जीवन का पथ प्रदर्शक होता है शिक्षक

शिक्षक दिवस पर विशेष

रमेश सर्राफ धमोरा,

दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में शिक्षकों को विशेष सम्मान देने के लिये शिक्षक दिवस मनाया जाता है। भारत में भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को 1962 से शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने अपने छात्रों से जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा जताई थी।

देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही किताबें पढ़ने के शौकीन थे और स्वामी विवेकानंद से काफी प्रभावित थे। राधाकृष्णन का निधन चेन्नई में 17 अप्रैल 1975 को हुआ। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे। जिन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष अध्यापन पेशे को दिया। वे विद्यार्थियों के जीवन में शिक्षकों के योगदान और भूमिका के लिये प्रसिद्ध थे। इसलिये वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शिक्षकों के बारे में सोचा और हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का अनुरोध किया।

डॉ. राधाकृष्णन ने 1909 में चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्यापन पेशे में प्रवेश करने के साथ ही दर्शनशास्त्र शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने बनारस, चेन्नई, कोलकाता, मैसूर जैसे कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों तथा लंदन के ऑक्सफोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र पढ़ाया। अध्यापन के प्रति अपने समर्पण की वजह से उन्हें अपने बहुमूल्य सेवा की पहचान के लिये 1949 में विश्वविद्यालय छात्रवृत्ति कमीशन के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया।

शिक्षक विद्यार्थियों के जीवन के वास्तविक शिल्पकार होते हैं। जो न सिर्फ हमारे जीवन को आकार देते हैं बल्कि हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम पूरी दुनिया में अंधकार के बाद भी प्रकाश की तरह जलते रहें। इस वजह से हमारा राष्ट्र ढेर सारे प्रकाश के साथ प्रबुद्ध हो सकता है। इसलिये देश में सभी शिक्षकों को सम्मान दिया जाता है। शिक्षक दिवस स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षक और विद्यार्थियों द्वारा उत्साह के साथ मनाया जाता है। अपने विद्यार्थियों से शिक्षकों को ढेर सारी बधाईयाँ मिलती है। भारत में शिक्षक दिवस शिक्षकों के सम्मान में मनाया जाता है, क्योंकि वह पूरे वर्ष मेहनत करते हैं और चाहते हैं कि उनके छात्र विद्यालय और अन्य गतिविधियों में अच्छा प्रदर्शन करें। इस दिन देशभर के विद्यालयों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

पहले के समय में हमारे देश में शिक्षक को चरण स्पर्श कर सम्मान दिया जाता था। परन्तु आज के समय में शिक्षक और छात्र दोनों ही बदल गये हैं। पहले के समय में शिक्षण एक पेशा न होकर एक उत्साह और शौक का कार्य था। अब यह मात्र आजीविका का साधन बनकर रह गया है। यह सच है कि माता-पिता हमारे पहले शिक्षक हैं। वह हमें काफी कुछ सिखाते हैं। इस बात इनकार नहीं किया जा सकता। पर हमारी असली शिक्षा तब शुरू होती है जब हम स्कूल जाते हैं। जहां हम अपने शिक्षकों द्वारा ज्ञान प्राप्त करना शुरू करते हैं। शिक्षक एक व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षक एक मार्गदर्शक, गुरु, मित्र होने के साथ ही और कई भूमिकाएं निभाते हैं, जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते। यह विद्यार्थी के ऊपर निर्भर करता है कि वह अपने शिक्षक को कैसे परिभाषित करता है। संत तुलसीदास ने इसे बहुत अच्छे तरीके से समझाया है- “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।” तुलसीदास ने बताया है कि भगवान, गुरु एक व्यक्ति को वैसे ही नजर आयेंगे जैसा वह सोचेगा। उदहारण के लिए अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण को अपना मित्र मानते थे, वहीं मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण को अपना प्रेमी, ठीक इसी प्रकार यह शिक्षक के ऊपर भी लागू होता है।

सर्वविदित है कि हमारे जीवन को संवारने में शिक्षक बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सफलता प्राप्ति के लिये वे हमें कई प्रकार से मदद करते हैं। हमारे ज्ञान, कौशल के स्तर, विश्वास आदि को बढ़ाते हैं तथा हमारे जीवन को सही आकार देते हैं। हम सभी को एक आज्ञाकारी विद्यार्थी के रूप में अपने शिक्षक का दिल से अभिनंदन करने की जरूरत है। जीवनभर अध्यापन के अपने निःस्स्वार्थ सेवा के साथ ही अपने अनगिनत विद्यार्थियों के जीवन को सही आकार देने के लिये उन्हें धन्यवाद देना चाहिये।

कबीरदास ने शिक्षक के कार्य को इन पंक्तियो में समझाया है-“गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट, अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।” कबीरदास जी कहते हैं कि शिक्षक एक कुम्हार की तरह हैं और छात्र पानी के घड़े की तरह। जो उनके द्वारा बनाया जाता है और इसके निर्माण के दौरान वह बाहर से घड़े पर चोट करता है। इसके साथ ही सहारा देने के लिए अपना एक हाथ अंदर भी रखता है।

शिक्षक दिवस दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है। जिसमें चीन से लेकर, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अल्बानिया, इंडोनेशिया, ईरान, मलयेशिया, ब्राजील और पाकिस्तान तक शामिल हैं। हालांकि हर देश में इस दिवस को मनाने की तारीख अलग-अलग है। जैसे चीन में 10 सितंबर तो अमेरिका में छह मई, ऑस्ट्रेलिया में अक्तूबर का अंतिम शुक्रवार, ब्राजील में 15 अक्तूबर और पाकिस्तान में पांच अक्तूबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इसके अलावा ओमान, सीरिया, मिस्र, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, सऊदी अरब, अल्जीरिया, मोरक्को और कई इस्लामी देशों में 28 फरवरी को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

आज के दौर में शिक्षकों के प्रति समाज में सम्मान कम होने लगा है। बहुत से शिक्षकों की घटिया हरकतों ने उनको समाज की नजरों से गिरा दिया है। आये दिन शिक्षकों की गलत हरकतों के बारे में जगह- जगह पढ़ने को मिलता है। जिससे शिक्षण जैसा पवित्र पेशा बदनाम होने लगा है। स्कूलों में छात्र-छात्राओं के साथ शिक्षकों द्वारा नीच हरकतें करने के चलते शिक्षण जैसा पवित्र कार्य बदनाम होता जा रहा है। इसे रोकने वाला कोई नहीं है। शिक्षक दिवस मनाने के साथ हमें शिक्षण कार्य की पवित्रता को फिर से बहाल करने की प्रतिज्ञा भी लेनी होगी तभी हमारा शिक्षक दिवस मनाना सार्थक साबित हो पायेगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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