दमोह उपचुनाव सीट हारने का बड़ा कारण है चुनाव प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह

 

*भाजपा में वर्षो पुराने दिए गए मलैया के योगदान को भूल गई सरकार*

*अपनी पार्टी से बेदखली के बाद कांग्रेस का दामन कभी भी थाम सकते है सिद्वार्थ

*विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन*:
मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी में इन दिनों खलबली मची हुई है। इसका एक प्रमुख कारण है दमोह उपचुनाव में करारी शिकस्त। मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक सभी इस बात पर चिंतन करने में जुटे है कि आखिर सत्ताधारी होने के बाद भी पार्टी वहां चुनाव कैसे हार गई। पार्टी नेताओं ने हार की ठीकरा चुनाव प्रभारी भूपेंद्र सिंह के ऊपर फोडने के बजाय पूर्व वित्तमंत्री जयंत मलैया के ऊपर फोड़ दिया है। इतना ही नहीं पार्टी कार्यालय की तरफ से जयंत मलैया को अपनी पार्टी के कैंडिडेट्स के खिलाफ षडयंत्र करने और उसके वोट काटने का आरोप लगाते हुए नोटिस जारी किया है। वहीं, मलैया के बेटे को पार्टी ने सभी प्रमुख पदो से बेदखल कर दिया। जाहिर है कि सिद्वार्थ मलैया बीजेपी की तरफ से चुनाव का टिकट चाहते थे, लेकिन मुख्यमंत्री ने उन्हें थोड़ा और इंतजार करने का कहकर कांग्रेस से बीजेपी में आए दल बदलू राहुल सिंह लोधी पर विश्वास जताते हुए उन्हें टिकट दिया। आलम यह रहा कि केंद्र से लेकर राज्य सरकार के तमाम मंत्री नेता चुनाव प्रचार में जुट गए लेकिन अपने कैंडिडेट को चुनाव नहीं जिता सके। भले पार्टी नेता इस बात को स्वीकार न करें लेकिन बीजेपी कैंडिडेट की हार का कारण चुनाव प्रभारी भूपेंद्र सिंह है। उन्हीं की लापरवाही के चलते पार्टी ने अपनी एक सीट गवां दी। सूत्रों की मानें तो भूपेंद्र सिंह खुद नहीं चाहते थे कि राहुल सिंह उस सीट से चुनाव जीते इसलिए उन्होंने ऐसी प्लानिंग की बीजेपी को सीट गवाना पड़ी। यदि बात करें जयंत मलैया की तो, यह सोचने वाली बात है कि आखिर बीजेपी अपने नेताओं की नाकामी का ठीकरा अपने वरिष्ठ नेता के ऊपर क्यों फोड़ रही है। पार्टी को यह समझना होगा कि अगर मुख्यमंत्री ने सिद्वार्थ को टिकट देने से मना कर दिया तो फिर मलैया भला क्यों मुख्यमंत्री के खिलाफ जाएंगे। जबिक अगर वे चाहते तो सिद्वार्थ को निर्दलीय भी खड़ा करते तो निश्चिततौर पर मलैया का बेटा वहां से चुनाव जीतता। क्योंकि वहां 30 प्रतिशत से भी अधिक जैन परिवार है जिन्हें मलैया का पूरा समर्थन है। इतना ही नहीं सिद्वार्थ के पास कांग्रेस पार्टी के दरवाजे खुले है और वो कभी भी वहां जाकर पार्टी ज्वॉइन कर सकते है। मलैया पर कार्रवाई के बाद बीजेपी दो खेमों में बंट गई है। कैबिनेट मंत्री गोपाल भार्गव और पाटन से विधायक अजय विश्नोई ने जयंत मलैया का समर्थन किया है। विश्नोई ने ट्वीट कर पूछा है कि चुनाव में हार की जवाबदारी क्या टिकट बांटने वाले और चुनाव प्रभारी भी लेंगे। उनका इशारा प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह की तरफ था। विश्वनोई ने बिल्कुल सही व्यक्ति पर निशाना साधा है, लेकिन पार्टी नेता और संगठन ने भूपेंद्र सिंह से अब तक इस संबंध में किसी प्रकार का सवाल जबाव नहीं किया है। वहीं, हार का एक बड़ा कारण केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल को भी बताया जा रहा है। क्योंकि वो भले दिखावे के लिए चुनाव रैलियों को संबोधित करने पहुंच रहे थे, लेकिन वो खुद नहीं चाहते थे कि राहुल सिंह लोधी उस सीट से चुनाव जीता। अंततः हुआ वही और राहुल सिंह लोधी चुनाव हार गए। कुल मिलाकर जिस विधानसभा सीट के लालच में प्रदेश सरकार ने कोरोना के इस संकटकाल में प्रदेश की जनता की चिंता करना छोड़कर चुनाव के पीछे भागे। उसके हाथ में महज हार ही लगी। इतना ही नहीं कोरोना की तमाम गाइडलाइन की धज्जियां उड़ाते हुए नेताओं ने सभाएं की, रैलियां की और आज स्थिति यह है कि दमोह कोरोना संक्रमण का सबसे बड़ा गढ़ बनता जा रहा है। जो पुलिसकर्मी वहां वीआईपी ड्यूटी में लगे उनकी वापसी के बाद मौत हो गई, कई लोग कोविड पॉजिटिव हो गए। आए दिन दमोह में 100 से ज्यादा लोग पॉजिटिव हो रहे है और 50 से अधिक संख्या में लोगों की मौते हो रही है कि इन सबका जिम्मेदार कौन है। इन सब सवालों के जबाव तो देना पड़ेगा प्रदेश सरकार को।

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