हाल के कुछ सालों में यह देखने अक्सर मिल रहा है कि जनहित के मुद्दों पर चाहे केन्द्र सरकार हो या फिर राज्य सरकारें, स्वत: निर्णय न लेकर लोगों को परेशान होने दिया जाता है और आखिर में कोर्ट के निर्देश पर फैसले लिए जाते हैं.
तो फिर जनता की चुनी सरकार का क्या फायदा?
क्यों न कोर्ट ही देश चला लें खासकर तब जब राजनेताओं के निर्णय लेने की क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है?
हाल में सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद केन्द्र सरकार ने ब्याज पर ब्याज माफ करने का निर्णय लिया और इसी तरह वैक्सीनेशन को सारे देश में मुफ्त लगाने का फैसला लिया.
हाईकोर्ट की फटकार के बाद ही मप्र सरकार ने अस्पतालों की मुनाफाखोरी पर लगाम कसने का निर्णय लिया और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का प्रयास किया.
शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, मंहगाई, मिलावट, मुनाफाखोरी, आदि जनहित मुद्दों पर सरकार किसका इंतजार करती है. समय पर निर्णय नहीं लेना, निर्णय की उपयोगिता को खत्म कर देता है और जनता को जो राहत मिलनी चाहिए वो नहीं मिल पाती और ऐसे निर्णय सरकार के कामकाज के प्रचार प्रसार में ही उपयोग होते हैं.
आखिर सरकारी निर्णय कोर्ट के फैसलों का क्यों इंतजार करते हैं? क्या यह कहना उचित होगा कि ये जानबूझकर हो रहा है, जिससे सरकारी खर्चे चलते रहें?
अब उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा का ही उदाहरण लें ले. कोई भी सरकार इस समय इसे लागू नहीं करेगी लेकिन उप्र सरकार के निर्णय नहीं लेने के कारण इसकी सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई।
सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि या तो वह सांकेतिक ‘कांवड़ यात्रा’ आयोजित करने पर पुनर्विचार करें या हम आदेश पारित करेंगे।
शीर्ष अदालत ने सोमवार तक यूपी सरकार को जवाब देने का निर्देश दिया है।
जस्टिस रोहिंगटन एफ नारिमन की पीठ ने कहा कि महामारी देश के सभी नागरिकों को प्रभावित करती है, शारीरिक यात्रा की अनुमति नहीं दी जा सकती।
प्रथम दृष्टया हमारा विचार है कि यह प्रत्येक नागरिक से संबंधित मामला है और धार्मिक सहित अन्य सभी भावनाएं नागरिकों के जीवन के अधिकार के अधीन हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को सोमवार तक अपना विचार रखने का समय दिया है।
वहीं सुनवाई के दौरान यूपी सरकार ने कहा कि वह सांकेतिक रूप से कांवड़ यात्रा की अनुमति देने की योजना बनाई है और सीमित संख्या मे भी।
यूपी सरकार ने यह भी कहा है कि वह कंटेनर के जरिए श्रद्धालुओं को गंगाजल मुहैया कराने का निर्णय लिया है।
*हालांकि सुप्रीम कोर्ट इससे सहमत नहीं दिखा।*
बता दें कि इस बीच केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को एक हलफनामा दायर किया है।
इस हलफनामा में सरकार ने शीर्ष कोर्ट से कहा है कि कोरोना महामारी के मद्देनजर राज्य सरकारों को हरिद्वार से ‘गंगा जल’ लाने के लिए कांवड़ियों की आवाजाही की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
हालांकि, धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकारों को निर्दिष्ट स्थानों पर टैंकरों के माध्यम से ‘गंगा जल’ उपलब्ध कराने के लिए प्रणाली विकसित करनी चाहिए।
गौरतलब है कि इससे पहले कोरोना संकट को देखते हुए इस बार उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी है।
हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस पर रोक नहीं लगाई जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में खुद संज्ञान लिया।
*साफ है सरकारों के निर्णय जनहित से ज्यादा राजनैतिक हित के इर्दगिर्द घूमते हैं और इसलिए न्यायालयों को जनहित के फैसले सुनाने पड़ रहे है और यह कहीं से भी लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है.।
*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर