महात्मा गांधी ऐसी अर्थव्यवस्था के हिमायती थे जो देश के आमजन का जीवन बेहतर कर सके. वह इकोनॉमी का ऐसा मॉडल चाहते थे जिसमें गांव-गांव तक उद्योग हों, गरीब-अमीर के बीच असमानता खत्म हो और हर व्यक्ति के पास रोजगार हो. आज उनकी जयंती के मौके पर आइए जानते हैं कि इकोनॉमी को लेकर उनकी सोच क्या थी?
1. अर्थव्यवस्था का लक्ष्य
गांधी जी का मंत्र था कि जब भी कोई काम हाथ में लें तो यह ध्यान में रखें कि इससे सबसे गरीब और समाज के सबसे अंतिम या कमजोर व्यक्ति का क्या लाभ होगा? अर्थव्यवस्था को लेकर भी उनका यही मंत्र था.
2. भौतिक प्रगति ही सब कुछ नहीं
महात्मा गांधी का मानना है था कि आर्थिक विकास का लक्ष्य मनुष्य को खुशहाल बनाना होना चाहिए. वे संपन्नता की ऐसी आधुनिक सोच में विश्वास नहीं करते थे, जिसमें भौतिक विकास को ही तरक्की की मूल कसौटी माना जाता है. वे, बहुजन सुखाय-बहुजन हिताय और सर्वोदय यानी सबके उदय के सिद्धांतों में विश्वास करते थे.
3. अपरिग्रह और स्वराज
अपरिग्रह और स्वराज महात्मा गांधी के आर्थिक विचारों के प्रमुख आधार थे. अपरिग्रह का मतलब है जरूरत से ज्यादा चीजें न रखना और स्वराज का मतलब है आत्मनिर्भरता. स्वराज से मतलब एक तरह की विकेंद्रित अर्थव्यवस्था है. गांधी जी ने ऐसी अर्थव्यवस्था को बेहतर समझा जिसमें मजदूर या श्रमिक स्वयं अपना मालिक हो.
4. स्वदेशी पर जोर
आजादी के पहले देश में उद्योग पर ब्रिटेन की कंपनियों का कब्जा था. भारत में कच्चा माल बनता और इन कच्चा माल के आधार पर ब्रिटेन के उद्योग में तैयार माल को भारत के लोगों को उपभोग के लिए मजबूर किया जाता. इस तरह देश का करोड़ों रुपया पूरी तरह से चूसकर ब्रिटेन भेजा जा रहा था. गांधी जी ने इसके खिलाफ देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वदेशी अपनाने पर जोर दिया था.
5. कुटीर उद्योगों का महत्व
गांधी जी कहते थे कि भारत गांवों में बसता है शहरों में नहीं. गांव वाले गरीब हैं क्योंकि उनमें अधिकतर बेरोजगार हैं या अल्प बेरोजगार की स्थिति में हैं. इनको उत्पादक रोजगार देना होगा जिससे देश की संपत्ति में वृद्धि हो. उनकी सोच यह थी कि देश में जनसंख्या बहुत ज्यादा है लेकिन उसकी तुलना में जमीन और अन्य संसाधन सीमित हैं, इसलिए कुटीर यानी गांव-गांव में खड़े होने वाले अत्यंत छोटे उद्योग ही रोजगार दे सकते हैं.