गौमाता को तो बख्श दो..!

 

गोशाला के शेड से करीब एक किलोमीटर दूर सडक़ किनारे लगभग 300 मीटर के दायरे में गाय, बैल, बछड़े और बछियों के शव पड़े हैं। कुछ गायों के शव पूरी तरह से गल चुके हैं, जबकि कुछ गायों के शव फूले हुए हैं। इन्हीं बिखरे हुए शवों के बीच में एक पॉलीथिन से कवर करके, गायों के शवों से उतारी गई खाल को रखा गया है। इसी तरह गाय के सड़े-गले शवों की हड्डियां भी जगह-जगह बिखरी हुई हैं।
यह दृश्य एक खबर के माध्यम से दिखाया गया, जो हमारे प्रदेश और खासकर राजधानी के एकदम पास का है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 25 किमी दूर जीवदया गोशाला की यह तस्वीर सामने आई है, जो भोपाल की सबसे बड़ी गोशाला बताई जा रही है। परंतु हकीकत में इसे कंकालों की गोशाला या बूचडख़ाना भी कह सकते हैं। इन शवों को कुत्ते नोच रहे हैं। कंकाल इतने कि इनको गिनना मुश्किल है। दूर-दूर तक सिर्फ कंकाल और शव ही नजर आ रहे हैं। गोशाला में जो गायें या बछड़े जिंदा हैं, उनमें से कई तड़प रहे हैं। किसी के शरीर से खून निकल रहा है तो कोई अधमरे हैं। उनकी ऐसी स्थिति देख किसी का भी दिल पसीज जाए।
गोशाला का नाम भले जीवदया रखा गया है, लेकिन यहां गाय के प्रति कोई दया का भाव दिखाई नहीं देता। रिपोर्टर देखता है- एक बड़े खुले बाड़े में 500 से ज्यादा गाय और बैलों झुंड में खड़े हैं। वहीं, गायों के लिए बना शेड खाली है। इधर उधर गोबर फैला हुआ है। किसी शेड में बछड़ा बेहोश पड़ा है। उसीसे महज 20 कदम की दूरी पर एक अन्य बछड़ा भी जमीन पर पड़ा है, जो जमीन पर गिरी जंगली घास को खाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उसमें इतनी ताकत नहीं कि बैठकर जमीन पर रखी घास को खा सके। गायों के इसी शेड के बाहर करीब 40 फीट लंबी दो पानी की टंकियां हैं। जिनमें काई की परत जमी है। वहीं गोशाला के अंदर बांयी ओर करीब 10 हजार वर्गफीट का एक शेडनुमा गोदाम बना है। इसे गायों के लिए भूसा स्टोर करने के लिए बनाया गया है, जो पूरी तरह से खाली था।
असल में अखिल भारतीय सर्वदलीय गोरक्षा महाभियान समिति के गौरव मिश्रा ने पशुपालन विभाग से आरटीआई के तहत जानकारी जुटाई। इसमें पता चला कि इस गोशाला में एक साल में 2131 गायें गायब हो गईं। रिकॉर्ड अनुसार गोशाला में जनवरी 2022 में 1961 गाय थीं। इसकी पुष्टि खुद पशुपालन विभाग ने की है, जबकि नगर निगम ने सालभर में यहां 2236 गाय भेजीं। इनमें से 116 गायों की मौत हो गई। मौजूद रिकॉर्ड के हिसाब से फिर भी गोशाला में 4081 होनी चाहिए थी, लेकिन यहां अभी 1950 गाय होना दर्ज है। फिर बाकी 2131 गाय कहां गायब हो गईं? जबकि गोशाला गायों की संख्या की जानकारी हर महीने पशुपालन विभाग को देती है।
इससे ज्यादा गंभीर बात और क्या होगी कि जहां हम गोपालन के लिए अलग से बजट दे रहे हैं, अनुदान भी दिया जाता है, वहां इस जीवदया गोशाला का संचालन 5-6 साल से गायों के शव बेचकर किया जा रहा है। खुद गोशाला प्रबंधक कहता है गोशाला के लिए जो अनुदान मिलता है उससे संचालन नहीं हो पाता है, इसीलिए गोशाला में मरने वाली गायों के शव उठाकर हम मैदान में फेंक देते हैं। फिर इनकी चमड़ी-हड्डी निकलवाकर बेच देते हैं। इसके लिए गोशाला ने शहर के ही एक चमड़ा कारोबारी से गठजोड़ किया है। जीवदया गोशाला समिति के अध्यक्ष अशोक जैन हैं और यहां 25 से ज्यादा कर्मचारी हैं, जिनमें चरवाहे भी शामिल हैं।
अब ये हाल तो राजधानी के ही पास का है। नीलबड़ के पास यह गांव है और नीलबड़ शहर की सीमा में शामिल हो चुका है। इसके बहुत आगे तक शहर बस चुका है, लेकिन राजधानी में बैठी अफसरशाही की नजर इस गोशाला पर नहीं पड़ पाई। पशुपालन विभाग में एक संचालक हैं। मजाल है कि किसी से आसानी से मिलें। घंटों इंतजार के बाद भी कई बार नहीं मिलते। और तो और मीडिया वालों से भी नहीं मिलते। कहते हैं, कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यही नहीं, पशुपालन विभाग की अनुदान योजनाओं में भी उनकी बड़ी हिस्सेदारी रहती है। एक और सहायक उपक्रम है कुक्कुट विकास निगम। यहां एक मंत्री के कथित रिश्तेदार मुखिया बने बैठे हैं। पशुपालन की योजनाओं का अनुदान किस तरह से खाया जा रहा है, यहां पता चलता है। अनुदान योजना के अंतर्गत पशु लेने के लिए कुछ एजेंसियां तय कर दी गई हैं, इन्हीं से आपका गाय या भैंस लेनी होती है। और ये एजेंसियां पशुओं की कीमत दोगुनी करके हितग्राही को थमा देती हैं। गोशालाओं की हालत तो भोपाल और इससे पहले बैरसिया में ही देखी जा चुकी है। बैरसिया में भी दर्जनों गायें मरी हुई मिलीं थीं। काश, गोमाता के प्रति हमारा प्रेम दिखावटी और राजनीतिक न होता! काश, हमारे अंदर कहीं संवेदनाओं के लिए कोई जगह होती! काश, हम गोमाता को भ्रष्टाचार और राजनीतिक दृष्टि से हट कर देख पाते!
– संजय सक्सेना

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