किसान आंदोलनः सरकार और किसान नेताओं के बीच बैठक बेनतीजा ख़त्म, अगली बैठक 8 जनवरी को
मोदी सरकार के तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन के नेताओं और केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों के बीच सोमवार दोपहर को हुई सातवें दौर की वार्ता बेनतीजा ख़त्म हो गई है.
अगली बैठक आठ जनवरी को होगी.
इन कृषि क़ानूनों के मुद्दे पर पिछले एक महीने से केंद्र सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच गतिरोध की स्थिति बनी हुई है.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने दिल्ली के विज्ञान भवन में 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत की. सोम प्रकाश पंजाब राज्य से ही सांसद भी हैं.
वहां मौजूद बीबीसी पंजाबी संवाददाता ख़ुशहाल लाली के अनुसार बातचीत के दौरान किसान नेता बलबीर सिंह रजेवाल और मंत्रियों के बीच ख़ूब बहस हुई.
मंत्री बिल के हर क्लॉज़ पर बातचीत करना चाहते थे लेकिन किसानों का कहना है कि सरकार को पूरा बिल ही रद्द करना होगा.
इससे पहले समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ आज किसान नेताओं और केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों के बीच ये बैठक आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को श्रद्धांजलि देने के साथ शुरू हुई.
इससे पहले 30 दिसंबर को किसान नेताओं और केंद्र सरकार के बीच छठे दौर की वार्ता हुई थी जिसमें कुछ साझा मुद्दों पर सहमति बनती दिखी. इसमें बिजली सब्सिडी को जारी रखने और पराली जलाने को आपराधिक गतिविधि न माने जाने पर सहमति बनी है.
हालांकि अभी तक किसानों की दो प्रमुख माँगों पर कोई समझौता नहीं हो सका है. पहली ये कि किसान उन तीन कृषि क़ानूनों को वापस लिए जाने की माँग पर अड़े हैं और दूसरा ये कि वे न्यूनतम समर्थन मूल्य की ख़रीद व्यवस्था जारी रखने की क़ानूनी गारंटी की माँग कर रहे हैं.
सातवें दौर की इस बातचीत से एक दिन पहले कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की रविवार शाम को मुलाक़ात हुई थी. माना जा रहा है कि दोनों नेताओं की इस मुलाक़ात के दौरान मौजूदा जारी संकट को सुलझाने की सरकारी रणनीति पर चर्चा हुई ताकि कोई बीच का रास्ता निकाला जा सके.
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हज़ारो किसान दिल्ली बॉर्डर पर पिछले एक महीने से भी ज़्यादा वक़्त से इन तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं. भारी बारिश, जलजमाव और भीषण सर्दी के बावजूद ये किसान दिल्ली के बॉर्डर पर डटे हुए हैं.
सितंबर, 2020 से लागू किए गए इन क़ानूनों को केंद्र सरकार प्रमुख कृषि सुधार और किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में उठाया गया क़दम बता रही है. लेकिन इन क़ानूनों का विरोध कर रहे किसानों का कहना है कि इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडी की व्यवस्था कमज़ोर होगी और उन्हें बड़े कारोबारी प्रतिष्ठानों की दया पर छोड़ दिया जाएगा.
हालांकि सरकार का ये कहना है कि किसानों की ये आशंकाएं ग़लतफ़हमी की वजह से हैं और ये क़ानून वापस नहीं लिए जाएंगे.