काश थोड़ा “लाड़” इस बहना को भी मिल जाता…

 

स्थानीय अखबार की सुर्खियां देख रहा था..अचानक दतिया की एक खबर पर नजर पड़ी। खबर के साथ तस्वीर भी थी! उस तस्वीर में एक गरीब महिला गोद में अपने बेजान दुधमुहें बच्चे को लेकर बैठी थी। उसकी आंखों में निराशा का सागर हिलोरें ले रहा था। खबर की हेडिंग थी – सरकारी एंबुलेंस व्यस्त थी।डाक्टर के बुलाने के तीन घंटे बाद पहुंची। बीमार बच्चे ने मां की गोद में ही दम तोड़ दिया!
इसके थोड़ी देर बाद ही एक व्हाट्सएप ग्रुप में बीजेपी के एक, हाल में ही पॉलिटिकल लांड्री में धुले, अतिसक्रिय प्रवक्ता का ट्वीट देखा। ट्वीट के साथ तस्वीर भी थी! तस्वीर में प्रदेश के मुखिया अपनी कुछ “लाडली बहनों” के साथ खड़े मुस्कुरा रहे थे। प्रवक्ता का दावा है कि इन बहनों के “रक्षा कवच” के चलते मुख्यमंत्री को किसी की नजर नहीं लग सकती!
दोनों सूचनाओं को गौर से देखा!एक बार नहीं कई बार देखा! फिर मन में सवाल कौंधा …यह किसकी लाडली बहना है जो अपने 6 महीने के बच्चे का निर्जीव शरीर अपने आंचल में लिए बैठी है? क्या यह दलित महिला अपने “भाई” की सरकार में अपने बीमार बच्चे के लिए एंबुलेंस की उम्मीद भी नही कर सकती? फिर काहे की लाडली और काहे की लक्ष्मी!
चलिए पहले खबर पर बात करते हैं!दतिया जिले की रेणु जाटव अपने बीमार बच्चे को लेकर इंदरगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची थी। बच्चा निमोनियां से पीड़ित था। उसकी हालत खराब थी। ड्यूटी पर मौजूद डाक्टर ने उसका प्राथमिक इलाज किया।साथ ही उसे दतिया के जिला अस्पताल ले जाने का सुझाव दिया। यही नहीं बच्चे की हालत को देखते हुए खुद ड्यूटी डाक्टर ने अपने फोन से 108 नंबर पर एंबुलेंस को कॉल किया। लेकिन एंबुलेंस तीन घंटे तक नही आई।इस बीच बच्चे ने मां की गोद में ही दम तोड दिया।
ऐसा नहीं है कि अस्पताल में एंबुलेंस नही थी। एक नही दो एंबुलेंस अस्पताल परिसर में खड़ी थीं। ये एंबुलेंस सेवड़ा विधायक ने अपनी विधायक निधि से उपलब्ध कराई हैं। लेकिन उनमें ईंधन नही था। बिना ईंधन वे चलती कैसे ?गरीब रेणु जाटव के पास इतने पैसे नहीं थे जो एंबुलेंस में तेल डलवा कर अपने बच्चे को दतिया ले जाती।
इस बारे में दतिया के सीएमएचओ ने बड़ी मासूम सफाई दी! उन्होंने कहा -विधायक ने एंबुलेंस तो दे दी पर डीजल नहीं दिया। हम क्या करें ? जबकि ब्लॉक मेडिकल अफसर का कहना था – हमारी एंबुलेंस ले जाने के लिए एसडीएम साहब की परमिशन लेनी पड़ती है!
जिम्मेदारों ने अपना पक्ष रख दिया! उनका कर्तव्य पूरा हुआ!रेणु जाटव का बच्चा मर गया।उसकी मदद अस्पताल का डाक्टर चाह के भी नही कर पाया। सब अपनी अपनी जगह पर “ठीक” हैं! पर बच्चे की मौत का जिम्मेदार कौन?
कौन यह पूछेगा और कौन बताएगा? प्रदेश के मुखिया अपनी लाडली बहनों की सूची बनवाने में लगे हुए हैं ताकि जल्दी से जल्दी उनके खातों में हर महीने एक हजार रुपए सरकारी खजाने से डलवा सकें! लाडली बहनों के पास पहुंचा रुपया 6 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में उनकी “जीत” की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा! इसी वजह से उनका पूरा सचिवालय और राज्य की पूरी सरकारी मशीनरी लाडली बहनों को खोजने और उनकी सूची बनाने में युद्ध स्तर पर जुटी है!
अब यह कौन पूछे कि बेचारी रेणु जाटव किस श्रेणी में आती है ? उसके “दुख” के लिए कौन जिम्मेदार है।
एक बात और..दतिया शिवराज मंत्रिमंडल के सबसे ताकतवर मंत्री नरोत्तम मिश्रा का जिला है।यह अलग बात है कि इंदरगढ़ उनका चुनावी “इलाका” नही है।लेकिन दतिया तो उनके नाम से ही जाना जाता है। उनकी वजह से ही कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री ने दतिया में भव्य देवीलोक बनाने का ऐलान किया था। शायद “भव्य देवीलोक” बीमार बच्चों के कुछ काम आए?
मुख्यमंत्री ने ही 12 दिन पहले ग्वालियर में अंबेडकर महाकुंभ में यह ऐलान किया था कि वे अनुसूचित जाति की श्रेणी में आने वाली अलग अलग जातियों के विकास के लिए अलग अलग बोर्ड बनाएंगे! उससे दो दिन पहले भी उन्होंने महू में डाक्टर भीमराव आंबेडकर के अवतरण दिवस पर अनुसूचित जातियों के लिए कई अहम घोषणाएं की थीं। इन घोषणाओं में बाबा साहब से जुड़े पांच स्थानों को पंच तीर्थ नाम देकर मुख्यमंत्री तीर्थ योजना में शामिल करने का भी ऐलान हुआ था।
अब रेणु जाटव या कोई और उनसे यह अनुरोध तो कर नही सकता – तीर्थ बाद में करा देना!पहले बीमार बच्चे को अस्पताल तक पहुंचाने की व्यवस्था तो सुनिश्चित करा दीजिए! क्योंकि जिस एंबुलेंस सेवा का आप श्रेय लेते हो वह किसी गरीब को कभी भी समय पर नहीं मिलती। चाहे वह बीमार बच्चे को अस्पताल ले जाना हो या फिर दम तोड चुके गरीब की लाश को उसके घर तक पहुंचाना हो! रोज ये किस्से अखबारों में छपते रहते हैं। लेकिन उन पर गौर कौन करता है।
इस खबर के साथ ही मुझे दो दिन पहले भोपाल में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के निवास पर लगाए गए पोस्टर वाली खबर भी याद आ गई। संयोग से स्वास्थ्य मंत्री भी अनुसूचित जाति से ही आते हैं। उनके विरोधी उन्हें साजिशन “तबादला मंत्री” कहते हैं। अब वे बेचारे क्या करें! एंबुलेंस के लिए तेल की व्यवस्था करें या फिर अपने राजनीतिक भविष्य की!
खैर रेणु जाटव का बच्चा नहीं रहा, बहुत बुरा हुआ! कोई करे भी तो क्या करे! क्योंकि फिलहाल उसका “स्वयंभू भाई” भांजे भांजियो की चिंता करने की बजाय “लाडली बहनों” को खोज रहा है। इन बहनों के “वोट” से “चुनावी वैतरणी” पार होगी! दुधमुहे भांजे भांजियों के वोट तो सालों बाद बनेंगे! इसलिए अभी सिर्फ और सिर्फ लाडली बहना!और बड़ी बड़ी घोषणाएं! इन्ही का आनंद लीजिए!
इसीलिए तो कहते हैं कि अपना एमपी गजब है…आप ही बताइए कि है कि नहीं! वैसे भी हर बहन लाडली कहां होती है।यकीन न हो तो शराब की दुकानों पर पत्थर फेंकने वाली “सन्यासिन बहना” से पूछ के देख लीजिए!!

साभार: अरुण दीक्षित (वरिष्ठ पत्रकार)

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