कैश लेन-देन हमारे देश में खत्म नहीं किया जा सकता और इसकी जरूरत को भी नहीं नकारा जा सकता खासकर तब जब आनलाइन फ्राड व्यापक स्तर पर हो रहे हैं और इंटरनेट सुविधाएं की कमी हो. ऐसे में सरकार ने भी आयकर कानून के माध्यम से कड़े नियम बनाए है, जिसका पालन न होने पर करदाता पर भारी टैक्स लग सकता है.
आइए जानें क्या है नियम:
१. सेविंग खाते में सालाना १० लाख से अधिक कैश जमा करना और करंट खाते में ५० लाख से अधिक कैश जमा करने पर आयकर विभाग को बैंकों द्वारा रिपोर्टिंग कर दी जाती है । ऐसे में इस जमा लेन-देन का डिटेल करदाता को अपने आयकर विवरणी में दर्शाना जाना जरूरी है ताकि वह समझा सकें कि कैश लेन-देन व्यापार की खरीद बिक्री संबंधित है अन्यथा नहीं दर्शाने की स्थिति में इसको छुपी हुई आय मानकर विभाग ६०% टैक्स, २५% सरचार्ज और ४% सैस यानी ७८% प्रतिशत टैक्स वसूलेगा एवं ब्याज अलग। कहने का मतलब साफ़ है कैश लेन-देन स्पष्ट न करने की स्थिति में जितना कैश जमा किया है, वह पूरा टैक्स के रूप में विभाग ले लेगा।
2. इसके अलावा कैश में १० लाख रुपए से ऊपर की एफडी बनाने पर स्पष्टीकरण विभाग द्वारा मांगा जा सकता है.
3. किसी भी प्रकार का लोन लेना या चुकाना यदि कैश में २०००० रुपए से अधिक होगा तो उस पर १०० प्रतिशत पेनल्टी लगाई जा सकती है ।
4. कोई भी प्रापर्टी खरीद में २००००/- से ऊपर कैश लेन-देन नहीं किया जा सकता है।
5. कोई भी दान कैश में ५०००० रुपए सालाना से ऊपर टैक्स के दायरे में आता है लेकिन यदि यही दान रिश्तेदारों से हो तो टैक्स फ्री होता है.
6. क्रेडिट कार्ड में ५००००/- रुपए से अधिक का लेन-देन विभाग को रिपोर्ट किया जाता है.
7. किसी भी व्यक्ति के लिए किसी भी लेन-देन में २०००००/- से अधिक का कैश लेने पर जुर्माना देना होगा। आपको यह बता दें कि उपरोक्त सभी लेन-देन व्यापार से संबंधित है, व्यक्तिगत स्तर पर किए गए कैश लेन-देन का स्पष्टीकरण मांगे जाने पर देना होगा लेकिन लिमिट एवं पेनल्टी सिर्फ व्यापारिक लेन देन पर लागू होती है।
८. इसके अलावा कैश निकासी पर १९४एन के तहत बैंक खाते से १ करोड़ रुपए से अधिक निकालने पर २ % का टीडीएस कटेगा और यदि आयकर विवरणी न भरी हो तो टैक्स टीडीएस की दर १ करोड़ रुपए से अधिक निकालने पर ५% टीडीएस कटेगा और २० लाख रुपए से अधिक निकासी पर २% टीडीएस कटेगा।
साफ है बैंकों के मार्फत या खरीद बेच संबंधित व्यापारिक कैश लेन-देन के मामलों में सरकार का कड़ा रुख आयकर कानून के माध्यम से चाहा गया कि कैश लेन-देन को अर्थव्यवस्था में कम किया जा सके । हालांकि यह बात भी सही है कि हमारे देश में कैश के उपयोग को नकारा नहीं जा सकता और इस पर कड़ाई करने से लेन-देन का सही आंकलन करना मुश्किल होगा एवं टैक्स चोरी की संभावनाएं ज्यादा होगी क्योंकि फार्मल सेक्टर से ज्यादा बड़ा इनफार्मल सेक्टर है जहां कैश लेन-देन खुले आम हो रहा है.
*सुझाव यही है कि सरकार कैश लेन-देन की रिपोर्टिंग जरूरी करें लेकिन इस पर लिमिट लगाना या पेनल्टी का प्रावधान करना गैर जरूरी और टैक्स चोरी को बढ़ावा देने वाला है। नोटबंदी के समय जहां कैश अर्थव्यवस्था में १५ लाख करोड़ रुपए था, वह आज ३५ लाख करोड़ रुपए हो गया है तो फिर कैश रोक-टोक के प्रावधान समझ से परे है.*
अनिल अग्रवाल (CA)