसबार दीपावली से जुड़ी वस्तुओं का आयात लगभग चालीस हजार करोड़ घटने का अनुमान है। देश के लगभग सात करोड़ व्यापारी “भारतीय सामान-हमारा अभिमान” अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। यह पहली बार है कि बड़े-बड़े शहरों के बाजारों में चीनी सामान बहुत कम या देखने को नहीं मिल रहे हैं।

“इसबार स्वदेशी दिवाली“ का नारा जोर पकड़ता जा रहा है। पूरे देश के समक्ष सुनहरा अवसर है जब हम अपने त्योहारों से चीनी घुसपैठ सदैव के लिए समाप्त कर सकते हैं। यदि दीपक, झालर, मोमबत्तियाँ, रंग-बिरंगे बल्व, पूजन सामग्री, मूर्तियाँ और सजावट की वस्तुएँ सभी स्वदेशी हो तो चीन को झटका लगेगा। कोरोना महामारी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा अघात लगा है, हमारे उद्योग जगत में निराशा आई है। यदि सभी भारतवासी एकसाथ खड़े हो जाएँ तो इसी त्योहार से इस निराशा को दूर करने का उपक्रम आरंभ हो सकता है। रक्षाबंधन और गणेश उत्सव से भी अधिक चीनी वस्तुओं की बिक्री दीपावली पर होती है। यदि इसबार पूर्ण स्वदेशी दीपावली का संकल्प कर लिया जाए तो अगले एक वर्ष में सभी त्याहारों से चीनी वस्तुएं पूर्णतः विलोपित हो जाएँगी।

कितने आश्चर्य और अपमान की बात है कि टेक्नोलॉजी से लेकर मिट्टी के दीपक के लिए भी हम अपने शत्रु-देश पर निर्भर हैं। हमने विदेशी कर्ज लेकर चीनी वस्तुओं का आयात किया, अपनी अर्थव्यवस्था को दुर्बल कर चीन की अर्थव्यवस्था को शक्तिशाली बनाने की भूल की। होली, दिवाली, राखी सहित सभी त्योहारों पर हम चीन से किंकर्तव्यविमूढ़ होकर लुटते रहते हैं। कोरोना महामारी के आरंभिक चरण में देश ने ऐसे संकट को भी प्रत्यक्ष अनुभव किया था जबकि हमारे पास कोरोना से बचने के लिए मास्क जैसी छोटी वस्तु भी स्वदेशी नहीं थी। इसके लिए भी हम चीन पर निर्भर थे क्योंकि हमने अपने उद्योगों का गला घोंटकर सस्ती चीनी वस्तुओं के उपयोग का स्वभाव बना लिया था। सुखद आश्चर्य और गर्व की बात यह है अनलॉक होते-होते अनेक वस्तुओं को लेकर चीन पर निर्भरता बहुत कम हो गई। पिछले कुछ वर्षों में हमने अपने देश के पटाखा, दीपक, बल्ब, मोमबत्ती और त्योहारी साज-सज्जा एवं पूजन समग्री बनाने वालों को निराश किया है। इस समय व्यापारी और उपभोक्ता दोनों चीनी वस्तुओं के बहिष्कार के पक्ष में हैं अतः यही अवसर है जबकि हम भारतीय उद्योगों/निर्माताओं को प्रोत्साहित कर उन्हें स्वदेशी वस्तुओं के निर्माण के लिए प्रेरित करें और अवसर दें ताकि वे हमें सभी प्रकार की स्वदेशी वस्तुएँ उपलब्ध करा सकें।

इसबार की दीपावली इसलिए भी अति विशेष, अद्भुत और मनोहारी होने वाली है क्योंकि जिस अयोध्या ने त्रेता युग में भगवान श्रीराम के आगमन पर दीप प्रज्ज्वलित कर दीपावली का पवित्र सन्देश दिया, इसबार उसी अयोध्या में भव्य और दिव्य दीपावली मनाई जा रही है। सैकड़ों वर्ष बाद पहली बार सम्पूर्ण श्रीरामजन्म भूमि परिसर में दीप मालिकाएँ सजाई जाएँगी। लाखों दीपकों के प्रकाश से आलोकित निर्माणाधीन मंदिर परिसर और सरयू के पावन घाट भारतीय सांस्कृतिक वैभव की यशगाथा का गौरव गान करेंगे। त्रेता में अयोध्या में भगवान श्रीराम के आगमन के समय किस प्रकार अयोध्या सजाई गई थी, उसका वर्णन गोस्वामी जी ने मानस में इस प्रकार किया है “कंचन कलस बिचित्र संवारे, सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे। बन्दनवार पताका केतू, सबन्हि बनाए मंगल हेतू।।

अयोध्या पुनः सजने को तैयार है किन्तु हमें स्मरण रखना होगा कि इसबार हम अपने घर की अयोध्या में जो मंगल कलश स्थापित करें वह अपनी मिट्टी का हो और जो बन्दनवार पताका बांधें वह भी स्वदेशी हो। अपने ही देश के भाई-बहनों द्वारा बनाया निर्मित हो फिर चाहे दीपक हो, मोमबत्ती हो या रंग-बिरंगी झालर, उसमें स्वदेशी की सुगंध अवश्य हो।

(लेख स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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